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Saturday, 21 December, 2024
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वैक्सीन फंडिंग पर मोदी सरकार की हकीकत—राज्यों के लिए 35,000 करोड़ रुपये, केंद्र के लिए जीरो

2021-22 के बजट संबंधी दस्तावेज दर्शाते हैं कि सरकार ने केंद्र की तरफ से वैक्सीन फंडिंग के लिए कोई धनराशि आवंटित नहीं की. हालांकि, इस वित्त वर्ष में टीकाकरण पर अब तक 2,520 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं.

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार के 2021-22 के आम बजट से ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार की तरफ से कोविड-19 टीकाकरण पर खर्च का कोई प्रावधान नहीं किया गया है. दस्तावेज दर्शाते हैं कि टीकों के लिए 35,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है लेकिन इस राशि को टीकाकरण अभियान का समर्थन करने के लिए राज्यों को हस्तांतरित किया जाना है.

इसी का हवाला देते हुए कांग्रेस ने महामारी से निपटने और टीकाकरण अभियान को लेकर मोदी सरकार से सवाल किया है.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में राजनीतिक अर्थशास्त्री और चेयरपर्सन, डाटा एनालिटिक्स प्रवीण चक्रवर्ती ने ट्विटर पर लिखा, ‘केंद्र के इस वर्ष के खर्च में कोविड टीकाकरण के लिए शून्य राशि का प्रावधान है…35000 करोड़ का बजट सभी राज्यों को टीकाकरण के लिए ‘ऋण/अनुदान’ के लिए निर्धारित किया गया है.

पिछले एक ट्वीट में उन्होंने यह भी बताया था कि केंद्र सरकार ने इस सबसे खुद को अलग कर लिया है और बजट में वैक्सीन की जिम्मेदारी राज्यों के हवाले कर दी.

उन्होंने कहा, ‘यह वैक्सीन मूल्य निर्धारण में गड़बड़ी को स्पष्ट करता है.’

कांग्रेस की तरफ से यह हमला ऐसे समय बोला गया है जब आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर दिन 4,000 से अधिक मौतों के साथ हर दिन रिकॉर्ड 4 लाख नए केस सामने आ रहे हैं.

बीमारी के तेजी से प्रसार और टीकाकरण अभियान की धीमी गति ने मोदी सरकार को आलोचनाओं के घेरे में ला दिया है. वैक्सीन की कमी के बीच और टीकों की कीमतों को नियंत्रित किए बिना 18-44 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों के टीकाकरण का बोझ राज्यों पर डाले जाने के उसके फैसले की भी राज्यों की तरफ से तीखी आलोचना की जा रही है.


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बजट दस्तावेज क्या दर्शाते हैं

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को अपने बजट भाषण में कहा था, ‘मैंने 2021-22 के बजट अनुमान में कोविड-19 वैक्सीन के लिए 35,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. यदि आवश्यकता पड़ी तो मैं आगे भी फंड उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हूं.’

वित्त मंत्रालय ने 2020-21 के संशोधित अनुमान और 2021-22 के बजट अनुमान के बीच व्यय में बड़े बदलाव संबंधी अपने बयान में भी कहा था कि कोविड-19 टीकाकरण पर खर्च को पूरा करने के लिए वित्तीय सहायता का प्रावधान व्यय वृद्धि का एक कारण है.

बजट दस्तावेजों पर बारीकी से नजर डालने पर पता चलता है कि 2021-22 में टीके के लिए 35,000 करोड़ रुपये का आवंटन राज्यों को हस्तांतरित करने के लिए किया गया है. जबकि, 2020-21 के बजट में स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स के टीकाकरण के लिए 360 करोड़ रुपये का आवंटन राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की केंद्रीय सेक्टर की योजना के तहत किया गया था.

आम बजट पेश होने के बाद एक साक्षात्कार में व्यय सचिव टी.वी. सोमनाथन ने कहा था कि यह आवंटन 50 करोड़ भारतीयों के टीकाकरण की पूरी लागत को कवर करने के लिए पर्याप्त होगा.

उस समय भारत में मंजूरी हासिल करने वाले दोनों स्वदेश निर्मित टीकों कोविशील्ड और कोवैक्सीन की कीमत 150 रुपये प्रति खुराक तय की गई थी. हालांकि, यह मूल्य तब बढ़ गया जब सरकार ने निर्माताओं को राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों को बिक्री के लिए कीमतें तय करने की अनुमति दे दी.

राज्यों द्वारा खरीद के लिए कोविशील्ड की कीमत 300 रुपये प्रति खुराक और कोवैक्सीन की कीमत 400 रुपये प्रति खुराक है.

वित्त मंत्रालय ने इस मामले पर टिप्पणी के लिए रविवार देर रात भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं दिया. प्रतिक्रिया मिलने पर यह रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.

मोदी सरकार ने अब तक कोविशील्ड का उत्पादन कर रहे सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) को वैक्सीन की 26.6 करोड़ डोज के लिए 3,639.67 करोड़ रुपये और कोवैक्सीन की आठ करोड़ खुराक के लिए भारत बायोटेक (बीबी) को 1,104 करोड़ रुपये का भुगतान किया है. वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर की तरफ से कल देर रात किए गए ट्वीट के मुताबिक, इसमें सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक को क्रमश: 1,732.5 करोड़ रुपये और 787.5 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान शामिल हैं, 28 अप्रैल तक की स्थिति.

भारत में वैक्सीनेशन की गति का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि ये दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे तेज टीकाकरण अभियान है, जिसमें 103 दिनों में 15 करोड़ लोगों को टीका लगाया जा चुका है.

इन अग्रिम भुगतानों की बात करें तो केंद्र सरकार ने टीके की खरीद के लिए 2021-22 में कुल 2,520 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जिसके लिए उसे वर्ष के दौरान अपने बजट में आवंटन करना होगा.

राज्यों ने की आलोचना

विरोधी दलों के शासन वाले केरल, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य टीके की कमी, युवा आबादी के टीकाकरण का पूरा बोझ केंद्र की तरफ से राज्यों पर डाले जाने, और वैक्सीन निर्माताओं पर किसी तरह के मूल्य नियंत्रण के अभाव को लेकर मुखर रहे हैं.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो कहा था कि केंद्र की वैक्सीन मूल्य निर्धारण नीति राज्यों के हितों के लिए अहितकर है.

केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक का कहना था कि मोदी सरकार ने सार्वभौमिक टीकाकरण की अपनी जिम्मेदारी से किनारा कर लिया है.

तेलंगाना के उद्योग मंत्री के.टी. रामा राव ने इस पर सवाल उठाया था कि केंद्र और राज्य सरकारों के लिए टीके के दो अलग-अलग मूल्य क्यों हैं.

हालांकि, सार्वजनिक वित्त मामलों के एक विशेषज्ञ ने बताया कि चूंकि टीकाकरण तो आखिरकार राज्यों के स्तर पर ही किया जा रहा है, ऐसे में बजट का वर्गीकरण कोई मायने नहीं रखता.

बेंगलुरु स्थित डॉ. बी.आर. अंबेडकर स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स यूनिवर्सिटी के कुलपति एन.आर. भानुमूर्ति ने कहा कि यहां तक कि जब टीकों की खरीद केंद्र सरकार कर रही है तो भी ये राज्यों को ही दिए जा रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘35,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटन या तो कैश ट्रांसफर या केंद्र की ओर से राज्यों को एक तरह का ट्रांसफर हो सकता है. इसलिए या तो केंद्र सरकार वैक्सीन खरीदकर राज्यों को दे सकती है या राज्य सीधे निर्माताओं से इसे खरीदकर वितरित कर सकते है.’

उन्होंने आगे जोड़ा कहा कि केंद्र सरकार की प्रारंभिक योजना कंपनियों से खरीदकर टीके राज्यों को मुहैया कराने की ही रही होगी, लेकिन राज्यों की तरफ से इस मामले में और अधिकार देने की मांग किए जाने के बाद उन्हें वैक्सीन खरीदने की अनुमति दी गई.


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(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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