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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशMP में बाघों की संख्या बढ़कर पहुंची 785, नंबर-1 का ताज बरकरार, CM शिवराज बोले- टाइगर स्टेट होने पर गर्व

MP में बाघों की संख्या बढ़कर पहुंची 785, नंबर-1 का ताज बरकरार, CM शिवराज बोले- टाइगर स्टेट होने पर गर्व

मध्य प्रदेश में देश के सर्वाधिक छह टाइगर रिजर्व सतपुड़ा, पन्ना, पेंच, कान्हा, बांधवगढ़ और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व हैं. यहां पांच नेशनल पार्क और 10 सेंचुरी भी हैं.

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देश के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश में पहली बार बाघों की संख्या 785 पहुंच गई है. राष्ट्रीय स्तर पर पिछली बार की गणना में मध्य प्रदेश में बाघों की आबादी महज 526 थी लेकिन अखिल भारतीय बाघ गणना जनगणना 2022 के अनुसार इस बार मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या में देश में सर्वाधिक वृद्धि हुई है. सबसे ज्यादा बाघों के साथ मध्य प्रदेश देश में इस बार बहुत आगे निकल गया है. आज जारी आंकड़ों के अनुसार देश में सबसे अधिक 785 बाघ मध्य प्रदेश में हैं. इसके बाद 563 बाघों के साथ कर्नाटक दूसरे और 560 बाघों के साथ उत्तराखंड तीसरे नंबर पर है.

टाइगर स्टेट होने पर हमें गर्व : मुख्यमंत्री

मध्य प्रदेश की इस उपलब्धि पर मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि अत्यंत हर्ष की बात है कि हमारे प्रदेशवासियों के सहयोग और वन विभाग के अथक प्रयासों के फलस्वरूप, चार वर्षों में हमारे प्रदेश में जंगल के राजा बाघों की संख्या 526 से बढ़कर 785 हो गई है.

मैं पूरे प्रदेश की जनता को, वन एवं वन्यप्राणियों के संरक्षण में उनके सहयोग के लिए हृदय से धन्यवाद और बधाई देता हूं. आइये हम सब मिलकर अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर भावी पीढ़ियों के लिए प्रकृति संरक्षण का पुनः संकल्प लें.

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 29 जुलाई मध्य प्रदेश के लिये खास दिन है. यह दिवस अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की जातियों की घटती संख्या, उनके अस्तित्व और संरक्षण संबंधी चुनौतियों के प्रति जन-जागृति के लिए मनाया जाता है. प्रत्येक वर्ष विश्व बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाए जाने का निर्णय वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग बाघ सम्मेलन में किया गया था. इस सम्मेलन में बाघ की आबादी वाले देशों ने वादा किया था कि बहुत जल्द वे बाघों की आबादी दोगुनी कर देंगे. इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मध्य प्रदेश ने तेजी से काम किया और प्रबंधन में निरंतरता दिखाते हुए पूरे देश में वन्यजीवों के संरक्षण और संवर्धन में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति करने में सफलता पाई है.

बीते वर्ष प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने बेंगलुरु में बाघों की गणना के आंकड़े जारी किए थे. प्रधानमंत्री द्वारा जारी रिपोर्ट में देश भर में 3167 बाघ बताए गए थे, लेकिन तब राज्यवार आंकड़े जारी नहीं हुए थे. आज उत्तराखंड के रामनगर स्थित जिम कार्बेट नेशनल पार्क में बाघों के राज्यवार आंकड़े जारी किए गए जिसमें मध्य प्रदेश को फिर टाइगर स्टेट का ताज हासिल हुआ है. बाघों के राज्यवार आंकड़े प्रत्येक चार वर्ष में जारी किए जाते हैं. 2018 में जारी किए गए आंकड़े में मध्य प्रदेश में 526 बाघ थे. एक साल के भीतर प्रदेश में 259 बाघ बढ़े हैं. यह किसी राज्य में सबसे अधिक संख्या है, जिस वजह से मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का ताज मिला है .

टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में तेजी से बढ़ा बाघों का कुनबा

मध्य प्रदेश की बात करें तो यहां देश में सर्वाधिक छह टाइगर रिजर्व सतपुड़ा, पन्ना, पेंच, कान्हा, बांधवगढ़ और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व हैं. पांच नेशनल पार्क और 10 सेंचुरी भी हैं. दमोह जिले के नौरादेही अभयारण्य को छठवां टाइगर रिजर्व बनाया गया है. प्रदेश का पहला टाइगर रिजर्व 1973 में कान्हा टाइगर बना. इनमें सबसे बड़ा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और सबसे छोटा पेंच टाइगर रिजर्व है. अभयारण्य के रूप में पचमढ़ी, पनपथा, बोरी, पेंच-मोगली, गंगऊ, संजय- दुबरी, बगदरा, सैलाना, गांधी सागर, करेरा, नौरादेही, राष्ट्रीय चम्बल, केन, नरसिहगढ़, रातापानी, सिंघोरी, सिवनी, सरदारपुर, रालामण्डल, केन घड़ियाल, सोन चिड़िया अभयारण्य घाटीगांव, सोन घड़ियाल अभयारण्य, ओरछा और वीरांगना दुर्गावती अभयारण्य के नाम शामिल हैं. प्रदेश के भीतर बाघों की संख्या टाइगर रिजर्व की सीमाओं के बाहर भी तेजी से बढ़ रही है.

MP के राष्ट्रीय उद्यानों का बेहतर प्रबंधन

मध्य प्रदेश ने टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में आगे है. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल किया गया है. भारत सरकार द्वारा जारी टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन की प्रभावशीलता मूल्यांकन रिपोर्ट में भी पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में नया मुकाम हासिल किया है. बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन वाला टाइगर रिजर्व माना गया है. इन राष्ट्रीय उद्यानों में अनुपम प्रबंधन योजनाओं और नवाचारी तरीकों को अपनाया गया है.वन्य-जीव संरक्षण मामलों पर नीतिगत निर्णय लेने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा प्रभावी प्रबंधन के आकलन से संबंधित आँकड़ों की आवश्यकता होती है. ये आंकडे़ संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के विश्व संरक्षण निगरानी केंद्र में रखे जाते हैं. टाइगर रिजर्व की प्रबंधन शक्तियों का आकलन कई मापदण्डों पर होता है जिसमें योजना, निगरानी, सतर्कता, निगरानी स्टाफिंग पैटर्न, उनका प्रशिक्षण, मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन, सामुदायिक भागीदारी, संरक्षण, सुरक्षा और अवैध शिकार निरोधी उपाय आदि बड़ी भूमिका निभाते हैं.

प्रदेश सरकार के नवाचार से बढ़ रहे हैं वन्य जीवों के आशियाने

जहाँ एक तरफ हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने बाघ पर्यटन द्वारा प्राप्त राशि का उपयोग कर ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है वहीँ वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने का कार्यक्रम भी चलाया है. कान्हा-पेंच वन्य-जीव विचरण कारीडोर भारत का पहला ऐसा कारीडोर है, जिसमें कारीडोर का प्रबंधन स्थानीय समुदायों, सरकारी विभागों, अनुसंधान संस्थानों और नागरिक संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है.

पार्क प्रबंधन ने वन विभाग कार्यालय परिसर में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी स्थापित किया है, जो वन विभाग के कर्मचारियों और आस-पास क्षेत्र के ग्रामीणों के लिये लाभदायी सिद्ध हुआ है. पन्ना टाइगर रिजर्व ने बाघों की आबादी बढ़ाने में पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया है.

यह भारत के वन्यजीव संरक्षण के इतिहास में एक अनूठा उदाहरण है. सतपुड़ा बाघ रिजर्व में सतपुड़ा नेशनल पार्क, पचमढ़ी और बोरी अभ्यारण्य से 42 गाँव को सफलतापूर्वक दूसरे स्थान पर बसाया गया है. यहां सोलर पंप और सोलर लैंप का प्रभावी उपयोग किया जा रहा है. वन्य जीव संरक्षण में अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने की पहल करते हुए पन्ना टाइगर रिजर्व ने “ड्रोन स्क्वाड” का संचालन करना शुरू कर दिया है. प्रत्येक महीने “ड्रोन स्क्वाड” संचालन की मासिक कार्य- योजना तैयार की जाती है.

इससे वन्य जीवों की खोज, उनके बचाव, जंगल की आग का स्त्रोत पता लगाने और उसके प्रभाव की तत्काल जानकारी जुटाने, संभावित मानव-पशु संघर्ष के खतरे को टालने और वन्य जीव संरक्षण संबंधी कानूनों का पालन करने में मदद मिल रही है. पन्ना टाइगर रिजर्व में ड्रोन दस्ता भी काफी उपयोगी सिद्ध हो रहा है.

प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने में राष्ट्रीय उद्यानों के बेहतर प्रबंधन की मुख्य भूमिका है. राज्य शासन की सहायता से 50 से अधिक गांवों का विस्थापन कर एक बड़े भू-भाग को जैविक दबाव से मुक्त कराया गया है. संरक्षित क्षेत्रों से गांवों के विस्थापन के फलस्वरूप वन्य-प्राणियों के रहवास क्षेत्र का विस्तार हुआ है.

कान्हा, पेंच और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र से सभी गाँव को विस्थापित किया जा चुका है. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व का बड़ा क्षेत्र भी आज जैविक दबाव से मुक्त हो चुका है. विस्थापन के बाद घास विशेषज्ञों की मदद लेकर स्थानीय प्रजातियों के घास के मैदान विकसित किये गए हैं, जिससे वन्य-प्राणियों के लिये वर्ष भर चारा आसानी से उपलब्ध हो जाता है.

जी-20 शिखर सम्मेलन में आए डेलीगेट्स भी हुए मुरीद

मध्यप्रदेश के टाइगर रिजर्व बेहतर श्रेणियों में शामिल हुए हैं. वर्ष 2022 की मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश के दो टाइगर रिजर्व कान्हा और सतपुड़ा उत्कृष्ट श्रेणी में हैं वहीं पेंच, बांधवगढ़ और पन्ना टाइगर रिजर्व को बहुत अच्छी श्रेणी और संजय टाइगर रिजर्व को अच्छी श्रेणी में रखा गया है.

मध्य प्रदेश के विश्व धरोहर स्थल खजुराहो में इस वर्ष फरवरी माह में जी-20 शिखर सम्मेलन में आए 20 देश के डेलीगेट्स ने पन्ना टाइगर रिजर्व में भ्रमण कर यहां बाघ संरक्षण और प्रबंधन की सराहना की.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की संवेदनशील पहल के परिणामस्वरूप आज मध्यप्रदेश में वन्य जीवों के आशियाने तेजी से बढ़ रहे हैं. प्रदेश में वन्य जीवों के संरक्षण और संवर्धन के लिए हर स्तर पर निरंतर प्रयास हो रहे हैं. विश्व वन्य-प्राणी निधि एवं ग्लोबल टाईगर फोरम द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार विश्व में आधे से ज्यादा बाघ भारत में हैं.

मध्यप्रदेश के कॉरिडोर से ही उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के बाघ रिजर्व आपस में जुड़े हुए हैं. खास बात ये है कि प्रदेश में हाल के दिनों में 15 ऐसे वन क्षेत्रों में बाघों की सघन उपस्थिति देखी गई , जहां पहले कभी बाघ नहीं दिखे. इस लिहाज से देखें तो कहा जा सकता है देश का हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश आज देश में बाघों के अस्तित्व के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान बन गया है.


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