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Sunday, 2 November, 2025
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नक्सल हिंसा से प्रभावित जिलों की संख्या अप्रैल में 46 से घटकर अब 38 हुई

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(नीलाभ श्रीवास्तव)

नयी दिल्ली, दो नवंबर (भाषा) भारत में नक्सल हिंसा से प्रभावित जिलों के वर्गीकरण की ताजा समीक्षा में पाया गया कि अप्रैल में नौ राज्यों में इनकी संख्या 46 थी, जो अब घटकर 38 रह गई है और “चिंताजनक जिलों” की श्रेणी में केवल चार तथा “सबसे अधिक प्रभावित जिलों” की श्रेणी में महज तीन जिले रह गए हैं।

यह समीक्षा ‘वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) से निपटने के लिए राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना 2015’ के एक हिस्से के रूप में की गई, जिसके तहत केंद्र और राज्य सरकारें इस खतरे का मुकाबला करने के लिए मिलकर काम करती हैं।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 15 अक्टूबर को ताजा वर्गीकरण अधिसूचित किया था।

सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में “उल्लेखनीय सुधार” दर्ज किया गया है, लिहाजा सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) के अंतर्गत आने वाले जिलों की संख्या एक अप्रैल को 46 से घटकर अब 38 रह गई है। आधिकारिक रिकॉर्ड भी इस बात की पुष्टि करते हैं।

एसआरई एक शीर्ष स्तरीय एलडब्ल्यूई नीति योजना है, जिसके तहत केंद्र वामपंथी उग्रवाद से लड़ने के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।

एसआरई जिलों को आगे ‘वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों’ और ‘विरासत एवं प्रबल जिलों’ में वर्गीकृत किया जाता है।

सूत्रों के अनुसार, मार्च 2026 तक नक्सलवाद का खात्मा करने की केंद्र सरकार की घोषणा के तहत सुरक्षा बलों की आक्रामक कार्रवाई के बाद, इन सभी श्रेणियों में नक्सली हिंसा और प्रभाव के स्तर में गिरावट देखी गई है।

सूत्रों ने बताया कि देश में ‘वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों’ की संख्या अप्रैल में 18 से घटकर अब 11 रह गई है और उन्हें ‘सबसे अधिक प्रभावित जिलों’, ‘चिंताजनक जिलों’ और ‘अन्य वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों’ के रूप में उप-वर्गीकृत किया जाता है।

ताजा वर्गीकरण के मुताबिक, ‘सबसे अधिक प्रभावित जिलों’ में केवल तीन जिले बचे हैं, जिनकी संख्या एक अप्रैल को छह थी। इन तीन जिलों में छत्तीसगढ़ का बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा शामिल हैं।

वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों के अंतर्गत यह उप-श्रेणी (सबसे अधिक प्रभावित जिलों) 2015 में 35 जिलों के साथ बनाई गई थी, ताकि वहां संसाधनों की “केंद्रित” तैनाती सुनिश्चित की जा सके।

ताजा वर्गीकरण के अनुसार, ‘चिंताजनक जिलों’ की श्रेणी में बचे चार जिलों में छत्तीसगढ़ का कांकेर, झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम, मध्यप्रदेश का बालाघाट और महाराष्ट्र का गढ़चिरौली शामिल है।

इस श्रेणी में उन जिलों को रखा जाता है, जहां नक्सली प्रभाव कम हो रहा है, लेकिन संसाधनों के केंद्रित विकास की अब भी आवश्यकता है।

सूत्रों ने बताया कि अप्रैल में छह में से चार जिलों को इस श्रेणी से हटा दिया गया था, लेकिन समीक्षा के बाद दो को इसमें शामिल कर लिया गया।

ताजा वर्गीकरण के मुताबिक, ‘अन्य वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों’ में छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा, गरियाबंद और मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी तथा ओडिशा का कंधमाल शामिल है।

आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, जिन जिलों में सुरक्षा स्थिति के “समेकन” के साथ-साथ विकास की भी आवश्यकता है, तथा जो न तो ‘सबसे अधिक प्रभावित जिलों’ में शामिल हैं और न ही ‘चिंताजनक जिलों’ की श्रेणी में आते हैं, उन्हें ‘अन्य वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों’ के अंतर्गत रखा जाता है।

रिकॉर्ड के मुताबिक, अप्रैल में इस श्रेणी में छह जिले थे।

ताजा वर्गीकरण में 27 जिलों को ‘विरासत एवं महत्वपूर्ण जिलों’ के अंतर्गत रखा गया है। इनमें ओडिशा के आठ, छत्तीसगढ़ के छह, बिहार के चार, झारखंड के तीन, तेलंगाना के दो और आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र तथा पश्चिम बंगाल के एक-एक जिले शामिल हैं।

आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, ‘विरासत एवं महत्वपूर्ण जिलों’ में उन जिलों को रखा गया है, जहां नक्सलवाद का अंत हो चुका है, लेकिन ये वामपंथी उग्रवाद के विस्तार के खतरे वाले “संभावित स्थल” हैं और इसलिए राज्यों के क्षमता निर्माण के लिए वहां लगातार सरकारी सहायता उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।

रिकॉर्ड के मुताबिक, अप्रैल में इस श्रेणी में 28 जिले थे। सूत्रों ने बताया कि ताजा समीक्षा के बाद आठ जिलों को इस श्रेणी से बाहर कर दिया गया और सात को इसमें शामिल किया गया।

भाषा पारुल सुरेश

सुरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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