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Thursday, 26 December, 2024
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हरियाणा में 2010 की मिर्चपुर घटना को बयां करती नई सीरीज़ ‘कांड’, कैसे हुई थी जातिगत हिंसा

ओटीटी सीरीज़ ‘कांड 2010’ का उद्देश्य हरियाणा के एक गांव में हुई हिंसा के दौरान समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव को उजागर करना है.

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गुरुग्राम: ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म ‘स्टेज’ पर 20 दिसंबर को रिलीज़ हुई कांड 2010, हरियाणा के मिर्चपुर गांव में हुई एक वास्तविक घटना पर आधारित है, जहां दो दलित निवासियों को ज़िंदा जला दिया गया था और कई अन्य लोगों को प्रमुख जाति समूहों के साथ बढ़ते तनाव के बीच अपने घरों से भागने पर मज़बूर होना पड़ा था.

इस नए सामाजिक-राजनीतिक शो ने समाज में गहरे तक पैठे जातिगत भेदभाव के मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है.

अक्टूबर में संपन्न हुए हरियाणा विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने मिर्चपुर कांड को उजागर करके कांग्रेस को दलित विरोधी के रूप में पेश किया था क्योंकि यह पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार के कार्यकाल में हुआ था.

हुड्डा के आलोचकों ने उन पर जाट समुदाय के सदस्यों का पक्ष लेने और दलितों को न्याय से वंचित करने का आरोप लगाया था.

दिप्रिंट से बात करते हुए मुख्य किरदार भूल सिंह की भूमिका निभाने वाले अभिनेता यशपाल शर्मा ने कहा कि इस सीरीज़ का उद्देश्य यह संदेश देना है कि गांवों में भाईचारा बनाए रखना ज़रूरी है.

शर्मा को लगान (2001), गंगाजल (2003) और सिंह इज़ किंग (2008) जैसी फ़िल्मों में उनकी भूमिकाओं के लिए जाना जाता है.

अभिनेता हरिओम कौशिक ने कहा कि चूंकि मिर्चपुर कांड कई महीनों तक राष्ट्रीय सुर्खियों में रहा, इसलिए सीरीज़ के निर्माताओं ने इस पर शो बनाने का विचार किया.


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2010 की घटना के दौरान क्या हुआ था

मिर्चपुर की घटना जिसे अक्सर मिर्चपुर कांड के नाम से जाना जाता है, 19 अप्रैल, 2010 की रात को एक कुत्ते के भौंकने को लेकर दलित और जाट समुदाय के सदस्यों के बीच हुए विवाद से शुरू हुई थी.

अगले दिन, प्रमुख जाट समुदाय के 200 लोगों की एक गुस्साई भीड़ दलित बस्ती में आई और घरों को आग के हवाले कर दिया. 70-वर्षीय दलित व्यक्ति तारा चंद और उनकी 18-वर्षीय विकलांग बेटी सुमन को उनके घर में ज़िंदा जला दिया गया. कई अन्य घायल हो गए और 150 से अधिक दलित परिवार डर के मारे गांव छोड़कर चले गए.

स्थानीय प्रशासन और पुलिस पर निष्क्रियता का आरोप लगाया गया. खबरों से पता चला कि गांव में बढ़ते तनाव के बारे में जानने के बावजूद पुलिस हमले को रोकने में विफल रही.

घटना के बाद लगभग 150 पीड़ित दिल्ली भाग गए और कनॉट प्लेस के पास वाल्मीकि मंदिर में शरण ली.

मुकदमा

अगस्त 2010 में हरियाणा पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 103 आरोपियों को गिरफ्तार किया. 9 जनवरी, 2011 को, 98 आरोपियों को हिसार जेल से तिहाड़ जेल में स्थानांतरित कर दिया गया.

अदालत ने 20 जनवरी, 2011 को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को मामले को अपने हाथ में लेने का आदेश दिया और दिल्ली में मुकदमा चलाया गया.

आरोपियों की ओर से पेश हुए हिसार के वरिष्ठ वकील पी.के. संधीर ने दिप्रिंट को बताया कि 2011 में दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के अभाव में 15 लोगों को दोषी ठहराया और 82 अन्य को बरी कर दिया.

2018 में दिल्ली हाई कोर्ट ने कई दोषियों की सज़ा बढ़ा दी, जिसमें कुछ के लिए आजीवन कारावास भी शामिल है. अदालत ने इस घटना को “जाति-आधारित हिंसा की भयावह अभिव्यक्ति” करार दिया.

मिर्चपुर कांड देश भर में दलित अधिकार आंदोलनों के लिए एक रैली बिंदु बन गया. भीम आर्मी और अन्य संगठनों ने इसका इस्तेमाल सख्त कानून बनाने और हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए मौजूदा सुरक्षा के बेहतर क्रियान्वयन की मांग के लिए किया.

राजेश अमरलाल बब्बर द्वारा निर्देशित, कांड 2010 को ग्रामीण हरियाणा और वहां के सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों के प्रामाणिक चित्रण के लिए सराहा जा रहा है. सहायक कलाकारों में आशीष नेहरा, योगेश भारद्वाज, आकांक्षा भारद्वाज, चेतना सरसेर, कुलदीप सिंह, अरमान अहलावत, मीणा मलिक और हरिओम कौशिक शामिल हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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