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Friday, 22 November, 2024
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ढहायी जा रही है हैदराबाद के निजाम का आखिरी घर रही किंग कोठी, KCR सरकार ने दी मामले में दखल

समाचार माध्यमों में ‘किंग कोठी’ को गिराए जाने की ख़बरें आ रही है, 300 करोड़ रुपये मूल्य वाली यह निजी संपत्ति वर्तमान में दो कंपनियों के बीच एक दीवानी विवाद का केंद्र बनी हुई है.

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नई दिल्ली: हैदराबाद स्थित लगभग 150 साल पुराने अधिसूचित विरासती ढांचे के संभावित विध्वंस को लेकर डर बढ़ गया है जिसने तेलंगाना सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर किया है.

मामले से जुडी ईमारत वह ‘किंग कोठी’ है जो हैदराबाद के सातवें और अंतिम निजाम मीर उस्मान अली खान का निवास स्थान थी. 300 करोड़ रुपये के मूल्य वाली यह निजी संपत्ति फ़िलहाल मुंबई स्थित नीहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड और कश्मीर स्थित आईरिस हॉस्पिटैलिटी के बीच एक विवाद का केंद्र बनी हुई है.

इस अचल संपत्ति को कथित तौर पर ढहाए जाने के बारे में मीडिया रिपोर्टों द्वारा खड़े किये गया हंगामें ने नगर प्रशासन और शहरी विकास के विशेष मुख्य सचिव, अरविंद कुमार, जो राज्य के शहरी क्षेत्रों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार हैं, उनको 17 अप्रैल को यह ट्वीट करने के लिए मजबूर किया जिसमें उन्होंने कहा कि विवाद में शामिल दोनों पक्षों को इस संरचना को ‘परिवर्तित अथवा ढहाने के लिए नहीं करने को कहा गया है.’

कुमार ने  दिप्रिंट को बताया, ‘यह एक निजी संपत्ति है जिस पर फ़िलहाल एक दीवानी विवाद के तहत विचार चल रहा है. वहीं, किंग कोठी एक अधिसूचित विरासती संरचना भी है. इसलिए, भले ही यह एक निजी संरचना है, फिर भी इसके मालिकों को इसमें कोई बदलाव करने, इस संशोधित करने या ध्वस्त करने के लिए एक सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी की आवश्यकता है जो कि जीएचएमसी (ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम) है.’

एक अधिसूचित विरासती संरचना एक या एक से अधिक परिसर, संरचनाओं और कलाकृतियों वाली ऐसी किसी भी इमारत को संदर्भित करती है जिसे ऐतिहासिक, स्थापत्य, कलात्मक, सौंदर्य, सांस्कृतिक या पर्यावरणीय उद्देश्यों हेतु संरक्षण या बचाव की आवश्यकता होती है.

केंद्र सरकार के एक दस्तावेज़ के अनुसार, आयुक्त, नगर निगम / उपाध्यक्ष, विकास प्राधिकरण की पूर्व अनुमति के बिना ऐसी संरचनाओं में किसी भी तरह के विकास, इंजीनियरिंग से सम्बंधित कामों, परिवर्तन या नवीनीकरण की अनुमति नहीं है.

ऐसी कोई भी अनुमति देने से पहले इस एजेंसी द्वारा विरासत संरक्षण समिति (हेरिटेज कांसेर्वेशन कमिटी – एचसीसी) से परामर्श करने की अपेक्षा की जाती है.

इस बीच निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर ने ऐसे किसी भी कथित विध्वंस में उसका हाथ होने से इनकार किया है. आइरिस हॉस्पिटैलिटी के मालिकों में से एक, अमित अमला, ने दिप्रिंट को बताया कि वह कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे क्योंकि यह मामला अभी विचाराधीन है.

क्या है विवाद?

2.5 लाख वर्ग फुट में फैली किंग कोठी की एक ऐसी अचल संपत्ति है जिसे एक अमीर कमाल खान ने 1880 के दशक में अपने निजी इस्तेमाल के लिए बनवाया था.

सातवें निज़ाम, मीर उस्मान अली खान, जिन्होंने बाद में इस संपत्ति का अधिग्रहण किया था, वह 1911 में सिंहासन पर बैठने के बाद इस एस्टेट में रहने चले गए. यहीं पर उन्होंने 1967 में अपनी मृत्यु से पहले अपने अंतिम कुछ दिन बिताए थे. हैदराबाद रियासत के भारत में विलय के बाद उस्मान अली खान ने अपने निजी इस्तेमाल के लिए जिन तीन महलनुमा संरचनाओं पर दावा किया था उन्हीं में से एक यह भी थी.

निज़ाम की मृत्यु के बाद से महल के संरक्षक बने हुए नज़री बाग पैलेस ट्रस्ट ने साल 2011 में निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के साथ इस महल की बिक्री के लिए बातचीत शुरू की, लेकिन यह बिक्री इस साल 28 मार्च को ही औपचारिक रूप से पूरी हुई.

वर्तमान में चल रहा दीवानी विवाद साल 2019 में तब शुरू हुआ, जब निहारिका के दो पूर्व कर्मचारियों – सुरेश कुमार और सी. रवींद्र – ने धोखाधड़ी करते हुए कथित तौर पर मुंबई स्थित फर्म की ओर से हैदराबाद स्थित इस महल को आइरिस हॉस्पिटैलिटी को बेच दिया.

तब के बाद से, दोनों फर्म इस संपत्ति पर दावा कर रही हैं और उनमें से हरेक ने दूसरे पर ‘अतिक्रमण करने’ का आरोप लगाया है. यह विवाद वर्तमान में न्ययालय में विचाराधीन है.

पिछले हफ्ते ही, यह महल एक जंग के मैदान में बदल गया था और लगभग 140 लोग तलवारों और लाठी के साथ लैस हो इस पर कब्जा करने के लिए आए थे.

विध्वंश की खबरें

रविवार 23 अप्रैल – जो कि विश्व विरासत दिवस भी था – को महल के आसपास रहने वाले निवासियों ने शिकायत की कि उनका इलाका धूल से भरा हुआ था और वे महल परिसर के भीतर जोरों की  धमधमाहट सुन सकते थे.  इन ख़बरों में निवासियों के हवाले से यह भी दावा किया गया था कि इसे ढ़हाने वाले ठेकेदार अपने कारगुजारियों को छिपाने के लिए इसकी बाहरी दीवारों को बरक़रार रखते हुए महल के अंदरूनी हिस्से को गिरा रहे थे.

दि हिंदू एक रिपोर्ट ने दावा किया कि निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड द्वारा काम पर लगाए गए बिल्डरों ने महल के परिसर के पश्चिमी हिस्से को ‘सपाट’ कर दिया था.

खबर में कहा गया है, ‘महल के एक हिस्से को तोड़ दिया गया है और अर्थमूवर के चलने के ताजे निशान के साथ जमीन को समतल कर दिया गया है. पुराने तरणताल (स्विमिंग पूल), कुएं और 101 कमरों वाले जनाना (महिला आवास) को बरकरार रखा गया है, जबकि छत और दीवारों को अर्थमूवर्स का उपयोग करके गिराया जा रहा है.’

इस खबर से हड़कंप मच गया और प्रख्यात इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने इसे ‘अक्षम्य रूप से बेवकूफाना और अदूरदर्शी’ काम कहा, जबकि लेखक और पूर्व केंद्रीय सचिव के. सुजाता राव ने यह तर्क दिया कि, किसी भी अन्य देश में इसे अब तक एक संग्रहालय में बदल दिया गया होता.

डेलरिम्पल ने ट्वीट किया, ‘यह बहुत दुखद और अक्षम्य रूप से बेवकूफाना और अदूरदर्शी काम है. अपने अतीत की खोज करने की कोशिश करने वाली भावी पीढ़ियां इस पीढ़ी को इस तरह का विनाश होने देने के लिए कभी माफ नहीं करेंगी.‘

इतिहास के एक हिस्से को इस तरह जाते हुए देखकर दुख हुआ. किसी भी अन्य देश में इसे पुनःस्थापित किया जाता और लोगों द्वारा उस काल की वास्तुकला को देखने के लिए इसे एक संग्रहालय बना दिया जाता. इसके बदले हमें केवल एक बहुमंजिला इमारत मिलेगी, बिना खिड़की वाली और आंखों को खटकने वाली.

कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि ‘ट्वीट के द्वारा जो शिकायत ध्यान में आई, वह यह थी कि कोई उन क्षेत्रों में से कुछ को समतल करने की कोशिश कर रहा था’.

उन्होंने कहा, ‘इसलिए हमने तुरंत कार्रवाई की और लिखित में यह आदेश जारी किया कि यह एक अधिसूचित संरचना है और हमने इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पुलिस को भी लिखा है कि वहां किसी भी चीज को छुआ नहीं जाना चाहिए.’

असल मालिक

निहारिका इन्फ्रास्ट्रक्चर और आइरिस हॉस्पिटैलिटी दोनों का दावा है कि वे ही इस संपत्ति के असली मालिक हैं.

निहारिका इन्फ्रास्ट्रक्चर का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट अलय रज़वी ने दिप्रिंट को बताया कि यह कंपनी इस महल की असली मालिक है और उनके पास नाज़री बाग पैलेस ट्रस्ट का एक पत्र था जिसमें उन्होंने इसका कब्जा सौंप दिया था. रजवी ने कहा, ‘ढहाए जाने का तो का सवाल ही नहीं उठता.‘

रजवी ने कहा, ‘दि हिंदू के रिपोर्टर ने किसी से ईमारत को ढहाए जाने के बारे में सुना होगा. लेकिन अरविंद कुमार ने ट्वीट किया कि ऐसे कुछ नहीं किया गया है – उन्होंने साइट (घटना स्थल) का निरीक्षण किया है और इसे सत्यापित किया है… महल के आसपास का इलाका घनी आबादी वाला है, अगर ऐसा कुछ होता है तो क्या आपको नहीं लगता कि लोग उस बारे में सतर्क होंगे और इसकी शिकायत दर्ज कराएंगे? यह सब सिर्फ एक ‘खबर’ है. महल अपनी जगह बना हुआ है.’

हालांकि. रज़वी जिस ट्वीट का हवाला दे रहे थे वह न तो किसी भी तरह के बदलाव की पुष्टि करता है और न ही इससे इनकार करता है.

इस बीच, दि हिंदू द्वारा खबर के छापे जाने के बाद रविवार को इस साइट का निरीक्षण करने वाले जीएचएमसी के एक नोटिस में कहा गया है: ‘निरीक्षण के दौरान इस साइट पर कोई अर्थमूवर वाहन नहीं पाया गया. हालांकि, कुछ वाहनों के निशान देखे गए हैं और जब साइट पर उपलब्ध व्यक्तियों से पूछताछ की गई तो यह बताया गया कि पहले इस वाहन को साइट पर लगे पेड़ों और झाड़ियों को समतल करने और उन्हें साफ करने के लिए लाया गया था.‘

आइरिस हॉस्पिटैलिटी के अमला ने अपनी ओर से कहा कि उनके वकीलों ने उन्हें कुछ दिनों के लिए तब तक कोई भी टिप्पणी करने से बचने को कहा है जब तक कि उनके पास एक प्रेस बयान तैयार नहीं हो जाता.

उन्होंने कहा, ‘हम ही असली मालिक हैं. हम कश्मीर के एक परिवार से हैं, हम एक अल्पसंख्यक परिवार हैं और हैदराबाद में हमारा अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहा है. यदि आप रिकॉर्डस की जांच करेंगे तो आप देखेंगे कि यह (जमीन) हमारी है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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