(उज्मी अतहर)
नयी दिल्ली, 30 जनवरी (भाषा) देश में कोविड-19 का पहला मामला सामने आने के बाद पिछले दो साल में गंभीर चिकित्सा के महत्व के एहसास से लेकर सही उपचार का निर्धारण स्वास्थ्यकर्मियों के सामने कुछ अहम सीख एवं चुनौतियां रही हैं।
साल 2020 में 30 जनवरी का दिन था जब वुहान विश्वविद्यालय में तीसरे वर्ष की एक मेडिकल छात्रा कोरोना वायरस से संक्रमित हुई थी और सेमेस्टर छुट्टियों मे भारत लौटी थी।
उथल-पुथल रहे इस सफर को याद करते हुए मेदांता इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिटिकल केयर एंड एनेस्थिसियोलोजी के अध्यक्ष डॉ. यतीन मेहता ने कहा कि गंभीर चिकित्सा के महत्व एवं ठोस (मजबूत) अवसंरचना को इस दौर में महसूस किया गया।
उन्होंने कहा, ‘‘ राष्ट्र द्वारा स्वास्थ्य पर 1.3 फीसद व्यय करने के बाद अब हमारी योजना इसे बढ़ाकर तीन फीसद करने की है। हमने निजी स्वास्थ्य सुविधाओं के महत्व को भी जाना है जिसने अपने स्वार्थ, वेतन कटौती की सोच को परे रखकर और यहां तक स्वास्थ्य कर्मियों (एचसीडब्ल्यू) की मौत के बाद भी इस महामारी को थामने एवं इलाज के लिए हर कदम पर सरकार का साथ दिया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ हमारे अस्पताल तथा ऑक्सीजन एवं जीवनरक्षक प्रणाली से लैस बिस्तर पिछले दो सालों में बहुत बढ़ गये हैं और अब हम अन्य लहर का मुकाबला करने के लिए तैयार है( वैसे ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसा कभी न हो) । यह डॉक्टरों , जनस्वास्थ्य पेशेवरों एवं देशों के लिए एक बहुत बड़ा अनुभव रहा और हमें आशा है कि हम बाहर आ जायेंगे।’’
फरीदाबाद के एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेंज के वरिष्ठ डॉक्टर मानव मनचंदा ने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती थी कि संक्रमित हो जाने के डर से जूझते हुए किसी भी निर्धारित उपचार पद्धति के अभाव में इस महामारी का मुकाबला कैसे किया जाए एवं मरीजों को परामर्श कैसे दिया जाए।
उन्होंने कहा, ‘‘ बतौर स्वास्थ्यकर्मी यह अनुमान लगाना अंसभव था कि आगे क्या होगा। चौथी लहर बहुत ही घातक हो सकती है या यह बड़े पैमाने पर टीकाकरण के बाद कोविड का अंत हो सकता है या कोविड अन्य फ्लू की तरह आज की एक आम स्वास्थ्य समस्या हो सकता है। ’’
दिल्ली के एचसीएमसीटी मणिपाल अस्पताल के इमरजेंसी मेडिसीन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुशांत छाबड़ा ने कहा कि पिछले दो सालों ने उन्हें सिखाया कि निजी एवं पेशेवर स्तर पर दबाव से कैसे जूझना है।
उन्होंने कहा, ‘‘कोविड-19 ने दुनियाभर में एक दहशत को जन्म दिया। हमने बिस्तरों, जीवनरक्षक प्रणालियों, दवाइयों की कमी का सामना किया और कई लोगों ने जान गंवायी। कई बार, बतौर डॉक्टर हम असहाय थे।’’
पुणे के जुपिटर अस्पताल के सीईओ डॉ राजेंद्र पाटनकर ने कहा कि स्वास्थ्यकर्मी काम के बोझ के कारण अनिंद्रा और मानसिक दबाव के शिकार हो गये और यह स्वास्थ्यकर्मियों के सामने एक अन्य चुनौती थी।
भाषा राजकुमार अविनाश
अविनाश
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.