नई दिल्ली: सोमवार शाम लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास कार में हुए धमाके के बाद पूरे इलाके में अफरा-तफरी मच गई. पर्यटक और अन्य लोग एक अनजान जगह पर फंस गए, उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि किस दिशा में जाना है, लेकिन इस डर और भगदड़ के बीच स्थानीय रिक्शा चालकों और दुकानदारों ने आगे आकर सैकड़ों लोगों को सुरक्षित जगहों तक पहुंचाया.
एक ऑटो चालक, एक दुकानदार और एक चाट ठेले पर काम करने वाला कर्मचारी उस शाम अपने आप में ‘हीरो’ बन गए. उन्होंने अपनी सुरक्षा से पहले दूसरों की जान को महत्व दिया.
रिक्शा चालक मोहम्मद जमाल ने दिप्रिंट को बताया, “जब धमाका हुआ, लोग उल्टी दिशा में चांदनी चौक की तरफ भागने लगे. सैकड़ों, बल्कि हज़ारों.”
लेकिन जमाल ने उल्टा किया. वह भागे नहीं, मदद के लिए दौड़े. 50 साल के जमाल ने करीब 60 घबराए हुए लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचाया.
उन्होंने चांदनी चौक रोड से लोगों को निकालकर चांदनी चौक मेट्रो, ओमैक्स मॉल और फतेहपुरी मस्जिद के पास उतारा.
उन्होंने कहा, “कुछ ने पैसे दिए, कुछ ने नहीं. सब अपनी जान बचा रहे थे, हम कैसे पैसे मांगते?” उन्होंने बताया, “मैंने इसी छोटे रास्ते पर लगभग 15 बार चक्कर लगाया.”
लेकिन जमाल अकेले नहीं थे. धमाके के पांच मिनट के अंदर बाज़ार के दुकानदारों ने अपने शटर गिरा दिए. इलाका भीड़ से भरा हुआ था.
लोगों की घबराहट और उलझन देखकर कई दुकानदार और रिक्शा चालक भागने की बजाय मदद के लिए आगे आए. उन्होंने बुजुर्गों और बच्चों को किले के पीछे वाली साइकिल मार्केट की ओर सुरक्षित पहुंचाया.
दुकानदार बच्छू चौधरी जिन्होंने अपनी आंखों के सामने धमाका होते देखा, ने कहा, “हमने लगभग एक हज़ार लोगों को वहां से निकलवाया.”

उन्होंने बताया कि धमाका बहुत तेज़ था — कार के कई हिस्से, यहां तक कि साइलेंसर भी, उनकी दुकान के बाहर सड़क पर गिरा. लोग इतने घबराए थे कि उन्हें दिशा समझ नहीं आ रही थी. इसलिए दुकानदारों ने रोते और डरे हुए बच्चों और बुजुर्गों को शांत करना शुरू किया.
चौधरी ने कहा, “करीब 45 मिनट में हमने हज़ारों लोगों को वहां से दूर कर दिया.”
‘बस जान बचा सकते थे’
कपड़ों का एक छोटा काउंटर लगाने वाले 58 साल के महेंद्र कुमार ने कहा कि उन्होंने अपनी ज़िंदगी में ऐसा कुछ कभी नहीं देखा.
उन्होंने याद किया, “लाल किला इलाका हमेशा भीड़ से भरा रहता है. जब धमाका हुआ, लोग हमारे बाज़ार की तरफ भागने लगे और हम खुद धमाके की वजह से घबराए हुए थे, लेकिन कुछ ही मिनटों में हमने स्थिति को संभालने की कोशिश की. हमनें पर्यटकों को रास्ता दिखाकर बाहर निकाला, क्योंकि उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाना है.”
कुमार खुद लगभग चार किलोमीटर पैदल चले, तब जाकर उन्हें एक रिक्शा मिला.

उन्होंने कहा कि वे आज वापस अपनी दुकान पर नुकसान देखने आए. बेचैनी, अभी भी खत्म नहीं हुई है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “वह आवाज़, वह धुआं, मेरी आंखों के सामने का मंज़र…मैं अब तक भूल नहीं पा रहा.”
मोहम्मद मुज़फ्फर जैन मंदिर के पास पुरुषों की पैंट बेचने का एक छोटा अस्थायी ठेला चलाते हैं.
वह भी आज सुबह अपनी दुकान देखने वापस आए, लेकिन इलाका अभी भी पुलिस द्वारा बंद था.
मुज़फ्फर ने बताया कि धमाके के तुरंत बाद वे और करीब सौ अन्य रेहड़ी वाले अपनी जान बचाने के लिए भागे.
उन्होंने कहा, “पुलिस ने हमें घायलों के पास जाने नहीं दिया. उस वक्त आप बस अपनी जान बचाने की ही कोशिश कर सकते हैं.”
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