रायपुर: राजनीतिक और कानूनी मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि छत्तीसगढ़ में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सरकारी नौकरियों एवं शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण बढ़ाकर 76 प्रतिशत करने का राज्य सरकार का कदम ‘राजनीति से प्रेरित’ है तथा यह न्यायालय में टिक नहीं पाएगा.
विशेषज्ञों का दावा है कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय पहले ही दो बार कह चुका है कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट पर सोमवार को होने वाले उपचुनाव से पहले राज्य सरकार ने यह कदम उठाया है.
राज्य में विभिन्न श्रेणियों की जनसंख्या के अनुपात में सरकारी नौकरियों में और शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए आरक्षण से संबंधित दो संशोधन विधेयक शुक्रवार को छत्तीसगढ़ विधानसभा द्वारा पारित किए गए, जिससे आरक्षण बढ़ कर 76 प्रतिशत हो गया.
विधेयकों के अनुसार, सरकारी नौकरियों में और शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए अनुसूचित जनजाति को 32 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (एससी) को 13 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को चार प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है.
विधानसभा ने एक प्रस्ताव भी पारित किया, जिसमें केंद्र से इन विधेयकों को संविधान की 9वीं अनुसूची में सूचीबद्ध करने का आग्रह किया गया है.
विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने दावा किया था कि राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले के बाद इस दिशा में दो महीने तक कोई प्रयास नहीं किया और भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार ने भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव में आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए सदन का सत्र बुलाया.
सर्व आदिवासी समाज के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भानुप्रतापपुर उपचुनाव लड़ रहे भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी अकबर राम कोर्रम ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बात करते हुए दावा किया कि राज्य सरकार ने इसके प्रभावों का आकलन किए बिना“राजनीतिक उद्देश्यों” के तहत जल्दबाजी में संशोधन विधेयक पेश किए.
उन्होंने सवाल किया, ‘जब राज्य सरकार 2012 में लागू 58 प्रतिशत आरक्षण को अदालत में वैध ठहराने में विफल रही, तो वह इसे 76 प्रतिशत तक बढ़ाने के फैसले का बचाव कैसे कर पाएगी.’
उन्होंने दावा किया कि अदालत इस निर्णय पर निश्चित रूप से रोक लगा देगी. और अंततः आरक्षण के हर लाभार्थी को नुकसान होगा.
भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के पूर्व अधिकारी सुशील त्रिवेदी ने कहा कि राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी दिए जाने के बाद भी उन्हें लागू करना कठिन होगा क्योंकि उच्चतम न्यायालय अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा पहले ही तय कर चुका है.
त्रिवेदी ने राज्य सरकार के कदम को राजनीतिक और भावनात्मक बताते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में आरक्षण से जुड़ा मामला पहले से ही शीर्ष अदालत में लंबित है.
उच्च न्यायालय के वकील अनीश तिवारी ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने पिछले दो अवसरों (अक्टूबर 2019 और सितंबर 2022 में) पर कहा था कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण अस्वीकार्य है.
तिवारी ने दावा किया, ‘उसी नीति को फिर से लागू करना संवैधानिक अदालत की शक्तियों के साथ धोखा है.’
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