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शनिवार, 10 मई, 2025
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न्यायालय ने दिल्ली में फास्ट ट्रैक अदालतें गठित करने का सुझाव दिया

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नयी दिल्ली, 24 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को अपराधियों के मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने का सुझाव दिया। शीर्ष अदालत ने यह सुझाव दिल्ली सरकार द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में सक्रिय 95 गैंगस्टर समूहों का हवाला दिये जाने के बाद दिया।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि खूंखार गैंगस्टर न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहे हैं और लंबी सुनवाई के आधार पर जमानत हासिल करने के लिए सुनवाई में देरी का फायदा उठा रहे हैं।

पीठ ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता एस डी संजय से कहा, ‘‘यदि आप मुकदमा लंबित रखते हैं, तो उन्हें जमानत मिल जाती है। इस देश में जहां गवाहों को कोई सुरक्षा नहीं है, आप अच्छी तरह जानते हैं कि उन गवाहों के साथ क्या होने वाला है।’’

संजय ने कहा कि उन्होंने एक युवा पुलिस उपायुक्त के साथ मिलकर राष्ट्रीय राजधानी में आपराधिक गतिविधियों पर एक चार्ट तैयार किया था और 95 गैंगस्टर समूहों की पहचान की थी।

पीठ ने एक अखबार में छपी खबर का हवाला देते हुए कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय की एक युवा लड़की की बेरहमी से हत्या कर दी गई और ऐसा आभास दिया गया कि यह प्रेम प्रसंग का मामला है।

न्यायमूर्ति कांत ने कहा, ‘‘आखिरकार यह पाया गया कि लड़की एक हत्या के मामले में गवाह थी। यह एक पूर्व नियोजित हत्या थी, जिसका उद्देश्य उसे अदालत के समक्ष गवाही देने से रोकना था, क्योंकि वह दबाव में नहीं आ रही थी।’’

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘माफिया इसी तरह यहां काम कर रहे हैं।’’

संजय ने कहा कि वह दिल्ली में अभियोजन विभाग के साथ विचार विमर्श कर रहे हैं और यदि जरूरत पड़ी तो पुलिस याचिकाकर्ता गैंगस्टर महेश खत्री उर्फ ​​भोली से संबंधित सभी आपराधिक मामलों की सुनवाई को एकीकृत करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएगी।

खत्री ने उच्च न्यायालय द्वारा जमानत देने से इनकार किये जाने के बाद शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है।

पीठ ने संजय को सुझाव दिया कि वह पहले उन व्यक्तियों की पहचान करे जिनके खिलाफ शीघ्र सुनवाई की जानी है।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘आप अनुमान लगा सकते हैं कि एक अदालत को पांच-दस मामले दिए गए हैं, तो इसमें कितना समय लगेगा? फिर इन गैंगस्टरों के खिलाफ विशेष रूप से सुनवाई के लिए उतनी ही विशेष अदालतें बनाने के बारे में सोचें।’’

भाषा धीरज सुरेश

सुरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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