मुंबई, 26 नवंबर (भाषा) मुंबई की एक अदालत ने वर्ष 2015 में दिए गए अपने आदेश का पालन न करने पर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को फटकार लगाई और जांच एजेंसी को निर्देश दिया कि वह जांच के दौरान जब्त किए गए 50,000 रुपये की राशि को पांच हजार रुपये के हर्जाना के साथ वापस करे।
विशेष सीबीआई न्यायाधीश वी पी देसाई ने यह भी कहा कि एजेंसी चाहे तो तय किए गए हर्जाने की वसूली जांच अधिकारी के वेतन से कर सकती है।
यह मामला सितंबर 2014 का है, जब भ्रष्टाचार संबंधी एक मामले में की गई तलाशी के दौरान सीबीआई ने आवेदक पेरिस पेजारकर के घर से 50,000 रुपये नकद जब्त किए थे।
एजेंसी को आरोपी के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं मिले, जिसके बाद नवंबर 2015 में मामला बंद कर दिया गया था। उसी समय अदालत ने जांच के दौरान जब्त दस्तावेज और सामग्री लौटाने का निर्देश दिया था।
हाल में पेजारकर ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और कहा कि उन्हें अब तक राशि नहीं मिली है और यह अदालत के विधिसम्मत आदेशों का जानबूझकर पालन न करने के समान है।
उन्होंने यह भी आग्रह किया कि नवंबर 2015 से 18 प्रतिशत ब्याज सहित राशि लौटाने का निर्देश दिया जाए।
अदालत ने 15 नवंबर के अपने आदेश में कहा, “यह आश्चर्यजनक है कि अदालत के पूर्ववर्ती न्यायाधीश के आदेश के बावजूद सीबीआई ने लगभग दस साल तक मामले को यूं ही लंबित रखा।”
अदालत ने कहा कि एजेंसी स्वयं इस निष्कर्ष पर पहुंच चुकी थी कि पेजारकर के खिलाफ कार्रवाई आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं है।
अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि नोटबंदी 8 नवंबर 2016 को लागू हुई थी, लेकिन जांच अधिकारी ने उन दो महीनों की ‘बफर अवधि’ में भी राशि लौटाने की कोई कोशिश नहीं की, जब पेजारकर इन नोटों को बैंक में जमा कर सकते थे।
अदालत ने निर्देश दिया कि पुराने नोट आरबीआई में जमा कराने के बाद एजेंसी पेजारकर को नयी मुद्रा प्रदान करे।
अदालत ने कहा कि पेजारकर वर्षों तक 50,000 रुपये से वंचित रहे, इसलिए सीबीआई उन्हें पांच हजार रुपये का हर्जाना अदा करे।
भाषा
राखी संतोष
संतोष
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