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Friday, 18 July, 2025
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न्यायालय ने मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण के समय को लेकर सवाल उठाया

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(तस्वीर के साथ)

नयी दिल्ली, 10 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के समय पर सवाल उठाते हुए बृहस्पतिवार को निर्वाचन आयोग से कहा कि आपको पहले ही कदम उठाना चाहिए था, अब थोड़ी देर हो चुकी है। हालांकि, उसने इस दलील को खारिज कर दिया कि आयोग के पास इस कवायद को करने का कोई अधिकार नहीं है।

न्यायालय ने कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण की कवायद महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो लोकतंत्र की जड़ों से जुड़ा है और यह मतदान के अधिकार से संबंधित है।

भारत निर्वाचन आयोग ने इस कवायद को न्यायोचित ठहराया और कहा कि आधार कार्ड ‘‘नागरिकता का प्रमाण’’ नहीं है।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण में दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड पर विचार न करने को लेकर सवाल किया और कहा कि निर्वाचन आयोग का किसी व्यक्ति की नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है और यह गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है।

निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने संविधान के अनुच्छेद 326 का हवाला देते हुए कहा कि प्रत्येक मतदाता को भारतीय नागरिक होना चाहिए और ‘आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है’।

इस बीच, पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों की इस दलील को खारिज कर दिया कि निर्वाचन आयोग के पास बिहार में ऐसी किसी कवायद का अधिकार नहीं है।

पीठ ने कहा कि निर्वाचन आयोग जो कर रहा है वह संविधान के तहत आता है और पिछली बार ऐसी कवायद 2003 में की गयी थी।

याचिकाकर्ताओं की दलीलों का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग को तीन प्रश्नों का उत्तर देना होगा, क्योंकि बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया ‘‘लोकतंत्र की जड़ से जुड़ी है और यह मतदान के अधिकार से संबंधित है।’’

उच्चतम न्यायालय ने निर्वाचन आयोग से तीन मुद्दों पर जवाब मांगा कि क्या उसके पास मतदाता सूची में संशोधन करने, अपनायी गयी प्रक्रिया और कब यह पुनरीक्षण किया जा सकता है, उसका अधिकार है।

द्विवेदी ने कहा कि समय के साथ-साथ मतदाता सूची में नामों को शामिल करने या हटाने के लिए उनका पुनरीक्षण आवश्यक होता है और एसआईआर ऐसी ही कवायद है।

उन्होंने पूछा कि अगर चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची में संशोधन का अधिकार नहीं है तो फिर यह कौन करेगा?

बहरहाल, निर्वाचन आयोग ने आश्वस्त किया कि किसी को भी अपनी बात रखने का अवसर दिए बिना मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा।

इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने बिहार में मतदाता सूचियों के एसआईआर कराने के निर्वाचन आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई शुरू की।

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण की अनुमति दी जा सकती है।

उन्होंने कहा कि समग्र एसआईआर के तहत लगभग 7.9 करोड़ नागरिक आएंगे और यहां तक कि मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड पर भी विचार नहीं किया जा रहा है।

उच्चतम न्यायालय में इस मामले के संबंध में 10 से अधिक याचिकाएं दायर की गयी हैं जिनमें प्रमुख याचिकाकर्ता गैर-सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ है।

राजद सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा के अलावा, कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल, शरद पवार नीत राकांपा गुट से सुप्रिया सुले, भाकपा से डी राजा, समाजवादी पार्टी से हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (उबाठा) से अरविंद सावंत, झारखंड मुक्ति मोर्चा से सरफराज अहमद और भाकपा (माले) के दीपांकर भट्टाचार्य ने संयुक्त रूप से शीर्ष अदालत का रुख किया है।

सभी नेताओं ने बिहार में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण के निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती दी है और इसे रद्द करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।

भाषा

गोला नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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