नयी दिल्ली, तीन फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दहेज निषेध अधिनियम के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली और महिला केंद्रित कानूनों के दुरुपयोग का आरोप लगाने वाली याचिका को सोमवार को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने यह फैसला दिया।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि वह दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा दो और तीन सहित कुछ प्रावधानों को चुनौती देना चाहते हैं।
अधिनियम की धारा दो दहेज की परिभाषा से संबंधित है, जबकि धारा तीन दहेज देने या लेने के लिए दंड से संबंधित है।
वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता पुरुषों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले इन कानूनों को लेकर चिंतित हैं।
जनहित याचिका (पीआईएल) में दहेज निषेध अधिनियम, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम और तत्कालीन भारतीय दंड संहिता में महिलाओं के प्रति क्रूरता के प्रावधान जैसे कानूनों का जिक्र किया गया है और उनकी वैधता पर सवाल उठाया गया है।
याचिकाकर्ता रूपशी सिंह ने अपनी याचिका में महिलाओं को नुकसान से बचाने के लिए बनाए गए कानून के दुरुपयोग और महिलाओं द्वारा झूठी शिकायतें दर्ज कराकर पुरुषों के खिलाफ होने वाले अत्याचार से उन्हें संरक्षण दिलाने का अनुरोध किया गया है।
जनहित याचिका में कहा गया कि दहेज निषेध अधिनियम धर्म के आधार पर भेदभावपूर्ण है तथा इसमें घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के प्रावधानों को महिला-केंद्रित तथा पुरुषों के विरुद्ध भेदभावपूर्ण बताया गया है।
भाषा सुरभि नरेश
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