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Thursday, 31 July, 2025
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बीआरएस विधायकों की अयोग्यता पर तीन महीने में फैसला लें तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष: न्यायालय

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नयी दिल्ली, 31 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश दिया है कि वह सत्तारूढ़ कांग्रेस में शामिल होने वाले भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के 10 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर तीन महीने में फैसला करें।

न्यायालय ने कहा कि यदि राजनीतिक दलबदल पर अंकुश नहीं लगाया गया तो यह लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता पर फैसला करते समय विधानसभा अध्यक्ष एक न्यायाधिकरण के रूप में कार्य करते हैं, लिहाजा उन्हें न्यायिक जांच के खिलाफ “संवैधानिक प्रतिरक्षा” प्राप्त नहीं है।

संविधान की दसवीं अनुसूची दल-बदल के आधार पर अयोग्यता के प्रावधानों से संबंधित है।

तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष को अयोग्यता याचिकाओं पर तीन महीने में निर्णय करने का निर्देश देते हुए प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘राजनीतिक दलबदल राष्ट्रीय बहस का विषय रहा है। अगर इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो यह लोकतंत्र को छिन्न-भिन्न कर सकता है।”

शीर्ष अदालत ने कहा कि अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने में स्पीकर की ओर से की जाने वाली देरी से निपटने के लिए एक तंत्र विकसित करना संसद का काम है।

अदालत ने कहा, ‘हालांकि हमारे पास कोई परामर्श देने का अधिकार नहीं है, फिर भी यह संसद को विचार करना है कि दलबदल के आधार पर अयोग्यता के मुद्दे पर निर्णय लेने का महत्वपूर्ण कार्य अध्यक्ष/सभापति को सौंपने की व्यवस्था राजनीतिक दलबदल से प्रभावी ढंग से निपटने के उद्देश्य की पूर्ति कर रही है या नहीं।’

पीठ ने कहा, ‘अगर हमारे लोकतंत्र की बुनियाद और उसे कायम रखने वाले सिद्धांतों की रक्षा करनी है, तो यह पता लगाना जरूरी है कि मौजूदा व्यवस्था पर्याप्त है या नहीं। हम मानते हैं कि इस पर फैसला संसद को ही लेना है।’

अदालत ने पी. कौशिक रेड्डी समेत बीआरएस के नेताओं की अपीलों को स्वीकार कर लिया, जिसमें विधानसभा अध्यक्ष को दलबदल करने वाले विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर शीघ्र निर्णय लेने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

पीठ ने तेलंगाना उच्च न्यायालय की खंडपीठ के 22 नवंबर, 2024 के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें एकल न्यायाधीश के पूर्व आदेश में हस्तक्षेप किया गया था।

पीठ ने कहा, ‘अयोग्यता की कार्यवाही अध्यक्ष को सौंपने का उद्देश्य अदालतों में होने वाली देरी से बचना है।’

पीठ ने विधानसभा अध्यक्ष से कहा कि वह विधायकों को अयोग्यता की कार्यवाही को लंबा न खींचने दें। साथ ही, अगर विधायक कार्यवाही को लंबा खींचते हैं, तो विधानसभा अध्यक्ष प्रतिकूल निष्कर्ष निकाल सकते हैं।

हालांकि, फैसले में कुछ पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए यह दलील खारिज कर दी गई कि शीर्ष अदालत को स्वयं ही अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय करना चाहिए।

अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि विधानसभा अध्यक्ष ने लगभग सात महीने तक अयोग्यता याचिकाओं पर नोटिस भी जारी नहीं किया।

पीठ ने कहा, ‘इसलिए हम अपनी ओर से यह प्रश्न पूछते हैं कि क्या अध्यक्ष ने शीघ्रता से कार्य किया है। शीघ्रता को ध्यान में रखकर ही संसद ने अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय करने का महत्वपूर्ण कार्य अध्यक्ष/सभापति को सौंपा था।”

पीठ ने कहा, ‘सात महीने की अवधि तक नोटिस जारी न करना किसी भी तरह से त्वरित कार्रवाई नहीं मानी जा सकती।’

विस्तृत आदेश की प्रतीक्षा की जा रही है।

शीर्ष अदालत ने तीन अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

न्यायालय ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी के विधानसभा में दिए गए इस बयान पर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी कि उपचुनाव नहीं होंगे।

अदालत ने कहा था कि उनसे (रेड्डी) ‘कुछ हद तक संयम’ बरतने की अपेक्षा की जाती है।

शीर्ष अदालत में दायर एक याचिका में बीआरएस के तीन विधायकों की अयोग्यता की मांग वाली याचिकाओं से संबंधित तेलंगाना उच्च न्यायालय के नवंबर 2024 के आदेश को चुनौती दी गई है, जबकि एक अन्य याचिका दलबदल करने वाले शेष सात विधायकों से संबंधित है।

भाषा जोहेब नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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