नई दिल्ली: राज्य सभा में 7 फरवरी को शिवसेना सांसद अनिल देसाई ने जनसंख्या पर नियंत्रण करने के लिए संविधान संशोधन का प्रस्ताव रखा. देसाई ने प्राइवेट मेंबर के तौर पर सदन में यह बिल पेश किया है.
प्रस्ताव में संविधान के अनुच्छेद 47 में संशोधन की बात कही गई है. इसके अनुसार संशोधन में कहा गया कि, ‘राज्य के द्वारा छोटे परिवार को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जो अपने परिवार में दो बच्चे पैदा करने को बढ़ावा देगा उन्हें टैक्स, रोज़गार, शिक्षा में भी आगे बढ़ने को लेकर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.’
प्रस्ताव में यह भी लिखा है कि ‘जो छोटे परिवार को बढ़ावा नहीं देता है उन्हें किसी भी प्रकार का कोई फायदा नहीं मिलेगा और जो मिल भी रहा है उसे भी वापस ले लिया जाना चाहिए. जिससे जनसंख्या नियंत्रण में रह सके.’
संशोधन प्रस्ताव के मूल ध्येय और कारणों में कहा गया है कि भारत की जनसंख्या पहले ही 125 करोड़ से ज्यादा हो गई है जो कि बहुत भयावह है. पिछले 40 सालों के भीतर ही देश की आबादी दोगुनी हो गई है और आने वाले कुछ दशकों के भीतर भारत चीन को पीछे छोड़ देगा.
राज्य सभा में रखे इस बिल के कारणों में लिखा है कि यूएन की रिपोर्ट के अनुसार भारत, पाकिस्तान और नाइजीरिया उन देशों में शामिल हैं जहां की जनसंख्या वृद्धि दर सबसे ज्यादा है. भारत विश्व में दूसरा सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है.
संशोधन प्रस्ताव में कहा गया है कि जनसंख्या वृद्धि भविष्य में काफी दिक्कतें पैदा कर सकती हैं. इसके लिए हमें चिंतित होना चाहिए. केंद्र और राज्य सरकारों को नीतियां लाकर इस पर नियंत्रण करना चाहिए.
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संशोधन प्रस्ताव में देश के संसाधनों पर पड़ रहे भारी दबाव की तरफ भी ध्यान दिलाया गया है.
इसमें कहा गया है कि लोगों को छोटे परिवार रखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए जिसे टैक्स में छूट, सामाजिक योजनाओं में फायदा और स्कूल में दाखिला देने जैसी सुविधा देकर इसे बढ़ावा दिया जा सकता है.
जनसंख्या नियंत्रण पर पहले भी कई बार आ चुका है प्राइवेट मेंबर बिल
नवंबर 2019 में लोकसभा में भाजपा सांसद अजय भट्ट ने ‘छोटे परिवार को अपनाकर जनसंख्या नियंत्रण’ बिल का प्रस्ताव रखा था.
राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा ने जुलाई में सदन में जनसंख्या नियंत्रण बिल को लेकर प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया था. जिसमें उनकी मांग थी कि जिनके दो से ज्यादा बच्चे हो उन्हें इस नियम के बनने के बाद एमपी, एमएलए बनने नहीं दिया जाना चाहिए. इसमें कहा गया था कि सरकारी कर्मचारियों को अंडरटैकिंग देनी चाहिए कि वो दो से ज्यादा बच्चे पैदा नहीं करेंगे.
2016 में भाजपा सांसद ने लोकसभा में जनसंख्या नियंत्रण पर प्राइवेट बिल लेकर आए थे. लेकिन बिल वोटिंग होने के स्तर पर नहीं पहुंच सका था.
इससे पहले 2015 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने एक ऑनलाइन पोल किया था जिसमें पूछा गया था कि क्या मोदी सरकार को जनसंख्या निंयत्रण पर कोई नीति बनानी चाहिए.
क्या होता है प्राइवेट मेंबर बिल
कोई भी सांसद जो मंत्रिमंडल में सांसद नहीं होता है वो प्राइवेट मेंबर होता है. पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च के अनुसार संसद का मुख्य काम बहस करना और कानून बनाना होता है. मंत्री और प्राइवेट मेंबर कानून बनाने की प्रक्रिया में हिस्सा लेते हैं.
मंत्री द्वारा लाए गए बिल को सरकारी बिल कहा जाता है जिसका समर्थन सरकार करती है. वहीं प्राइवेट मेंबर बिल उन सांसदों द्वारा पेश किया जाता है जो मंत्री नहीं होते हैं. इसका मुख्य उद्देश्य सरकार को उन मुद्दों की तरफ ध्यान दिलाता होता है जो महत्वपूर्ण होते हैं और जिनपर कानूनी हस्तक्षेप की जरूरत होती है.
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सदन में बिल पेश होने से एक महीने पहले मेंबर द्वारा नोटिस देना पड़ता है. जिसे सदन के सचिव द्वारा देखा जाता है और उसके कानूनी पक्षों पर ध्यान दिया जाता है.
सरकार द्वारा लाए गए बिल को किसी भी दिन पेश किया जा सकता है और उन पर कभी भी चर्चा हो सकती है. लेकिन प्राइवेट मेंबर बिल केवल शुक्रवार को ही पेश किया जा सकता है और उसी दिन बहस भी होती है.
पिछले 50 सालों में कोई भी प्राइवेट मेंबर बिल पारित नहीं हो पाया है. पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च के अनुसार अंतिम बार 1970 में दोनों सदनों से प्राइवेट मेंबर बिल पास हुआ था.
अभी तक 14 प्राइवेट मेंबर बिल ही कानून का रूप ले पाए हैं जिनमें से पांच को राज्य सभा में पेश किया गया था.