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Saturday, 2 November, 2024
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टाटा मेमोरियल सेंटर के प्रोजेक्ट ने कैंसर की दवाओं की लागत में 99% तक की कटौती का किया वादा

नेशनल कैंसर ग्रिड के 23 अस्पताल, 250 से अधिक कैंसर केंद्रों का एक नेटवर्क, अधिक मूल्य वाली ऑन्कोलॉजी और सहायक-देखभाल दवाओं की पायलट ‘पूल खरीद’ कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: देश के प्रमुख कैंसर अस्पताल — टाटा मेमोरियल सेंटर के नेतृत्व में महत्वपूर्ण ऑन्कोलॉजी और सहायक-देखभाल दवाओं की ‘पूल खरीद’ पर भारत में एक अग्रणी पायलट परियोजना ने लागत पर उल्लेखनीय बचत (औसतन 82 प्रतिशत) का प्रदर्शन किया है.

परियोजना पर एक अध्ययन — समूह बातचीत और मूल्य निर्धारण पर सहमति का उपयोग करके एकत्रित खरीद की व्यवहार्यता को दर्शाता है — इस साल जून में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा इसे एक बुलेटिन में प्रकाशित किया गया था.

इसे टाटा मेमोरियल सेंटर के डॉक्टर्स ने लिखा था, जिसमें इसके निदेशक सी.एस. प्रमेश और जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, पुडुचेरी और जुलेखा येनेपोया इंस्टीट्यूट ऑफ ऑन्कोलॉजी, येनेपोया के डॉक्टर भी शामिल थे.

अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, 2019-20 में शुरू की गई परियोजना ने 40 अधिक-मूल्य और उच्च-मात्रा वाली दवाओं के संबंध में — परियोजना के हिस्से के रूप में निर्धारित आरक्षित मूल्य, साथ ही अधिकतम खुदरा मूल्य पर — काफी बचत हासिल की, जिन्हें कैंसर के रोगियों में उपयोग किया जाता है.

इनमें पारंपरिक साइटोटॉक्सिक दवाएं, लक्षित थेरेपी, एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीमेटिक्स और वृद्धि कारक शामिल थे.

परियोजना के हिस्से के रूप में नेशनल कैंसर ग्रिड (एनसीजी) के 23 अस्पताल, जो भारत में 250 से अधिक कैंसर केंद्रों का एक नेटवर्क है और देश के दो-तिहाई से अधिक कैंसर रोगियों का इलाज करते हैं, ने दवाओं के रेट में सुधार के लिए इनकी पायलट पूल खरीद की.

दिप्रिंट से बात करते हुए, डॉ. प्रमेश ने कहा कि इस परियोजना को विशेष रूप से छोटे केंद्रों के लिए महत्वपूर्ण कैंसर दवाओं के लिए विश्वसनीय आपूर्तिकर्ताओं की कमी और दवाओं की अधिक लागत के कारण प्रेरित किया गया था.

उन्होंने कहा, “कई केंद्रों पर ज़रूरी दवाओं का स्टॉक खत्म हो रहा था और कई मामलों में दवा निर्माता दवाओं के लिए ऊंची कीमतें बता रहे थे, जो प्रमुख शहरों के बाहर कैंसर अस्पतालों के लिए मुश्किल साबित हो रहा था.”

अधिकतम खुदरा कीमतों के आधार पर 23 केंद्रों से दवाओं की एकत्रित मांग 15.6 बिलियन रुपये ($197 मिलियन) के बराबर थी. इस प्रक्रिया में तकनीकी और वित्तीय मूल्यांकन शामिल था, जिसके बाद व्यक्तिगत केंद्रों और चयनित विक्रेताओं के बीच अनुबंध हुआ.

पहल के जरिए खरीदी गई कुछ दवाओं में बेवाकिज़ुमैब शामिल है, जो लक्षित कैंसर दवा है जिसका उपयोग ग्लियोब्लास्टोमा के अलावा कोलन, फेफड़े और गुर्दे की कोशिका के कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है; बोर्टेज़ोमिब, रक्त प्लाज्मा सेल कैंसर के उपचार में उपयोग किया जाता है; डॉक्सोरूबिसिन, स्तन और कोमल ऊतकों के कैंसर के लिए; और ट्रैस्टुज़ुमैब, एक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी है जिसका उपयोग स्तन कैंसर और पेट के कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है.

अध्ययन में कहा गया है कि इस परियोजना के परिणामस्वरूप अधिकतम खुदरा कीमतों की तुलना में 13.2 बिलियन रुपये ($166.7 मिलियन) की बचत हुई. इसमें कहा गया है कि बचत 23 से 99 प्रतिशत (औसत 82 प्रतिशत) के बीच थी और ब्रांडेड और नई पेटेंट दवाओं की तुलना में जेनेरिक दवाओं से अधिक थी.

पेपर में कहा गया है, “यह अध्ययन उच्च मूल्य वाली दवाओं के लिए एकत्रित खरीद में समूह बातचीत के फायदों को उजागर करता है, एक दृष्टिकोण जिसे अन्य स्वास्थ्य प्रणालियों पर लागू किया जा सकता है.”

कैंसर के इलाज को अक्सर भारत में विनाशकारी स्वास्थ्य देखभाल व्यय से जोड़ा गया है.

फ्रंटियर्स इन पब्लिक हेल्थ जर्नल में पिछले साल प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि, प्रति मरीज, कैंसर के इलाज पर वार्षिक प्रत्यक्ष आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (ओओपीई) 3,31,177 रुपये या 3.31 लाख रुपये होने का अनुमान लगाया गया था. इसमें कहा गया है कि बाह्य रोगी उपचार और अस्पताल में भर्ती के लिए डायग्नोस्टिक्स (36.4 प्रतिशत) और दवाएं (45 प्रतिशत) ओओपीई के प्रमुख योगदानकर्ता हैं.


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सामूहिक बातचीत

एनसीजी ने परियोजना के लिए एक मूल्य-खोज सेल की शुरुआत की, जिसने पूल-प्रोक्योरमेंट दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित किया क्योंकि यह कम संसाधन-गहन है और महत्वपूर्ण निवेश के बिना टिकाऊ है. यह WHO द्वारा सुझाया गया समूह-अनुबंध दृष्टिकोण भी है.

इस दृष्टिकोण में दवा की कीमतों पर सामूहिक बातचीत और आपूर्तिकर्ताओं और वितरकों का चयन शामिल है, हालांकि, वास्तविक खरीदारी व्यक्तिगत सदस्य संगठनों द्वारा की जाती है.

वार्षिक खरीद बजट पर सबसे अधिक प्रभाव डालने वाली दवाओं का निर्धारण करने के लिए, सेल ने तीन प्रमुख कैंसर केंद्रों पर एक पायलट अध्ययन किया. ऑन्कोलॉजिस्ट और अस्पतालों के इनपुट भी इसमें शामिल थे.

उचित मूल्य निर्धारित करने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए, सेल ने एक आरक्षित मूल्य स्थापित किया – अधिकतम मूल्य जिस पर या उससे नीचे भाग लेने वाले सदस्य समूह वार्ता के माध्यम से दी गई दवा खरीदने के लिए सहमत होंगे.

यदि मूल्य-खोज सेल द्वारा निर्धारित अंतिम मूल्य बातचीत चक्र में आरक्षित मूल्य से अधिक हो जाता है, तो सदस्य खरीद प्रक्रिया से बाहर निकल सकते हैं.

प्रत्येक भाग लेने वाले केंद्र से पिछले वर्ष के लिए चयनित स्टॉक कीपिंग इकाइयों (स्टॉक कीपिंग यूनिट इन्वेंट्री वर्गीकरण के लिए एक विधि है) से ब्रांड, जेनेरिक और अणुओं के विवरण के साथ खरीद की लागत प्रदान करने का अनुरोध किया गया था.

इस डेटा के आधार पर, प्रत्येक सूचीबद्ध दवा के लिए न्यूनतम मूल्य का उपयोग करके आरक्षित मूल्य को बेंचमार्क किया गया था. जेनेरिक और इनोवेटर अणुओं के लिए अलग-अलग आरक्षित मूल्य निर्धारित किए गए थे.

फिर आरक्षित कीमतों को उनके समझौते के लिए भाग लेने वाले केंद्रों को प्रसारित किया गया. सभी भाग लेने वाले केंद्र न्यूनतम खरीद प्रतिबद्धता पर सहमत हुए.

इस प्रतिबद्धता ने “एक दृढ़ प्रतिबद्ध मात्रा सुनिश्चित की, जिसे मूल्य-खोज सेल फार्मास्युटिकल कंपनियों को संभावित वार्षिक मात्रा के रूप में इंगित कर सकता है.”

विक्रेताओं को अंतिम रूप देने पर, मूल्य-खोज सेल ने प्रत्येक केंद्र और विक्रेता के बीच बिक्री के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करने की सुविधा प्रदान की.

लेखकों ने बताया कि मूल्य-खोज सेल की स्थापना से लेकर अनुबंधों पर हस्ताक्षर करने तक की पूरी प्रक्रिया में कुल एक वर्ष का समय लगा.

उन्होंने कहा, “लागत बचत का संभावित प्रभाव बहुत बड़ा है, न केवल देखभाल की सामर्थ्य में सुधार और रोगियों के लिए अपनी जेब से होने वाली लागत को कम करना, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल प्रदान करने के लिए अन्य पहलों के लिए दवा खरीद निधि के पुन: आवंटन की अनुमति देना भी है.”

बचत जेनेरिक दवाओं तक ही सीमित नहीं थी. लेखकों का कहना है कि उन्हें इनोवेटर दवाओं के साथ भी देखा गया, हालांकि, कुछ हद तक.

उन्होंने लिखा, “ये बचत उल्लेखनीय हैं क्योंकि ये दवाओं और कंपनियों दोनों पर लगाए गए सख्त मानकों के कारण गुणवत्ता से समझौता किए बिना हासिल की गईं.”

प्रमेश ने कहा कि खरीद प्रक्रिया की एक महत्वपूर्ण विशेषता “अंतर्निहित मैट्रिक्स थी जो केवल न्यूनतम उद्धृत कीमतों के बजाय गुणवत्ता आश्वासन के आधार पर दवाओं की खरीद सुनिश्चित करती थी”.

टाटा मेमोरियल सेंटर के निदेशक ने कहा, “इसके अलावा हमने एक शर्त रखी थी कि यदि कोई दवा निर्माता छोटे केंद्रों को आपूर्ति करने में विफल रहता है, तो उन्हें बड़े कैंसर अस्पतालों में भी आपूर्ति करने से ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा.”

एक स्वतंत्र सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, जो एक अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संस्था (एनजीओ) के साथ काम करते हैं, ने नाम न छापने की शर्त इस पहल के परिणाम को संभावित “गेम-चेंजर” करार दिया.

उन्होंने कहा, “इस तरह की पहल से कैंसर की देखभाल पर अपनी जेब से होने वाले खर्च को काफी हद तक कम किया जा सकता है. महत्वपूर्ण बात यह है कि परियोजना ने जेनेरिक दवाओं के लिए उचित तंत्र के माध्यम से दवाओं की गुणवत्ता के मुद्दों को भी संबोधित किया है.”


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‘दूरगामी प्रभाव’

लेखकों ने नोट किया, नेटवर्क में एकत्रित खरीद की सफलता के आधार पर ऑन्कोलॉजी दवाओं के लिए बड़े पैमाने पर ऐसी बातचीत आयोजित करना फायदेमंद साबित हो सकता है, जैसे कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के माध्यम से जो सरकारी स्वास्थ्य बीमा पहल आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजय) चलाता है.

वो कहते हैं, इससे प्रक्रिया में “सौदेबाजी की शक्ति बढ़ेगी” और पूरे राष्ट्रीय नेटवर्क पर पहुंच और सामर्थ्य पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा.

लेखकों का कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर बातचीत से विक्रेता के एकाधिकार या एकल विक्रेता द्वारा आपूर्ति की जाने वाली पेटेंट दवाओं की चुनौतियों का भी समाधान किया जा सकता है.

उन्होंने कहा, इसके अलावा इनोवेटर और एकल-विक्रेता दवाओं के लिए अंतिम कीमत निर्धारित करने के लिए प्रभावकारिता और सुरक्षा डेटा पर उपलब्ध साहित्य का व्यापक मूल्यांकन महत्वपूर्ण है. लेखकों का कहना है कि यदि कोई दवा महत्वपूर्ण नैदानिक ​​लाभों की सीमा को पूरा करती है, तो अनुकूली स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी का उपयोग करके लागत-प्रभावशीलता मूल्यांकन कीमतों पर बातचीत के लिए मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है.

इस पहल की सफलता से उत्साहित होकर एनसीजी ने उपभोग्य सामग्रियों, उपकरण और इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड प्रणालियों को शामिल करने के लिए एकत्रित खरीद के दूसरे चक्र का विस्तार करने का निर्णय लिया है.

लेखकों ने कहा, “हमें यह देखने में रुचि है कि क्या मूल्य-खोज-सेल मॉडल, जब समूह वार्ता में लागू किया जाता है, तो ये अन्य निम्न और मध्यम आय वाले देश, भविष्य में सभी आवश्यक दवाओं, उपकरणों और आपूर्ति के लिए मानक खरीद पद्धति के रूप में पूल्ड खरीद की ओर बदलाव की सुविधा के लिए समान मूल्य में कटौती और गुणवत्ता में सुधार लाएंगे.”

डॉ. प्रमेश ने कहा कि कहीं अधिक संख्या में कैंसर अस्पताल खरीद प्रक्रिया के दूसरे चक्र में रुचि दिखा रहे हैं. उन्होंने कहा, “इसके अलावा, आंध्र प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के सरकारी अस्पताल भी इस पहल में शामिल हो सकते हैं.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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