नई दिल्ली: 11 साल पहले सर्दियों की गुनगुनी धूप वाली एक दोपहर सलमान तासीर इस्लामाबाद के एक शानदार रेस्तरां से बाहर निकले ही थे कि नीली जैकेट पहने और ऊनी टोपी लगाए एक व्यक्ति ने अपनी मशीन-गन की सारी गोलियां पाकिस्तानी पंजाब प्रांत के तत्कालीन गवर्नर के सीने में उतार दीं.
तासीर को 2010 में ईशनिंदा के आरोप में मौत की सजा पाने वाली आसिया नोरेन का बचाव करने के कारण विश्व स्तर पर तो खासी सराहना मिली थी, लेकिन साथ ही कट्टरपंथियों की तरफ से मौत की धमकियां भी मिली थीं. तासीर की सुरक्षा में ही तैनात रहे एक पुलिस बॉडीगार्ड ने उनकी हत्या के बाद चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ अपना गुनाह स्वीकारते हुए कहा था, ‘ईशनिंदा करने वाले की सजा मौत ही है,’
राजस्थान पुलिस के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि तासीर के हत्यारे मलिक मुमताज हुसैन कादरी को उकसाने में कथित तौर पर कराची स्थित मुख्यालय वाले जिस मिशनरी समूह दावत-ए-इस्लामी का हाथ था, उसकी उदयपुर में एक दर्जी की हत्या मामले में भी अहम भूमिका हो सकती है.
इस संगठन का नाम जहीर हसन महमूद से भी जुड़ा है, जिसके नाम का मतलब है ‘इस्लाम को न्योता’. इसने 2020 में पेरिस की सड़कों पर दो लोगों को चाकुओं से गोदकर मार डाला था. महमूद के पिता ने बताया था कि यह हमला चार्ली हेब्दो के पैगंबर मुहम्मद के कार्टून को फिर से प्रकाशित करने के फैसले के जवाब में किया गया था. यह हमला व्यंग्य पर केंद्रित इस मैगजीन के दफ्तर पर 2015 में हुए आतंकवादी हमले के मामले में मुकदमा शुरू होने से कुछ ही दिन पहले किया गया था. गौरतलब है कि मैगजीन के दफ्तर पर हमले में उनके 11 कर्मचारियों की मौत हो गई थी.
राजस्थान के पुलिस प्रमुख मोहन लाल लाठेर ने बुधवार को बताया कि उदयपुर के दर्जी कन्हैया लाल तेली का सिर कलम करने वाले दो लोगों में से एक गौस मोहम्मद दिसंबर 2013 के अंतिम सप्ताह में पाकिस्तान गया था.
पुलिस सूत्रों ने बताया कि गौस भी बरेलवी मसलक से जुड़े लगभग तीन दर्जन भारतीय नागरिकों के उस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा था जिन्होंने दावत-ए-इस्लामी केंद्र में करीब डेढ़ महीने बिताए थे.
सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि गौस उस यात्रा के दौरान मिले कई पाकिस्तानी नागरिकों के संपर्क में बना रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले कुछ हफ्तों से गौस भारतीय जनता पार्टी की निलंबित पदाधिकारी नूपुर शर्मा की पैगंबर मुहम्मद पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर नाराजगी और उनके समर्थन में सोशल मीडिया पोस्ट करने के लिए कन्हैया लाल को मार डालने के अपने फैसले के बारे में बात करता रहा है.
एक मुखौटा संगठन
तासीर की हत्या के बाद दावत-ए-इस्लामी ने हत्यारे से किसी भी तरह के संबंध से इनकार किया था.
दावत-ए-इस्लामी के प्रवक्ता महमूद अहमद अटारी ने 2011 में न्यूज एजेंसी एएफपी को बताया कि समूह ‘अहिंसक और अराजनीतिक’ है.
हालांकि, इसकी आधिकारिक वेबसाइट, अब तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को ‘मजहबी झुकाव वाला शहजादा’ और ‘जिहादी’ करार देते हुए उसे श्रद्धांजलि देने वाला एक वीडियो होस्ट करती है. कादरी के मुकदमे को कवर करने वाले दो पाकिस्तानी पत्रकारों ने दिप्रिंट को बताया कि दावत-ए-इस्लामी नेता नियमित रूप से उनकी रिहाई की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन में शामिल होते रहे हैं.
एक सशक्त बरेलवी मौलवी के नेतृत्व में दावत-ए-इस्लामी पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर धर्मार्थ अभियान चलाता है, जिसमें वंचित तबके के लोगों को भोजन और चिकित्सा सहायता मुहैया कराना शामिल है. समूह की शाखाएं अमेरिका और यूरोप के कई शहरों में भी हैं.
इसकी यूरोपीय शाखाओं को संचालन भी विवादों से परे नहीं रहा है—2019 में जर्मन शहर ऑफेनबैक में दावत-ए-इस्लामी की बैठक में मौलवियों ने तासीर के हत्यारे की प्रशंसा की थी, जबकि ईशनिंदा करने वाले अन्य लोगों की हत्या का आह्वान किया था.
अन्य नव-कट्टरपंथी समूहों की तरह दावत-ए-इस्लामी बहुदेववादियों का कड़ा विरोध करता है, जो कहता है कि ‘पक्षी उनके मांस को नोच-नोचकर खाएंगे या फिर उनके शरीर के अंगों को अलग करके उन्हें दूर घाटियों में फेंक देंगे.’
समूह के साहित्य में यहूदियों के खिलाफ काफी कठोर भाषा का इस्तेमाल किया जाता है.
इस संगठन की स्थापना 1981 में सैन्य शासक जनरल मुहम्मद जिया-उल-हक के शासनकाल में प्रतिद्वंद्वी देवबंदी और सलाफी समूहों को मिले संरक्षण के खिलाफ बरेलवी मसलक की प्रतिक्रिया के तौर पर हुआ था. सेना के ही संरक्षण में यह संगठन फला-फूला.
हालांकि, इस बात का कोई सबूत नहीं है कि दावत-ए-इस्लामी आतंकवादी समूहों के लिए कोई भर्ती करता है या उन्हें हिंसा के लिए धन मुहैया कराता है.
यद्यपि, बड़ी संख्या में दावत-ए-इस्लामी कैडर तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान से जुड़ा है, जिसने 2011 से ईशनिंदा के मसले पर कई हिंसात्मक आंदोलनों का नेतृत्व किया.
फ्रांसीसी राजदूत के निष्कासन की मांग को लेकर आंदोलन के बाद पिछले साल पाकिस्तानी सरकार ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया था. हालांकि, टीएलपी और सरकार के बीच एक समझौते के बाद प्रतिबंध हटा दिया गया था.
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कट्टरपंथी विचारधारा से प्रेरित
कन्हैया लाल का सिर काटने का वीडियो बनाने वाले गौस मोहम्मद और रियाज अटारी के बारे में कुछ ऐसी जानकारियां सामने आई है जो उन्हें अपने सामाजिक परिवेश से कटे हुए और संभावित आतंकवादी के तौर पर चिह्नित करती हैं. ये दोनों आरोपी वंचित पृष्ठभूमि से आते हैं और उनके परिवार में कई भाई-बहन हैं.
रियाज, एक स्थानीय मस्जिद में केयरटेकर के तौर पर काम करता था, और उसके परिवार से परिचित एक स्थानीय निवासी ने कहा कि वो कुछ साल पहले ही राजसमंद जिले के भीम से उदयपुर आया था.
एक वेल्डर का काम करने वाला गौस भी करीब दो दशक पहले भीलवाड़ा जिले के आसिंद से इस शहर आकर बसा था, जब उसने एक स्थानीय युवती से शादी की थी.
खाजा पीर में जहां ये दोनों रहते थे, वहीं पड़ोस में रहने वाले एक व्यक्ति ने दिप्रिंट को बताया कि वे एकदम कट्टर धार्मिक झुकाव वाले थे. उसने कहा कि इन दोनों और उनके समूह के कुछ लोगों को शराब पीने जैसी गैर-मजहबी गतिविधियों को लेकर स्थानीय लोगों को फटकार भी लगाई थी.
स्थानीय सांप्रदायिक तनाव, धार्मिक विवादों और अंतर-धार्मिक विवाहों से उत्पन्न तनावों ने इस समूह को क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने का मौका भी दिया.
दो लोगों के बनाए वीडियो टेप में कुछ मुसलमानों पर लोगों की मदद करने के बजाये अपने ही समुदाय के सदस्यों को डराने-धमकाने का आरोप लगाया गया है.
खाजा पीर निवासी ने कहा कि इस संदर्भ में हाल ही में गौस और प्रॉपर्टी बिजनेस में शामिल एक स्थानीय छोटे अपराधी के बीच विवाद की जानकारी हासिल की जा सकती है.
पुलिस सूत्रों का दावा है कि इन दोनों आरोपियों ने पूछताछ के दौरान बताया है कि कन्हैया लाल को मौत के घाट उतारने से कुछ घंटे पहले हत्या की अपनी योजना साझा करने के लिए वे उदयपुर के मुखर्जी चौक स्थित एक बरेलवी संस्थान अंजुमन तालीम-उल-इस्लाम मस्जिद में मिले थे. उनकी इकबालिया गवाही—जिसे भारतीय कानून में उनके मुकदमे में बतौर सबूत इस्तेमाल नहीं किया जा सकता—के आधार पर कई गिरफ्तारियां की गई हैं.
खुफिया सूत्रों ने दिप्रिंट को यह भी बताया कि वे इसकी जांच कर रहे हैं कि क्या गौस का संबंध इस गर्मी के शुरू में राजस्थान के उन कई लोगों में से एक से था, जिन्हें बम बनाने की इस्लामिक स्टेट से साजिश में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. कथित हमलावरों में कम से कम एक व्यक्ति ऐसा है, जिसके बारे में माना जाता है कि वह 2013 में दावत-ए-इस्लामी दौरे के लिए पाकिस्तान गया था.
पुलिस का दावा है कि राजस्थान में आतंकी प्रकोष्ठ इमरान खान नामक एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द केंद्रित है, जिसने कथित तौर पर सीरिया में आईएस के लड़ाकों में शामिल होने के असफल प्रयास के बाद भारत में इस्लामिक स्टेट से जुड़े पहले आतंकवादी सेल का गठन किया.
इमरान 2013 में मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगों के बाद हिंसा पीड़ित मुस्लिमों के बीच राहत सामग्री बांटने वाले एक धर्मार्थ और इस्लामी धर्मांतरण समूह अहल अल-सुफाह में शामिल हो गया था. हालांकि, बाद में उसे अपने चरमपंथी विचारों के कारण अल-सुफाह से निष्कासित कर दिया गया.
हालांकि, पुलिस का कहना है कि खान ने जमानत पर रिहा होने के बाद एक बार फिर अहल अल-सुफाह के पूर्व सदस्यों को अपने सेल में शामिल किया. लेकिन खुफिया सूत्रों ने बताया कि उदयपुर हत्याकांड में अब तक गिरफ्तार किए गए लोगों ने गौस और रियाज की पहचान समूह के सदस्यों के रूप में नहीं की है.
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