टंकारा (गुजरात), 12 फरवरी (भाषा) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को कहा कि स्वामी दयानंद सरस्वती ने 19वीं सदी के भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और कुरीतियों को दूर करने की पहल की और सामाजिक न्याय का मार्ग दिखाया।
मुर्मू गुजरात के मोरबी जिले के टंकारा शहर में महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती मनाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रही थीं।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने 19वीं सदी के भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और कुरीतियों को मिटाने का बीड़ा उठाया। उन्होंने समाज को आधुनिकता और सामाजिक न्याय का मार्ग दिखाया। उन्होंने बाल विवाह और बहुविवाह का कड़ा विरोध किया। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया। वे महिलाओं की शिक्षा और उनके आत्म-सम्मान के प्रबल समर्थक थे।’’
उन्होंने कहा कि दयानंद सरस्वती के द्वारा फैलाए गए प्रकाश ने रूढ़ियों और अज्ञानता के अंधेरे को दूर किया। मुर्मू ने कहा कि उन्होंने सत्य को साबित करने के लिए ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पुस्तक लिखी।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘उनके आदर्शों का लोकमान्य तिलक, लाला हंसराज, स्वामी श्रद्धानंद और लाला लाजपत राय जैसे महान व्यक्तित्वों पर गहरा प्रभाव पड़ा। स्वामीजी और उनके असाधारण अनुयायियों ने भारत के लोगों में नई चेतना और आत्मविश्वास का संचार किया। काठियावाड़ ने हमें महान व्यक्तित्व दिए हैं, चाहे वह महात्मा गांधी हों या दयानंद सरस्वती।’’
मुर्मू ने कहा, ‘‘दयानंद सरस्वती ने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पुस्तक लिखी, जबकि गांधीजी ने ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ पुस्तक लिखी। दोनों में कई चीजें समान थीं। स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में नमक पर कर का विरोध किया। वहीं, पांच दशक बाद गांधीजी ने दांडी मार्च निकाला और नमक पर कर खत्म कराया।’’
उन्होंने कहा कि आर्य समाज ने लड़कियों के लिए स्कूल और उच्च शिक्षण संस्थान स्थापित करके महिला सशक्तीकरण में अमूल्य योगदान दिया है।
गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत और मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल भी समारोह में शामिल हुए।
भाषा शफीक नरेश
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