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Sunday, 15 September, 2024
होमदेशस्वच्छ भारत मिशन ने 2011-2020 के बीच 60,000-70,000 नवजात शिशुओं की मृत्यु को रोका : नेचर स्टडी

स्वच्छ भारत मिशन ने 2011-2020 के बीच 60,000-70,000 नवजात शिशुओं की मृत्यु को रोका : नेचर स्टडी

शोधकर्ताओं ने 35 राज्यों, 640 जिलों से नवजात शिशुओं और पांच साल से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर के आंकड़ों का विश्लेषण किया. मोदी ने एक्स पर कहा, ‘स्वच्छ भारत मिशन के प्रभाव को उजागर करने वाले शोध को देखकर खुशी हुई.’

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नई दिल्ली: सरकार के “स्वच्छ भारत मिशन” के तहत शौचालयों का निर्माण 2011 से 2020 के बीच सालाना लगभग 60,000 से 70,000 नवजात शिशुओं की मृत्यु को रोकने में एक बड़ा कारक था. सहकर्मी-समीक्षित पत्रिका नेचर में छपी एक नई स्टडी में इसकी जानकारी दी गई.

गुरुवार को एक्स पर की गई एक पोस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्टडी का लिंक साझा किया. उन्होंने लिखा, “स्वच्छ भारत मिशन जैसे प्रयासों के प्रभाव को उजागर करने वाले शोध को देखकर खुशी हुई. उचित शौचालयों तक पहुंच शिशु और बाल मृत्यु दर को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. स्वच्छ, सुरक्षित स्वच्छता सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गेम-चेंजर बन गई है और, मुझे खुशी है कि भारत ने इसमें अग्रणी भूमिका निभाई है.”

अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने “स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम)” — भारत के राष्ट्रीय स्वच्छता कार्यक्रम — और भारत में नवजात शिशु और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर के बीच संबंध की जांच करने के लिए अर्ध-प्रायोगिक अध्ययन किया.

उन्होंने 2011 से 2020 के बीच 35 राज्यों और 640 जिलों से नवजात शिशु मृत्यु दर और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर के आंकड़ों का अध्ययन किया.

इस रिसर्च पेपर की लेखिका सोयरा गुने ने कहा कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में मृत्यु दर को कम करने पर अधिकांश काम प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर अवधि के दौरान निवारक और उपचारात्मक हस्तक्षेपों पर केंद्रित है.

अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के शोध विश्लेषक ने कहा, “हालांकि, इन देशों में स्वच्छता में बड़े पैमाने पर निवेश और मृत्यु दर के बीच संबंध पर बहुत कम साक्ष्य उपलब्ध हैं.”

इस मिशन का प्राथमिक उद्देश्य घरेलू, सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण करना था, जिसमें अस्वास्थ्यकर शौचालयों को पोर-फ्लश शौचालयों में बदलना और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली विकसित करना शामिल था.

गुने ने कहा कि उनके निष्कर्षों ने पुष्टि की है कि बेहतर जल और स्वच्छता की स्थिति शिशु मृत्यु दर को कम कर सकती है, खासकर भारत जैसे देशों में, जहां खुले में शौच बहुत प्रचलित है.

अधिक शौचालय, कम मौतें

नेचर में 2 सितंबर को प्रकाशित शोध में बताया गया कि एसबीएम के तहत 30 प्रतिशत से अधिक शौचालयों का निर्माण करने वाले जिलों में शिशु मृत्यु दर में 5.3 प्रतिशत की कमी और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में 6.8 प्रतिशत की कमी देखी गई.

स्टडी में कहा गया, “भारत में एसबीएम के बाद की अवधि में एसबीएम से पहले के वर्षों की तुलना में शिशु और बाल मृत्यु दर में तेज़ी से कमी देखी गई.”

शहरी केंद्रों को खुले में शौच से मुक्त बनाने और देश के 4,041 वैधानिक शहरों में नगरपालिका के ठोस कचरे का 100 प्रतिशत वैज्ञानिक प्रबंधन हासिल करने के लिए 2014 में इस मिशन की शुरुआत की गई थी.

केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के अनुसार, मिशन का दूसरा चरण लागू किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य 2026 तक भारतीय शहरों को कचरा मुक्त बनाना है.

पिछले अध्ययनों ने यह भी उल्लेख किया है कि खुले में शौच करने से “शिशु और बाल स्वास्थ्य के संबंध में पर्याप्त नकारात्मक बाहरी प्रभाव पड़ता है”.

अध्ययन में कहा गया है, “शौचालय तक बेहतर पहुंच और खुले में शौच को समाप्त करने के बाद मल रोगजनक-आधारित संक्रमण (विशेष रूप से दस्त) और पोषक तत्वों के कुअवशोषण के कारण शिशु और बाल मृत्यु दर में कमी आ सकती है.”

शिशु और बाल मृत्यु दर में कमी के लिए भारत के राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान के लाभों पर जोर देते हुए, अध्ययन में कहा गया है कि “राष्ट्रीय स्वच्छता अभियानों को बेहतर बाल स्वास्थ्य परिणामों से जोड़ने वाले साक्ष्य बढ़ रहे हैं”.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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