नयी दिल्ली, 25 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने देश में चिकित्सा अनुसंधान नीति पर नीति आयोग की सिफारिशों को लागू करने के अनुरोध वाली याचिका पर विचार करने से बृहस्पतिवार को इनकार कर दिया और कहा कि कोई भी इच्छुक पक्ष जनहित याचिका दायर नहीं कर सकता।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि जनहित याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता के एम चेरियन प्रथम दृष्टया एक पक्ष हैं क्योंकि चिकित्सा अनुसंधान में शामिल उनकी कंपनी दिवालियेपन की कार्यवाही का सामना कर रही है।
पीठ ने कहा, ‘‘यह व्यक्ति खुद कार्यवाही में उलझा हुआ है। जिन लोगों के निजी हित हैं वे जनहित याचिकाकर्ता के रूप में सामने नहीं आ सकते। केवल इसलिए कि वह यहां आते हैं और कहते हैं कि इसमें जनहित है, हम इस पर गौर करने के लिए बाध्य नहीं हैं। आजकल जनहित याचिकाओं के साथ यही हो रहा है।’’
पीठ ने वकील प्रशांत भूषण की इस दलील को मानने से इनकार कर दिया कि जनहित याचिका में अन्य महत्वपूर्ण पहलू भी उठाए गए हैं जिन पर गौर किया जा सकता है। वकील ने कहा कि वित्तीय संस्थान चिकित्सा अनुसंधान से संबंधित परियोजना के लिए ऋण देने के बाद इस पहलू पर विचार नहीं करते हैं कि ऐसे प्रयासों में समय लगता है।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की कंपनी दिवालिया कार्यवाही में शामिल थी और परिसमापन प्रक्रिया चल रही है। पीठ ने कहा, ‘‘वास्तव में, जनहित याचिका फर्म की पहले वापस ली गई एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) से संबंधित है। इसलिए हम याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं।’’
भाषा आशीष माधव
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