नयी दिल्ली, 20 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी भी सार्वजनिक पद पर नियुक्तियों को निरस्त करने से पहले समग्र निरस्तीकरण के बजाय पृथक्करण की संभावना पर विचार किया जाना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने 19 अगस्त को झारखंड उच्च न्यायालय के दिसंबर 2021 के आदेश को चुनौती देने वाली अपीलों पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड के तीन कर्मचारियों की नियुक्तियों को रद्द कर दिया गया था।
इसने कहा कि उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अपीलकर्ताओं की नियुक्तियों को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि वे स्वीकृत संख्या से अधिक थीं।
पीठ ने कहा, ‘‘खंडपीठ के आदेश को बरकरार रखना निर्दोष लोगों को उन गलतियों के लिए दंडित करना होगा जो उनकी वजह से नहीं हैं। यह न्याय की विफलता होगी।’’
पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि बिना किसी भेदभाव के नियुक्तियों के बड़े समूहों को प्रभावित करने वाले निरस्तीकरण आदेशों के यांत्रिक अनुप्रयोग को हतोत्साहित करने की तत्काल आवश्यकता है।
पीठ ने कहा, ‘‘नियुक्तियों को अंधाधुंध तरीके से रद्द घोषित करने की प्रथा न केवल ईमानदार कर्मचारियों के मनोबल को कमजोर करती है, बल्कि लोक प्रशासन की विश्वसनीयता को भी कमजोर करती है।’’
पीठ ने कहा कि ऐसा कोई समकालीन रिकॉर्ड नहीं दिखाया गया जो नियुक्तियों के समय स्वीकृत संख्या की स्थिति का खंडन करता हो।
इसने कहा, ‘‘पद स्वीकृत किए गए थे, अपीलकर्ता विधिवत योग्य थे, तथा नियुक्तियां सक्षम प्राधिकारी द्वारा चयन की उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद की गई थीं और सबसे खराब बात यह है कि किसी भी प्रकार की त्रुटि से नियुक्तियां केवल अनियमित हो सकती हैं, अवैध नहीं।’’
पीठ ने कहा कि अदालतों को केवल प्रक्रियागत खामियों के आधार पर नियुक्तियों को पूरी तरह से अमान्य घोषित करने की प्रवृत्ति का विरोध करना चाहिए, जो नियुक्तियों के केवल एक हिस्से को प्रभावित करती हैं।
पीठ ने कहा कि जब अनियमितता के आधार पर नियुक्तियों पर सवाल उठाया जाता है, तो जांच केवल अनियमितता का पता लगाने तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उन लोगों की पहचान करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए जिनकी नियुक्तियां दोषमुक्त थीं।
पीठ ने कहा कि अदालतों को अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए तथा संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, विशेष रूप से सामूहिक नियुक्तियों से जुड़े मामलों में।
शीर्ष अदालत ने अपीलकर्ताओं की नियुक्तियों को कानूनी और वैध माना।
पीठ ने कहा कि उनके भविष्य के सेवा अधिकारों की रक्षा के लिए, उन्हें वेतन का काल्पनिक निर्धारण और अन्य परिणामी लाभ प्रदान किए जाएंगे, जो वेतन वृद्धि और पदोन्नति पात्रता जैसे लागू नियमों के अधीन होंगे।
भाषा
देवेंद्र प्रशांत
प्रशांत
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