नयी दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत किसी व्यक्ति को प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है और स्वतंत्रता के अधिकार पर खतरा होने, यहां तक कि राज्येतर तत्वों से खतरा होने पर भी, उसकी रक्षा राज्य का जिम्मा है.
न्यायमूर्ति एस. ए. नजीर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सरकारी पदाधिकारियों/अधिकारियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े मामले पर सुनवाई करते हुए उक्त टिप्पणी की. न्यायालय ने कहा कि ऐसे तमाम उदाहरण हैं जहां उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 32 के तहत राज्येतर तत्वों के खिलाफ रिट जारी किया है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह प्रमुख रूप से दो श्रेणियों में बंटा हुआ है, सरकारी काम कर रहे निजी व्यक्ति; या वैधानिक गतिविधियों में शामिल राज्येतर तत्वों के कारण नागरिकों के अधिकारों का हनन.
न्यायमूर्ति नजीर, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और स्वयं के लिए फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यन ने कहा, ‘अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति को प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है और स्वतंत्रता के अधिकार पर खतरा होने, यहां तक कि राज्येतर तत्वों से खतरा होने पर भी, उसकी रक्षा राज्य का जिम्मा है.’
वहीं, अपना फैसला अलग लिखने वाली न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्न ने उच्च पदाधिकारियों/अधिकारियों पर अतिरिक्त पाबंदियों के वृहद मुद्दे का समर्थन किया, लेकिन विभिन्न मुद्दों से जुड़े कानूनी प्रश्नों पर उनके विचार अलग भी रहे जैसे, क्या मंत्रियों के किसी काम/बात के लिए सरकार को जवाबदेह ठहराया जा सकता है.
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