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Saturday, 15 June, 2024
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कम काम करने वाली टिप्पणी पर बिफरे शीर्ष अदालत के न्यायाधीश

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नयी दिल्ली, 22 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को इस बात पर अफसोस जताया कि न्यायाधीशों द्वारा किए गए प्रयासों के बावजूद उन्हें बहुत कम काम करने संबंधी टिप्पणियां सुननी पड़ती है, जबकि सच्चाई यह है कि वे छुट्टियों के दौरान भी आधी रात को काम करते हैं।

न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की अवकाशकालीन पीठ ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की धनशोधन मामले में उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने और लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत दिये जाने का अनुरोध करने वाली उनकी याचिका पर सुनवाई करते वक्त यह टिप्पणी की।

सोरेन की ओर से अदालत में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने शिकायत की कि झारखंड उच्च न्यायालय की पीठ ने पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के खिलाफ झामुमो नेता की याचिका पर फैसला सुनाने में दो महीने का समय लिया।

न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, ‘‘श्रीमान सिब्बल, दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है न्यायाधीश के रूप में हमारे द्वारा किए गए प्रयासों के बावजूद, हमें यह सुनना पड़ता है कि न्यायाधीश बहुत कम काम करते हैं।’’

उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को भी अपना होमवर्क करना पड़ता है।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘न्यायाधीश हमारे सामने नहीं हैं। वे यह नहीं बता सकते कि उन्हें फैसला सुनाने से किसने रोका। इसलिए, (संदेह का) लाभ उन्हें दिया जाना चाहिए।’’

सिब्बल ने कहा कि फैसला सुनाने में देरी करने का असर नागरिकों पर होता है। उन्होंने कहा, ‘‘आप (ईडी की अभियोजन शिकायत पर) संज्ञान लेने की अनुमति देते हैं और मेरी याचिका व्यर्थ हो जाती है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है। यह बेहद दुखद है। ये सभी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं।’’

पीठ ने कहा कि वह केवल आशा और भरोसा कर सकती है कि अदालतें मामलों का शीघ्रता से निपटारा करें।

सिब्बल ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालयों में ऐसा रोज हो रहा है। हमारा मामला सुनने के लिए कोई नहीं है, और न ही कोई उस पर फैसला करता है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामले में लोग अदालतों की शरण में जाते हैं। आप कुछ भी कह सकते हैं, लेकिन यही सच्चाई है।’’

अखबार में छपे एक लेख का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, ‘‘अवकाश के दौरान भी हम आधी रात तक काम कर रहे हैं और जो लोग ये सब बातें कहते हैं वे शासन का हिस्सा हैं।’’

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘केंद्र या राज्य की एक भी अपील 60 या 90 दिनों की निर्धारित समय सीमा के भीतर शीर्ष अदालत में नहीं आती है। वे सभी इस देरी की माफी के लिए आवेदन करते हैं।’’

न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, ‘‘जो लोग न्यायपालिका की आलोचना करते हैं, उन्हें इन चीजों के बारे में सोचना चाहिए। एक साधारण अपील जिसके लिए 90 दिन या 60 दिनों का समय दिया जाता है, उसके लिए अधिकारी समय पर नहीं आते हैं और वे कहते हैं कि हम कम काम करते हैं।’’

प्रवर्तन निदेशालय की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने कहा कि वह अदालतों में अवकाश के पक्षधर हैं।

राजू ने कहा, ‘‘हालिया मामले में, मैं अवकाश का अनुमोदन करता हूं। मैने कहा कि अदालतें अवकाश की हकदार हैं क्योंकि वे वस्तुतः दो पालियों में काम कर रहे हैं।’’

सिब्बल ने देश में न्यायाधीशों पर काम के बोझ को स्वीकार किया। उन्होंने कहा, ‘‘यह वह देश है जहां न्यायाधीशों पर काम का सबसे अधिक बोझ होता है। किसी अन्य देश में न्यायाधीशों पर काम का इतना बोझ नहीं होता है। यह हम सभी जानते हैं।’’

पीठ ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों का फैसला शीघ्रता से किया जाना चाहिए और इसे लेकर कोई विवाद नहीं है।

पीठ ने कहा, ‘‘इस अदालत ने स्वयं दिशानिर्देश बनाए हैं कि यदि किसी मामले का फैसला तीन महीने में नहीं होता है, तो एक पक्ष उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास जा सकता है और मामले को किसी अन्य न्यायाधीश के समक्ष सौंपने की मांग कर सकता है।’’

न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि वह चार उच्च न्यायालयों में रहे हैं और ऐसे मामलों का निर्णय सर्वोच्च प्राथमिकता पर किया जाता है।

सिब्बल ने कहा, ‘‘’मैं और कुछ नहीं कहना चाहता”।’’

भाषा रंजन रंजन सुरेश

सुरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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