नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को देश में नफरत भरे भाषणों की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जाहिर की. साथ ही सरकारों और पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे औपचारिक शिकायत दर्ज किए बिना ऐसे मामलों में स्वत: कार्रवाई करें.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाए रखने के लिए इस तरह की कार्रवाई करने की जरूरत है.’
कोर्ट ने देश में नफरत भरे भाषणों की घटनाओं पर चिंता जाहिर करते हुए कहा, ‘हम धर्म के नाम पर कहां पहुंच गए हैं.’
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इस तरह के बयान परेशान करने वाले हैं, खासकर ऐसे देश के लिए जो लोकतांत्रिक और धर्म-तटस्थ हैं.
सुप्रीम कोर्ट भारत में मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने और आतंकित करने के कथित बढ़ते खतरे को रोकने के लिए तत्काल हस्तक्षेप की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रहा थी.
याचिकाकर्ता शाहीन अब्दुल्ला ने देश भर में घृणा अपराधों और नफरत भरे भाषणों की घटनाओं की स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जांच शुरू करने के लिए केंद्र और राज्यों से निर्देश की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. अपनी याचिका में, अब्दुल्ला को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और अन्य कड़े प्रावधानों को भी लागू करना चाहिए ताकि घृणा अपराधों और घृणास्पद भाषणों पर लगाम लगाई जा सके.
अदालत ने दिल्ली, उत्तर प्रेदश और उत्तराखंड पुलिस को नोटिस जारी किया और उनसे अपने अधिकार क्षेत्र में ऐसे अपराधों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया है. अदालत ने कहा है कि कार्रवाई करने में विफल रहने पर दोषी अधिकारियों के खिलाफ अदालत की अवमानना होगी.
नफरत भरे भाषणों के चलन को ‘बेहद दुर्भाग्यपूर्ण’ बताते हुए अदालत ने कहा, ‘संविधान वैज्ञानिक सोच विकसित करने की बात करता है लेकिन धर्म के नाम पर नफरत भरे भाषण दिए जा रहे हैं और यह दुखद है.’
साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने 9 अक्टूबर को दिल्ली में एक विशेष समुदाय के खिलाफ दिल्ली में बीजेपी सांसद परवेश वर्मा और अन्य द्वारा दिए गए कथित नफरत भरे भाषणों में दिल्ली पुलिस से कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है.
गौरतलब है कि बीजेपी सांसद ने पूर्वोत्तर दिल्ली में एक हिंदू युवक की हत्या के विरोध में आयोजित कार्यक्रम में कथित तौर पर एक समुदाय के ‘पूर्ण बहिष्कार’ का आह्वान किया था.
दिल्ली पुलिस ने विश्व हिंदू परिषद और कार्यक्रम के अन्य आयोजकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी.
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