नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली के वसंत विहार में एक बेहद दर्दनाक घटना सामने आई है जहां 21 मई को जहरीले धुएं में सांस लेने के कारण एक ही परिवार की तीन महिलाओं की मौत हो गई. पड़ोसियों के मुताबिक, एक मां और उसकी दो बेटियों का यह परिवार कथित तौर पर वित्तीय कठिनाइयों का सामना कर रहा था.
इस घटना में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कैसे इसकी पूरी योजना बनाई गई थी. खिड़कियों को अंदर से प्लास्टिक की थैलियों से कवर करके घर को गैस चैंबर में बदल दिया गया था और जैसा प्रारंभिक जांच से पता चला है, हाल ही में एक ई-कॉमर्स वेबसाइट से एक छोटी-सी अंगीठी और लकड़ी का कोयला खरीदा गया था. पुलिस उपायुक्त (दक्षिण पश्चिम) मनोज सी. ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि परिवार डिप्रेशन का शिकार था.’
शनिवार को वसंत अपार्टमेंट के ही एक निवासी की तरफ से रात 8:55 बजे की गई कॉल के बाद दिल्ली पुलिस 55 वर्षीय मंजू श्रीवास्तव और उनकी दो बेटियों अंशिका श्रीवास्तव (30) और अंकिता श्रीवास्तव (26) के बारे में पता लगाने उनके फ्लैट पर पहुंची. ग्रे रंग के पुराने अपार्टमेंट के भूतल पर स्थित फ्लैट में इन तीनों की मौत संभवत: दम घुटने से हुई थी.
डीसीपी मनोज ने दिप्रिंट को बताया, ‘पुलिस टीम दरवाजा खोलने में कामयाब रही, जहां आंशिक रूप से खुला गैस सिलेंडर और चार सुसाइड नोट मिले. अंदर कमरों की जांच करने पर तीन शव मिले. वहीं बिस्तर पर तीन छोटी मोमबत्तियों और एक अंगीठी भी पड़ी थी.’
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मुसीबतें झेल रहा था परिवार
बरामद सुसाइड नोट काफी लंबे हैं और कई पन्नों में लिखे गए हैं. पुलिस के मुताबिक एक सुसाइड नोट में सात पन्नों में परिवार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और वित्तीय संकट के बारे में बताया गया है.
घर के बाहर ही अपना निजी वाहन पार्क करने वाले और परिवार से परिचित अंडा विक्रेता संजीव कुमार बताते हैं, ‘दोनों बेटियां उच्च शिक्षित थीं लेकिन उनके पास कोई नौकरी नहीं थी. मां बिस्तर पर पड़ी थीं और उनकी याददाश्त चली गई थी. हालत इतनी खराब थी कि वह अक्सर ही बिस्तर खराब कर देती थीं. कोविड के दौरान पिता की मृत्यु से पहले भी उन्हें हमेशा वित्तीय कठिनाइयां होती थीं. ये लोग उधार के पैसे पर काम चलाते थे, शायद ही कभी अपने फ्लैट से बाहर आते. और शायद ही कभी दूसरों के साथ बातचीत करते थे.’ कुछ पड़ोसियों ने तो यहां तक बताया कि अगर कोई उनके घर जाता तो भी दोनों बहनें कभी पूरी तरह दरवाजा नहीं खोलती थीं.
कुमार के मुताबिक मंजू के पति उमेश श्रीवास्तव पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट थे और पिछले साल अप्रैल में कोविड के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी. कुमार ने आगे बताया कि उमेश बतौर पार्ट-टाइमर काम करते थे और काफी योग्य होने के बावजूद ज्यादा कमाई नहीं कर पाते थे.
उन्होंने यह दावा भी किया कि उसने घटना से कुछ दिन पहले अंकिता को कुछ पैसे इस आश्वासन के साथ उधार दिए थे कि वह शनिवार को उन्हें लौटा देगी. कुमार ने बताया, ‘मैंने उस दिन उसे छह बार फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. मैंने इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा और सोचा कि मैं फिर बाद में पूछ लूंगा.’
परिचितों के मुताबिक, श्रीवास्तव परिवार अक्सर अपने इलाके की किराने की दो दुकानों— जैन स्टोर और प्रशांत जनरल स्टोर से खाद्य सामग्री उधार लेता था. दोनों दुकानों के मालिकों को उन्होंने शनिवार शाम तक पैसे चुकाने का वादा किया गया था. प्रशांत जनरल स्टोर के कमल सिंह के मुताबिक, परिवार ने 30,000 रुपये का किराने का सामान उधार ले रखा था.
कमल सिंह ने कहा, ‘मुझे उनकी उधार लेने की आदत असामान्य नहीं लगी क्योंकि उन्होंने मुझे अपनी वित्तीय दिक्कतों के बारे में बताया था. उन्होंने मुझे शनिवार शाम लगभग 6 बजे फोन किया था, लेकिन मैं फोन नहीं उठा सका और जब मैंने उन्हें वापस कॉल की तो कोई जवाब नहीं मिला. बाद में मैंने जब उनके फ्लैट के बाहर हंगामा देखा और पता चला कि क्या हुआ था.’
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दयनीय स्थिति
श्रीवास्तव परिवार पर जैन स्टोर के मालिकों का 6,000 रुपये बकाया था, जो उनसे संपर्क करने का प्रयास कर रहे थे. दरअसल, जैन की तरफ से श्रीवास्तव के घर काम करने वाली एक घरेलू सहायिका कमला, जो उनकी सबसे करीबी थी, को फोन किए जाने के बाद ही आस-पड़ोस के लोग सचेत हुए कि यहां कुछ सही नहीं है.
कमला ने रोते हुए बताया, ‘मैं शाम 5 बजे के आसपास उनके घर गई थी, जो मैं आमतौर पर करती हूं, बस यह देखने के लिए कि वे क्या कर रही हैं लेकिन किसी ने दरवाजा नहीं खोला. मैंने इस पर ज्यादा कुछ नहीं सोचा. मैंने बाद में अपने बेटे को भेजा लेकिन फिर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. तब मुझे संदेह हुआ कि कुछ गलत है क्योंकि वे अपनी बीमार मां के कारण कभी बाहर नहीं जाती थीं. मैंने खिड़की से अंदर देखने की कोशिश की, लेकिन कुछ नहीं दिखा. फिर सोसाइटी के प्रेसीडेंट ने पुलिस को फोन किया. जब मुझे पता चला कि क्या हुआ है तो मैं हतप्रभ रह गई.’
बरामद पत्रों में से एक में बेटियों ने स्पष्ट तौर पर ऐसा कदम उठाने के लिए कमला से माफी मांगी है और जो कुछ भी उसने किया, उसके लिए धन्यवाद दिया है. कमला ने बताया, ‘मैं खाना बनाने से लेकर अन्य तमाम कामों में लड़कियों की मदद की. कोविड के दौरान उनके पिता को अस्पताल ले जाने में भी मदद की. उनकी आय का एकमात्र स्रोत उनके एक अन्य फ्लैट से आने वाला किराया था, लेकिन उन्होंने करीब 6-7 महीने पहले अपने किरायेदारों को बेदखल कर दिया था. मुझे भरोसा ही नहीं हो रहा कि उन्होंने इस तरह का कदम उठाया. छोटी बेटी तो बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी थी. वे सभी अंग्रेजी बोलते थे. वह आसानी से नौकरी कर सकती थी और आराम से रह सकती थी.’
हालांकि, कुमार का मानना है कि जिन कारणों ने उन्हें आत्महत्या के लिए उकसाया, वे आर्थिक से अधिक मनोवैज्ञानिक थे. वह आगे कहते हैं, ‘उनकी मां तो पहले से ही बीमारियों से जूझ रही थीं. बड़ी बेटी का व्यवहार अजीब था और वह एक बार घर से भाग भी गई थी. छोटी बेटी ठीक लगती थी, लेकिन अब उसने इस तरह का कदम उठाया.’
पेशे से ड्राइवर और श्रीवास्तव के पड़ोसी शिरीष त्रिपाठी ने शव निकालने में पुलिस की मदद की और दिप्रिंट को वहां के नजारे के बारे में बताया कि कैसे खिड़कियों को कथित तौर पर प्लास्टिक की थैलियों से ढक दिया गया था और तीनों महिलाएं अंदर ही मृत पड़ी थीं और उनकी नाक से खून निकल रहा था.
उन्होंने आगे बताया, ‘गैस की गंध बेहद तीखी थी.’ बरामद पत्रों में से एक में ‘गैस चैंबर’ के बारे में अन्य लोगों को आगाह भी किया गया है. पुलिस के मुताबिक, इसमें लिखा है, ‘बहुत अधिक घातक गैस…कृपया खिड़की और पंखे खोलकर कमरे में हवा आने दें…माचिस या मोमबत्ती कुछ भी न जलाएं. पर्दा हटाते समय सावधान रहें…गहरी सांस न लें.’
खिड़कियों पर लगे कवर अभी भी देखे जा सकते हैं, घर के चारो तरफ एक चमकीले पीले रंग का पुलिस टेप भी लगा है. बाहर लटके एक बोर्ड में लिखा है ‘आप सीसीटीवी निगरानी में हैं.’ ऐसा लगता है कि वे दुनियाभर की गतिविधियां देखती रहीं लेकिन एक पुराने फ्लैट के अंदर रहने वाली तीन महिलाएं सबकी नजरों से ओझल रहीं.
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