scorecardresearch
Tuesday, 5 November, 2024
होमदेशकेंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- सुदर्शन टीवी का शो 'UPSC जिहाद' केबल टीवी एक्ट के तहत प्रोग्राम कोड का उल्लंघन

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- सुदर्शन टीवी का शो ‘UPSC जिहाद’ केबल टीवी एक्ट के तहत प्रोग्राम कोड का उल्लंघन

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सुदर्शन टीवी को कारण बताओ नोटिस भेजा गया है और प्रोग्राम कोड के उल्लंघन के संदर्भ में 28 सितंबर तक जवाब देने को कहा गया है.

Text Size:

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सुदर्शन टीवी चैनल के विवादास्पद कार्यक्रम बिंदास बोल, जो सिविल सेवाओं में ‘मुसलमानों की घुसपैठ’ को उजागर करने का दावा करता है, ने केबल टीवी एक्ट के तहत प्रोग्राम कोड का उल्लंघन किया है और इसके लिए उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ को बताया, ‘केंद्र ने आज सुदर्शन टीवी को चार पेज का नोटिस जारी किया है. इसमें कहा गया है कि टीवी चैनल को प्रोग्राम कोड उल्लंघन के संदर्भ में 28 सितंबर को शाम 5 बजे से पहले लिखित रूप से जवाब पेश करने की जरूरत है और क्यों न उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए.’

उन्होंने कहा, ‘यदि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से जारी नोटिस का कोई जवाब नहीं मिलता है तो एक एकतरफा फैसला लिया जाएगा. मामला 28 सितंबर तक स्थगित करने का आग्रह करते हुए उन्होंने कहा, ‘यह एक विस्तृत कारण बताओ नोटिस है जिसमें उन सारे तथ्यों को शामिल किया गया है, जो केंद्र के मुताबिक प्रथम दृष्टया प्रोग्राम कोड के अनुरूप नहीं हैं.’

सुदर्शन टीवी ने दावा किया है कि उसका कार्यक्रम ‘यूपीएससी जिहाद’ भारतीय सिविल सेवाओं में मुस्लिमों की घुसपैठ को उजागर करने वाली एक खोजी रिपोर्ट है.

अदालत ने शो के शेष 10 एपिसोड के प्रसारण पर 15 सितंबर को रोक लगा दी थी. प्रसारण रोकने का आदेश जारी होने से पहले ही चार एपिसोड दिखाए जा चुके थे. इससे पहले 28 अगस्त को शीर्ष अदालत ने प्रसारण के पहले ही कार्यक्रम दिखाने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था.

मामला 5 अक्टूबर तक स्थगित

महाधिवक्ता के अनुरोध पर अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 5 अक्टूबर तक स्थगित कर दी. याचिकाकर्ताओं ने मेहता के तर्कों पर आपत्ति नहीं जताई.

प्रसारण पर रोक का फैसला अगली सुनवाई तक जारी रहने का आदेश देते हुए बेंच ने कहा, ‘हमने सॉलिसिटर जनरल की दलीलों पर वकील (याचिकाकर्ताओं की तरफ से) का जवाब सुना है. उनका विचार है कि जब कारण बताओ जारी किया जा चुका है, आगे की कार्यवाही 5 अक्टूबर को फिर शुरू होनी चाहिए. नोटिस कानून के अनुसार निपटाया जाएगा और केंद्र तब तक फैसले के नतीजे के बारे में एक रिपोर्ट दायर करेगा.’


यह भी पढ़ें : सुदर्शन न्यूज़ संपादक ने कहा- ‘यूपीएससी जिहाद’ शो एक खोजी रिपोर्ट, एससी से बैन हटाने की गुज़ारिश


‘अदालती दखल अंतिम उपाय होना चाहिए’

सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की कि यदि न्यायाधीशों द्वारा मामले की सुनवाई नहीं की जाती, तो यह अब तक प्रसारित हो चुका होता. इसके जवाब में मेहता ने कहा कि अदालत का हस्तक्षेप अंतिम उपाय होना चाहिए.

मामले में 15 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान पीठ ने सुदर्शन टीवी के खिलाफ कार्रवाई को लेकर सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठाया था. इससे पहले शीर्ष अदालत को यह सूचित किया गया था कि सरकार ने ही शो के प्रसारण को हरी झंडी दिखाई है.

दलीलों के दौरान मेहता ने सुदर्शन टीवी के इस तर्क का समर्थन किया था कि प्रोग्राम कोड का उल्लंघन देखने के लिए अधिकारी हैं जिनसे केवल प्रसारण के बाद के चरण में ही संपर्क किया जा सकता है.

यह पूछे जाने पर कि एपिसोड दिखाए जाने के बाद अधिकारियों ने क्या कार्रवाई की और क्या मंत्रालय ने अपने विवेक का इस्तेमाल किया, मेहता ने कहा कि उन्हें इस पर दिशानिर्देशों की आवश्यकता है.

15 सितंबर के आदेश में कहा गया था, ‘इस स्तर पर प्रथम दृष्टया अदालत को यही लगता है कि कार्यक्रम का लक्ष्य, प्रायोजन और उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को कपटपूर्ण तरीके से सिविल सेवाओं में घुसपैठ की साजिश के हिस्से के तौर पर चित्रित करके उन्हें बदनाम करना है.’

सरकार ने कहा, याचिकाकर्ताओं को न सुनें

जब याचिकाकर्ता अधिवक्ताओं में से एक ने कहा कि केंद्र की तरफ से इस मुद्दे को हल किए जाने के बाद भी बड़े सवाल अनुत्तरित रहेंगे, पीठ ने स्पष्ट किया कि सुदर्शन टीवी पर केंद्र सरकार के फैसला लेने भर से मामला खत्म नहीं होगा.

हालांकि, मेहता ने याचिकाकर्ताओं को सुनने संबंधी शीर्ष कोर्ट के सुझाव का यह कहते हुए विरोध किया कि कानून अधिकारियों को उन्हें सुनने की अनुमति नहीं देता है.

बेंच ने मेहता से पूछा, ‘याचिकाकर्ता की सुनवाई न करने के संबंध में, यदि कोई शिकायत की जाती है, तो आप शिकायतकर्ता को सुनते हैं. प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत आपको उनकी बात सुनने को कहता है. क्या याचिकाकर्ता को सुनना गैरकानूनी होगा?’

इसके जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘अगर हमें 10,000 शिकायतें मिलती हैं, तो हम उन सबको नहीं सुन सकते.’ उन्होंने जकात फॉउंडेशन ऑफ इंडिया का पक्ष सुने जाने की दलील भी दरकिनार कर दी जिस संगठन के इर्द-गिर्द ही यह शो घूमता है.

पीठ ने जब मेहता को मुख्य याचिकाकर्ता एक वकील की दलीलें सुनने को कहा, तो उन्होंने कहा, ‘मैं इसे नहीं सुन सकता. हम ऐसा नहीं कर सकते, मी लार्ड. एक खराब तथ्य के आधार पर अदालत में अपील की गई थी लेकिन इसे एक बुरी मिसाल नहीं बना सकते.’

मेहता ने आगे कहा कि सरकार के फैसला लेने के बाद अदालत इस मामले की जांच कर सकती है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments