दुनिया के एक बड़े हिस्से में अपनी सुरक्षा एवं अपने अधिकार के मध्य द्वंद चल रहा है. हमास के इज़राइल के ऊपर किए गए हमले के बाद शुरू हुए इस संग्राम में हूति विद्रोहियों तथा लेबनान के हिजबुल्लाह के बाद अब ईरान का सीधा प्रवेश हो चुका है. वर्तमान में लगभग पूरा मिडिल ईस्ट इसकी जद में है, ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि मिडिल ईस्ट के जिन देशों की सीधी हिस्सेदारी इसमें नहीं है, वह भी पर्दे के पीछे पक्ष एवं विपक्ष तय करने में लगे हुए हैं या निर्णय ले चुके हैं.
आतंकवाद एवं विस्तारवाद के मध्य छिड़ी यह जंग, निश्चित तौर पर प्रत्येक बढ़ते दिन के साथ अपना दायरा बढ़ा रही है. इज़राइल जिसे विस्तारवाद के प्रायोजक के रूप में देखा जा सकता है, तथा जिसके साथ खड़े होकर दुनिया की एक महाशक्ति अमेरिका एवं पश्चिमी देश अपने हितों की पूर्ति में लगे हैं क्योंकि मिडिल ईस्ट में मजबूत उपस्थिति का सीधा अर्थ, तेल के व्यापार का अगुवा बनने से है.
वहीं ईरान एवं उसके प्रॉक्सी संगठन इस्लामिक चरमपंथ के माध्यम से डर एवं आतंक को बढ़ावा दे रहे हैं, जिनसे न केवल इज़राइल के अपने हित बल्कि फिलिस्तीन लेबनान यमन सीरिया एवं ईराक में भी अनवरत संकट छाया हुआ है. वहां की सामान्य जनता भी इस आतंक के भय के साए में जीवन यापन करती है. इन सबसे दूर रह कर इन घटनाओं पर नज़रें गढ़ाए चीन अपने राष्ट्रीय हित संवर्धन में लगा है.
ईरान जो कि कच्चे तेल का एक बड़ा खिलाड़ी है, उसके ऊपर लगे हुए अनगिनत प्रतिबंधों के बावजूद चीन उससे कच्चे तेल की सबसे बड़ी मात्रा का आयात करता है और वह उसके लिए ईरान को सामान्य दर से भी कम मात्रा में मुद्रा भुगतान करता है. ईरान के तेल भंडार का बहुत बड़ा हिस्सा चीन अकेले खरीद रहा है, इससे ईरान को विदेशी मुद्रा मिल रही है, जिसके कारण इतने कड़े प्रतिबंधों के बावजूद अपेक्षित असर उसकी जीडीपी में नहीं हुआ है और चीन को सस्ता कच्चा तेल मिल रहा है. चीन के अपने हित सीधे ईरान से जुड़े हुए हैं.
अमेरिका ने मिडिल ईस्ट के जिस किसी देश में अपनी रुचि दिखाई है, उसके पीछे कच्चे तेल के पर्याप्त भंडार हैं.
भारत के अपने हित किसी के साथ खड़े होने और किसी के साथ नहीं खड़े होने के बजाय प्रत्येक के साथ होने और किसी के साथ न होने की स्थिति में अधिक सुरक्षित हैं. अंतर्राष्ट्रीय राज्य में कोई भी कभी न तो हमेशा के लिए मित्र होता हैऔर न ही कोई हमेशा के लिए शत्रु. यहां मात्र राष्ट्रीय हित ही अनवरत एवं स्थाई होते हैं.
पश्चिमी देशों की प्रति भारतीय विदेश नीति का झुकाव, निश्चित तौर पर बढ़ा है, लेकिन रूस भारत का पारंपरिक एवं रणनीतिक साझेदार है, जो युद्ध विस्तार की किसी भी स्थिति में ईरान के पीछे खड़ा हुआ दिखाई देगा.
मिडिल ईस्ट में भारतीय डायसपोरा की एक बहुत बड़ी आबादी भी रहती है, जिसकी अनुमानित संख्या 90 लाख के आसपास है, जो भारतीय मुद्रा भंडार को मजबूत करने में अहम योगदान देते हैं. भारत ने चाबहार परियोजना में बहुत अधिक मात्रा में निवेश किया है, जो इस पूरे क्षेत्र की जियो पॉलिटिक्स को बदलने तथा भारत के अपने हितसंवर्धन में महत्वपूर्ण कड़ी है.
पिछले साल G20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत ने, भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारे के समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो भारत की पहुंच को मिडिल ईस्ट के रस्ते यूरोप तक सुलभता पूर्वक सुनिश्चित करने के उद्देश्य से थी.
युद्ध के विस्तार की स्थिति में भारत की यह महत्वाकांक्षी परियोजना पर भी प्रभाव पड़ेगा. अपनी पूरी खपत का लगभग 85 प्रतिशत कच्चा तेल भारत आयात करता है, जिसका 10 प्रतिशत हिस्सा भारत ईरान से लेता है. युद्ध की व्यापकता से भारत में कच्चे तेल के दामों में अविश्वसनीय बढ़ोत्तरी होगी क्योंकि युद्ध का दायरा निश्चित तौर पर पूरे मिडिल ईस्ट एवं गल्फ देशों तक फैलेगा.
वर्तमान समय में भारत को कूटनीतिक समझ एवं राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखते हुए निर्णय लेने का है, जिस तरह भारत ने सभी पश्चिमी देशों के विरोध के बावजूद रूस के साथ तेल आयात जारी रखा, उसी तरह वर्तमान परिस्थिति में भी भारत को किसी अन्य देश के प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रभाव में आए बिना, अपने हित अनुसार कार्य करना है.
भारत ने पिछले साल से चली आ रही इस जंग में अभी तक अपनी इसी कूटनीतिक समझ का परिचय भी दिया है. भारत ने इजराइल पर हमास के हमले की निंदा भी की, तो इजराइली जवाबी कार्यवाही में मारे जा रहे फिलिस्तीन के नागरिकों के प्रति अपनी संवेदना भी जाहिर की है.
भारत ने फिलिस्तीनी नागरिकों के लिए आवश्यक सामग्रियों के अनके खेप भी पहुंचाई. वर्तमान समय में भी भारत को खुली आंखों के साथ दुनिया में घटित हो रही घटनाओं को देखते रहना है, तथा अपनी गुटनिरपेक्ष नीति को आगे करते हुए अपने राष्ट्रीय हित के अनुसार कार्य करना है.
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