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Monday, 17 June, 2024
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कानून के पेशे की संरचना सामंती, पितृसत्तात्मक बनी हुई है :प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़

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नयी दिल्ली, 12 नवंबर (भाषा) प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि कानून के पेशे की संरचना ‘‘सामंती, पितृसत्तात्मक और महिलाओं को जगह नहीं देने वाली’’ बनी हुई है। साथ ही, उन्होंने कहा कि इसमें अधिक संख्या में महिलाओं एवं समाज के वंचित वर्गों के लोगों के प्रवेश की खातिर लोकतांत्रिक व प्रतिभा आधारित प्रक्रिया अपनाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के समक्ष कई चुनौतियां हैं और उनमें से पहली चुनौती उम्मीदों को पूरा करने की है, क्योंकि प्रत्येक सामाजिक एवं कानूनी विषय तथा बड़ी संख्या में राजनीतिक मुद्दे उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने बीते बुधवार को प्रधान न्यायाधीश के तौर पर कार्यभार संभाला था।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘एक चीज, जो हमें समझने की जरूरत है, वह यह है कि…न्यायपालिका में कौन प्रवेश करेगा वह बहुत हद तक कानून के पेशे की संरचना पर निर्भर करता है।’’

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) ने ‘हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट’ में कहा, ‘‘ यहां तक कि आज के समय में भी पूरे भारत में कानून के पेशे की संरचना सामंती, पितृसत्तात्मक और महिलाओं को जगह नहीं देने वाली बनी हुई है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, जब हम न्यायपालिका में महिलाओं को अधिक संख्या में शामिल करने की बात करते हैं तो हमारे लिए समान रूप से यह जरूरी है कि अब महिलाओं के लिए जगह बना कर भविष्य की राह तैयार की जाए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘पहला कदम, वरिष्ठ अधिवक्ताओं के चैम्बर में प्रवेश करना है, जो ओल्ड ब्वॉयज क्लब बना हुआ है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अपने संपर्कों का उपयोग कर आप चैम्बर में कैसे पहुंच बनाएंगे? जब तक कानून के पेशे में प्रवेश बिंदु पर हमारे पास लोकतांत्रिक एवं प्रतिभा आधारित पहुंच नहीं होगी, महिलाएं और वंचित वर्गों से जुड़े लोग अधिक संख्या में नहीं होंगे।’’

उन्होंने कहा कि अदालत की कार्यवाही का सीधा प्रसारण एक नया प्रयोग है जिसने एक अन्तर्दृष्टि दी कि कानूनी तंत्र में बदलाव लाने में प्रौद्योगिकी क्या कर सकता है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों की कार्यवाही का भी सीधा प्रसारण होना चाहिये।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘हम इंटरनेट युग में रह रहे हैं और यहां सोशल मीडिया भी रहने वाला है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, मेरा मानना है कि हमें नये समाधान तलाशने, वर्तमान दौर की चुनौतियों को समझने की कोशिश करने एवं उनसे निपटने की जरूरत है।’’

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘संवैधानिक लोकतंत्र में एक सबसे बड़ा खतरा अपारदर्शिता का है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं (न्यायपालिका की कार्यवाही का) सीधा प्रसारण की बात करता हूं, मैं बड़े मामलों का ही सीधा प्रसारण करने को नहीं कहता। हमें न सिर्फ उच्च न्यायालय की कार्यवाही का, बल्कि जिला अदालतों की कार्यवाही का भी सीधा प्रसारण करने की जरूरत है।’’

भारत के उच्चतम न्यायालय की तुलना अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से करने के विषय पर उन्होंने कहा कि यहां के शीर्ष न्यायालय की तुलना अन्य विकसित देशों से नहीं की जा सकती क्योंकि ‘‘अपनी संस्थाओं के लिए हमारी एक अनूठी भारतीय संरचना है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जब आप हमारी तुलना अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से करते हैं तो यह जानना जरूरी है कि वह एक साल में 180 मामलों की सुनवाई करता है, ब्रिटेन का सुप्रीम कोर्ट एक साल में 85 मामलों की सुनवाई करता है। लेकिन हमारे उच्चतम न्यायालय में प्रत्येक न्यायाधीश सोमवार और शुक्रवार को करीब 75 से 85 मामलों की सुनवाई करते हैं तथा मंगलवार, बुधवार और बृहस्पतिवार को 30 से 40 मामलों की सुनवाई करते हैं।’’

भाषा सुभाष दिलीप

दिलीप

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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