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Thursday, 28 March, 2024
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आवारा मवेशियों ने उड़ाई हरियाणा के किसानों की नींद, प्रशासन को दिया 15 दिन का अल्टीमेटम

हरियाणा में 2022 में अनुमानित रूप से 5 लाख आवारा मवेशियों की आबादी और 700 गौशालाएं थीं. राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 2018 और 2022 के बीच मवेशियों से संबंधित दुर्घटनाओं में 900 से अधिक लोगों की जान चली गई.

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नई दिल्ली: हरियाणा, जहां गाय की तस्करी एक ज्वलंत मुद्दा है और अक्सर संदिग्ध तस्करों के खिलाफ कथित हिंसा की खबरें आती रहती हैं, वहां के किसान समूहों ने अब अपनी फसलों की रक्षा के वास्ते आवारा मवेशियों के मुद्दे को हल करने के लिए प्रशासन को अल्टीमेटम दिया है.

दिलबाग मोर (55) पिछले हफ्ते हरियाणा के जींद जिले के नरवाना में अपने 14 एकड़ के खेत में हाथ में लाठी लेकर गश्त कर रहे थे, तभी उनका सामना उस चीज़ से हुआ जिसका उन्हें सबसे ज्यादा डर था. वो खुद को आवारा मवेशियों के झुंड से लड़ने के लिए तैयार करने की कोशिश कर रहे थे और मदद के लिए पड़ोसियों से गुहार लगा रहे थे, लेकिन जब तक वे पहुंचे, उनकी चार एकड़ गेहूं की फसल नष्ट हो चुकी थी.

मोर जींद जिले के उन सैकड़ों किसानों में से एक हैं, जिन्होंने 8 फरवरी को माजरा खाप पंचायत में भाग लिया था, जहां जिला प्रशासन को एक अल्टीमेटम देने का फैसला किया गया था. इस अल्टीमेटम में लिखा था- एक सप्ताह के भीतर आवारा मवेशियों की समस्या का समाधान करें या जिला आयुक्त के आधिकारिक आवास को इनके झुंड से भर दिया जाएगा.

गुस्से से आगबबूला मोर ने कहा, “मैंने चार एकड़ गेहूं की फसल खो दी वो बहुत बड़ी थी. यह मुझे आर्थिक रूप से प्रभावित करेगा और मुझे मुआवजा भी नहीं मिलेगा. यह प्रशासन की नाकामी है कि आवारा पशुओं को नहीं रोक पा रहे हैं और हम किसानों को इसके लिए सज़ा मिल रही है.”

इस सवाल का जवाब दिए बिना कि आवारा मवेशियों के मामले को प्रशासन द्वारा क्यों नहीं निपटाया जा रहा है, जींद के डिप्टी कमिश्नर मनोज कुमार ने दिप्रिंट को बताया, “हमारे पास शहरी क्षेत्रों और ग्रामीण क्षेत्रों में गायों के लिए नंदीशालाएं (गाय आश्रय) और गौशालाएं हैं, पंचायत अपनी खुद की गौशाला चलाती है और हम किसानों को चारे की खेती के लिए भुगतान भी करते हैं.”

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वहीं, दूसरी ओर माजरा खाप के प्रधान गुरविंदर सिंह संधू ने कहा कि स्थानीय किसानों के पास मामलों को अपने हाथ में लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

जिला प्रशासन द्वारा जिले में सभी आवारा मवेशियों को पकड़ने और उन्हें आश्रय स्थलों में स्थानांतरित करने के लिए 15 दिनों के समय के अनुरोध का उल्लेख करते हुए, संधू ने कहा, “प्रशासन हमारी अनदेखी कर रहा है. देखते हैं 15 दिनों में कुछ होता है या नहीं, उसके बाद हमें बाहर निकल कर इस मामले पर कदम उठाना होगा.

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के मीडिया सलाहकार राजीव जैन के मुताबिक, “यह कहना कि सरकार कुछ नहीं कर रही है, सरासर गलत है. हमने गौशालाओं की स्थापना की और धन आवंटित किया, लेकिन अब, लोगों को बाहर आने और इस मुद्दे को हल करने के लिए हमारा समर्थन करने की जरूरत है. तभी हम कुछ कर सकते हैं.”

आवारा पशुओं की समस्या से केवल किसान ही प्रभावित नहीं हैं. राज्य विधानसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, आवारा गाय भी राज्य में बड़ी संख्या में सड़क दुर्घटनाओं का कारण रही हैं.


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‘हमें आवारा गाय नहीं चाहिए’

वहीं, जींद हरियाणा का एकमात्र जिला नहीं है, जहां किसान अपनी फसलों के लिए सुरक्षा की मांग कर रहे हैं. जींद से दो घंटे की दूरी पर स्थित अंबाला में भी किसानों ने सबसे असामान्य तरीके से आवारा मवेशियों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने का फैसला किया है.

14 फरवरी को जब दुनिया वैलेंटाइन डे मना रही थी, अंबाला के किसान सैकड़ों मवेशियों से भरी अपनी ट्रैक्टर ट्रॉलियों के साथ डिप्टी कमिश्नर प्रियंका सोनी के कार्यालय के बाहर उतरे. डीसी कार्यालय के बाहर धरने पर बैठे किसानों ने जिला प्रशासन से कहा- ‘‘इन मवेशियों को रख लीजिए’’.

भारतीय किसान यूनियन (भगत सिंह गुट) के प्रवक्ता तेजवीर सिंह, जो समूह का हिस्सा थे, ने कहा, “यह वेलेंटाइन डे था और इसलिए हमने डीसी और भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) के नेताओं से कहा (जो गायों से प्यार करने का दावा करते हैं और उन्हें गले लगाने के लिए भी कहते हैं) कि इन्हें उनके घरों से बांध देना चाहिए…हमें वो (मवेशी) नहीं चाहिए.’’

अंबाला जिले में कथित तौर पर आवारा मवेशियों के लिए लगभग 12 गौशालाएं हैं, जिनमें से 11 पंजीकृत हैं, लेकिन जिला प्रशासन के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि वे आवारा मवेशियों को रखने के लिए पर्याप्त नहीं थे.

आवारा पशुओं द्वारा अपनी फसलों को बर्बाद किए जाने से परेशान यमुनानगर के किसानों ने भी पिछले सप्ताह जिला प्रशासन को इसी तरह की चेतावनी जारी करते हुए कहा था कि आवारा मवेशियों से अपनी फसलों की रक्षा के लिए उनके पास अपने खेतों के बीच खुले में सोने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है.

जोगिंदर नैन (50) ने कहा कि वे अपने खेत की सुरक्षा के लिए कई दिनों तक खुले में सोने के बाद बीमार पड़ गए. उनकी गैर-मौजूदगी में उनका बेटा कमान संभाल रहा है. आवारा मवेशियों के मुद्दे पर उनकी चिंता इस हद तक थी कि नैन ने अपने खेत के बीचोंबीच एक घर बनाने का फैसला किया ताकि वे और उनका परिवार अपनी फसलों पर नज़र रख सकें.

नैन ने कहा, “हमारी यही ज़िंदगी है. प्रशासन और सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता. वोट के समय, वे हमेशा मवेशियों की समस्या को हल करने का वादा करते हैं, लेकिन एक बार सत्ता में आने के बाद, हर वादा नाले में चला जाता है.”


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आवारा मवेशियों से संबंधित हादसों में 900 लोगों की मौत

हरियाणा विधानसभा में प्रस्तुत आंकड़ों से सामने आया है कि आवारा पशुओं के खतरे से केवल किसान ही प्रभावित नहीं हैं.

पशुपालन और डेयरी मंत्री जेपी दलाल ने पिछले साल अगस्त में विधानसभा में एक लिखित जवाब में कहा था कि 2018 और 2022 के बीच राज्य में आवारा मवेशियों से संबंधित दुर्घटनाओं में कम से कम 900 लोगों की जान चली गई. उनके जवाब के मुताबिक इसी अवधि में हरियाणा में इस तरह के कुल 3,383 हादसे दर्ज किए गए. 2018 और 2019 के बीच इस तरह के हादसों में 241 लोगों की मौत हुई, जिसमें फतेहाबाद में सबसे ज्यादा 40, अंबाला में 36 और कैथल में 23 लोगों की मौत हुई.

निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू ने विधानसभा में यह मुद्दा उठाया था.

2022 तक, हरियाणा में 700 गौशालाएं थीं यानी 2018 में 175 के मुकाबले तीन गुना वृद्धि.

एक आरटीआई के जवाब में पिछले साल मई में खुलासा हुआ था कि राज्य में करीब पांच लाख आवारा मवेशी हैं. सिरसा में आवारा मवेशियों की संख्या सबसे अधिक 56,389 थी, इसके बाद हिसार और सोनीपत का स्थान था.

हरियाणा सरकार ने 2022 में गौशालाओं की ढांचागत ज़रूरतों के लिए 20 करोड़ रुपये और चारे के लिए 30 करोड़ रुपये आवंटित किए थे.

सरकार से जुड़े सूत्रों ने कहा कि हरियाणा गौवंश संरक्षण और गौसंवर्द्धन अधिनियम, 2015 द्वारा प्रेरित गाय सतर्कता के कारण राज्य भर में आवारा पशुओं की संख्या में वृद्धि हो सकती है. कानून में गोहत्या के अपराधी के लिए 10 साल तक के कठोर कारावास और 1 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है.

राजीव जैन ने कहा, “मवेशियों का खतरा एक पुरानी समस्या है. कांग्रेस सरकार के समय इन मवेशियों को काटा जाता था. हमने कानून लाकर इसे बंद कर दिया, जिसके कारण मवेशियों की संख्या में वृद्धि हुई है.”

(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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