नयी दिल्ली, 10 अक्टूबर (भाषा) मानसिक स्वास्थ्य तकनीक संबंधी स्टार्टअप देश में इस क्षेत्र में सबसे तेजी से बढ़ते स्टार्टअप के रूप में उभर रहे हैं।
भारत में करीब 450 मानसिक स्वास्थ्य-तकनीकी स्टार्टअप हैं, जो चिकित्सा तक पहुंच में सुधार करने, समय रहते हस्तक्षेप और औपचारिक देखभाल प्रणाली से बाहर रहने वालों को भावनात्मक समर्थन प्रदान करने के लिए डिजिटल नवाचारों का उपयोग कर रहे हैं।
भारत मानसिक स्वास्थ्य गठबंधन (आईएमएचए) के मुताबिक 20 करोड़ भारतीयों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पाई गई हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त उपचार नहीं मिल रहा है, जिसके कारण कुछ क्षेत्रों में उपचार में 95 प्रतिशत तक का अंतर है।
‘इवॉल्व’ और ‘आत्मन’ जैसे मंच, जो टेक-फर्स्ट वेंचर परोपकारी संगठन एसीटी द्वारा समर्थित हैं, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को अधिक सुलभ और समावेशी बनाकर परिवर्तन का नेतृत्व करने वालों में अग्रणी हैं।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर बाल एवं किशोर मनोचिकित्सक तथा आईएमएचए की संस्थापक सदस्य डॉ. कविता अरोड़ा ने कहा, ‘‘संसाधनों तथा जागरूकता की कमी है, सहायता प्राप्त करने के मुकाबले मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां बढ़ रही है। ऐसे में सुलभता और सामर्थ्य के बीच का अंतर इतना बड़ा है कि उसे पूरा नहीं किया जा सकता।’’
उन्होंने कहा कि पारंपरिक प्रणालियां मांग के बोझ तले दब रही हैं और स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नई पीढ़ी के नवप्रवर्तक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, तथा मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं, जो अधिक समावेशी, किफायती है तथा लंबे समय से पीछे छूट गए लोगों तक पहुंचने में सक्षम है।
भारत में 10.6 प्रतिशत वयस्क किसी न किसी मानसिक समस्या से पीड़ित हैं तथा प्रति 100,000 आबादी पर केवल 0.75 मनोचिकित्सक हैं, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की प्रति लाख तीन मनोचिकित्सकों के मानक से काफी कम है, इस प्रकार भारत का मानसिक स्वास्थ्य संकट गंभीर स्तर पर पहुंच गया है।
डिजिटल समाधानों पर बढ़ते तव्वजो ने भारत के जीवंत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को प्रेरित किया है।
‘इवॉल्व’ के सह-संस्थापक रोहन अरोड़ा ने कहा कि इस मंच को मानसिक स्वास्थ्य को किसी के लिए भी, कहीं भी सुलभ बनाने के लिए डिजाइन किया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम समलैंगिक समुदाय के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की सामान्य अनुपलब्धता और मानसिक स्वास्थ्य समाधानों की पूर्ण कमी से निपट रहे थे, जिनमें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या होने की आशंका तीन से चार गुना अधिक होती है।’’
‘आत्मन’ बच्चों के लिए संकट में बदलने से पहले उनकी भावनाओं के बारे में बात करने में मदद कर रहा है। इसकी सह-संस्थापक माधवी जाधव ने कहा, ‘‘हमने पाया कि किशोर परीक्षा और सोशल मीडिया के बारे में तो बहुत बातें करते हैं, लेकिन भावनाओं के बारे में चुप रहते हैं।’’
जाधव ने कहा, ‘‘ज्यादातर सरकारी और ग्रामीण विद्यालयों में कोई परामर्शदाता नहीं होता, और घर पर भी यह विषय असहज बना रहता है। ‘आत्मन’ उस चुप्पी को तोड़ने का हमारा तरीका था। अगर हम कक्षा में गणित और विज्ञान पढ़ा सकते हैं, तो हम तनाव प्रबंधन, आत्म-सम्मान और स्वस्थ रिश्ते भी सिखा सकते हैं।’’
‘आत्मन’ डिजिटल मॉड्यूल को परामर्शदाता-निर्देशित सत्रों के साथ जोड़ता है और वर्तमान में 400 से अधिक सरकारी विद्यालयों में संचालित है। यह 3.5 लाख से अधिक छात्रों तक पहुंच चुका है। इसकी सामग्री हिंदी, अंग्रेजी, तेलुगु और कन्नड़ में उपलब्ध है।
भाषा धीरज शफीक
शफीक
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