नई दिल्ली: इस साल, देश के कई हिस्सों में मौसम की ऐसी घटनाएं हो रही हैं जो अप्रैल और मई के लिए असामान्य हैं. जबकि पूर्वी भारत के अधिकांश हिस्से और दक्षिणी प्रायद्वीप अत्यधिक और लंबे समय तक गर्मी से जूझ रहे हैं, कश्मीर बर्फ से ढका हुआ है. मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह की चरम मौसमी परिस्थितियां जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण हो सकती है, जो कि आने वाले वर्षों में शहरों को अधिक जलवायु की चरम परिस्थितियों से निपटने योग्य बनाने में सरकारों के लिए एक चेतावनी का संकेत है.
अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में, कश्मीर के कुछ हिस्सों में भारी बारिश और बर्फबारी हुई, यह नजारा आमतौर पर दिसंबर और जनवरी के महीनों में देखा जाता है. गुलमर्ग, सोनमर्ग, कुपवाड़ा और बारामूला सहित क्षेत्रों में तापमान में भारी गिरावट के साथ भारी बर्फबारी दर्ज की गई.
अप्रैल-मई में मौसम की ये घटनाएं और भी आश्चर्यजनक हैं क्योंकि राज्य में दिसंबर और जनवरी में शुष्क बर्फबारी और बारिश दर्ज की गई थी. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों से पता चलता है कि जम्मू-कश्मीर में दिसंबर में 80 प्रतिशत और जनवरी में 100 प्रतिशत बारिश की कमी दर्ज की गई.
जहां कश्मीर बेमौसम बारिश और बर्फबारी से जूझ रहा है, वहीं ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, तमिलनाडु, तेलंगाना और अन्य राज्यों के कुछ हिस्से कम से कम दो सप्ताह से तीव्र और लगातार गर्मी की स्थिति से जूझ रहे हैं. मौसम विभाग ने इन क्षेत्रों में एक और सप्ताह तक उच्च तापमान रहने की चेतावनी दी है.
“अगले तीन दिनों तक तटीय आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और रायलसीमा में अधिकतम तापमान 44-47 डिग्री सेल्सियस के बीच बना रहेगा. आईएमडी के एक अधिकारी ने कहा, अगले कुछ दिनों तक पूर्वी भारत में हीटवेव की स्थिति जारी रहेगी.
चरम मौसम रिकॉर्डिंग का कारण क्या है?
विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल कुछ अनोखी मौसम प्रणालियां काम कर रही हैं, जिसके कारण कुछ हिस्सों में अत्यधिक गर्मी दर्ज की जा रही है, जबकि अन्य हिस्सों में बारिश और बर्फबारी की गतिविधियां देखी जा रही हैं.
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव माधवन राजीवन ने कहा कि लंबे समय तक गर्मी के पीछे प्राथमिक कारण भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर कम गरज के साथ बारिश और एंटी-साइक्लोन सर्कुलेशन है. इन महीनों में वर्षा की गतिविधि तापमान के स्तर को एक निश्चित स्तर से ऊपर नहीं बढ़ने देती है और इन भागों में लंबे समय तक चलने वाली गर्मी को खत्म कर देती है. इस बार ऐसा नहीं हुआ है.
दूसरी ओर, कश्मीर में बर्फबारी क्षेत्र में पश्चिमी विक्षोभ के कारण हो रही है.
राजीवन ने कहा, “इस साल कुछ मौसम प्रणालियां काम कर रही हैं जो इन चरम मौसमी स्थितियों को ट्रिगर कर रही हैं.”
आईएमडी वैज्ञानिकों के अनुसार, इस वर्ष क्षेत्र में बर्फ की कमी में अल-नीनो की स्थिति की भी भूमिका थी. अल नीनो और ला नीना की स्थितियां अल-नीनो दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) घटना के दो चरण हैं जो भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में होती हैं. अल नीनो चरण को गर्म तापमान द्वारा चिह्नित किया जाता है, जबकि ला नीना कूलिंग पीरियड को दिखाता है.
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
यह अप्रत्याशित और चरम मौसम की घटनाएं जलवायु परिवर्तन के चिंताजनक संकेत भी हो सकती हैं.
निजी मौसम पूर्वानुमान एजेंसी स्काईमेट वेदर के उपाध्यक्ष (मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन) महेश पलावत ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
पलावत ने कहा, “यह जलवायु परिवर्तन का प्रभाव है इसकी पुष्टि के लिए हमें अगले चार से पांच वर्षों तक इस प्रवृत्ति का निरीक्षण करना होगा, लेकिन शुरुआती अवलोकन चिंताजनक प्रवृत्ति की ओर इशारा कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि पिछले दो-तीन वर्षों में, कश्मीर के कुछ हिस्सों में एक प्रवृत्ति देखी गई है – आमतौर पर सर्दियों के आसपास देखे जाने वाले कई पश्चिमी विक्षोभ अब वसंत के मौसम में देखे जा रहे हैं. पश्चिमी विक्षोभ के आने में देरी हुई, जिससे सर्दियों में बारिश और बर्फबारी कम हुई, जो चिंता का कारण है.
स्थानीय मौसम रिकार्डिंग भी इसकी पुष्टि कर रही है. कश्मीर में, पिछले कुछ वर्षों में, बर्फबारी में उल्लेखनीय गिरावट आई है और सर्दियों के तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि हुई है. दिसंबर और जनवरी में पश्चिमी विक्षोभ की संख्या भी अब कम है.
यह सिर्फ भारत नहीं है; ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर के देशों में चरम मौसम की घटनाएं देखी जा रही हैं. इस साल अप्रैल में जारी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि मानव-प्रेरित जलवायु विघटन दुनिया भर में चरम मौसम की घटनाओं को जन्म दे रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल भारत में भीषण गर्मी के कारण लगभग 110 मौतें हुईं.
रिपोर्ट में कहा गया है, “अप्रैल और मई में एक बड़ी और लंबे समय तक चलने वाली गर्मी ने दक्षिण-पूर्व एशिया को प्रभावित किया, जो पश्चिम में बांग्लादेश और पूर्वी भारत तक और उत्तर से दक्षिणी चीन तक फैली हुई थी, जहां तापमान रिकॉर्ड तोड़ रहा था.”
विशेषज्ञों ने कहा कि देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से लड़ने के लिए जलवायु के अनुकूल शहर बनाने की दिशा में काम करना होगा.
राजीवन ने कहा, “सरकारों को ऐसे अप्रत्याशित मौसम से निपटने के लिए तैयार रहना होगा. शहरों को ऐसी परिस्थितियों से निपटने लायक बनाना होगा और क्षेत्र की पारिस्थितिकी को ध्यान में रखते हुए विकासात्मक गतिविधियां चलानी होंगी.”
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