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Sunday, 22 December, 2024
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लॉकडाउन में बिगड़े सैलून व्यवसायियों की हालात, राज्य सरकार से मांगा जरुरी राशन और आर्थिक पैकेज

सैलून व्यवसायिक संगठन के प्रदेश अध्यक्ष ने दिया मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को ज्ञापन, पूछा, खाली हाथ और पेट जिंदा कैसे रहें साहेब?

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पुणे: ‘हमारे पुरखों ने हमसे कहा था कि हमारे हाथों में ऐसा हुनर है कि हम कभी हाथ और खाली पेट नहीं बैठ सकते. पर, कोरोना के डर से घरबंदी ने हमें पूरी तरह हताश कर दिया है. पिछले कई दिनों से जीवन के लिए जरुरी कुछ दुकानों को छोड़कर पूरे देश में बाकी दुकाने बंद हैं. हमारी सैलून की दुकाने भी बंद हैं. इसके कारण सैलून व्यवसाय से जुड़े लोग घर बैठने को मजबूर हो गए हैं. हमारे सामने जीने का सवाल है. देखिए साहेब, हम लोग भी रोज खाने और कमाने वाले लोग हैं? इसलिए, काम बंद होने के बाद हमें भी भूखे मरने का डर सता रहा है.’ ऐसा कहना है महाराष्ट्र के पुणे शहर के एक सैलून की दुकान चलाने वाले अमित वाटकर का.

राहत के लिए ज्ञापन

वहीं, महाराष्ट्र राज्य सैलून व्यावसायिक संगठन के प्रदेश अध्यक्ष रवि बेलपत्रे ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक ज्ञापन दिया है. इसमें उन्होंने मुख्यमंत्री से राज्य के सभी सैलून व्यवसायिक परिवारों के लिए जीने का जरुरी राशन और आर्थिक पैकेज मांगा है.


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रवि बेलपत्रे का कहना है, ‘कोरोना के संक्रमण से लड़ने के लिए वे राज्य सरकार के साथ खड़े हैं और इसके लिए सरकार के प्रयासों की सराहना भी करते हैं.’ साथ ही उनकी मांग है कि सरकार उनके समुदाय पर आए संकट पर ध्यान देते हुए उनके लिए तुरंत राहत उपलब्ध कराए.

कोरोना के खतरे से बचने के लिए गत 22 मार्च को केंद्र सरकार ने पूरे देश में लॉकडाउन लागू किया था और ऐसी स्थिति में राज्य सरकार नियम का पालन कराने के लिए स्थानीय स्तर पर यातायात व्यवस्था पर रोक लगाते हुए सिर्फ जीवनोपयोगी दुकानों को ही खोलने की अनुमति दे रही है.

हालांकि, इस स्थिति में सैलून व्यवसायिकों का एक वर्ग यह तर्क भी दे रहा है कि लोगों की दाढ़ी बनाने और उनकी हेयरकटिंग को भी सरकार एक आवश्यक उपक्रम माने और इस आधार पर सैलून की दुकानों को खोलने की अनुमति दे.

अपनी सोचें की अपने यहां काम करने वालों की

सैलून संचालकों का यह भी कहना है कि इसके लिए सरकार चाहे तो स्थानीय प्रशासन के माध्यम से सैलून की दुकानों के जरिए कोरोना का संक्रमण रोकने के लिए ‘सख्ती’ कर सकता है. इस दौरान सैलून की दुकानों पर ग्राहक और कामगारों को अपने चेहरे मास्क से ढकने, साबुन से हाथ धोने, सेनिटाइजर का उपयोग करने और सोशल डिस्टेंस का पालन करने जैसे बचाव के तरीके अपनाने के लिए बाध्य किया जा सकता है.


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राज्य के सांगली शहर में एक सैलून व्यवसायिक संजय म्हात्रे का कहना है कि पूरे देश में लाखों लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं. इसमें बड़ी संख्या कामगारों की भी है. वहीं, हर दिन करोड़ों की संख्या में ग्राहक सैलून की दुकानों पर आते हैं. इन्हीं ग्राहकों के भुगतान से व्यावसायिकों और कामगारों को दैनिक मेहनताना हासिल होता है और उनके परिवारों का पेट पलता है. ऐसे में उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वे अपने परिवार का भरण-पोषण करें या अपनी दुकान में काम करने वाले कामगारों के परिवारों के भरण-पोषण के बारे में सोचें.

वहीं, वर्धा जिला सैलून व्यवसायिक संगठन के अध्यक्ष अशोक किन्हेकर का कहना है, ‘सैलून ऐसा व्यवसाय है जिसमें हर जाति और धर्म के लोग आते हैं. इस व्यवसाय से जुड़े कर्मचारी गरीब और अमीरों की सेवा करते हैं.’

‘आज मुश्किल घड़ी में वे आम लोग और सरकार से मांग कर रहे हैं कि उन्हें आर्थिक संकट से उबारने के लिए जल्द ही कोई विकल्प तलाशा जाए.’

(शिरीष खरे शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं और लेखक हैं)

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