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Thursday, 27 June, 2024
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सिकुड़ा हुआ राष्ट्रीय पदचिन्ह, संस्कारी राजनीति, शरद पवार पर निर्भरता—कैसे रहे एनसीपी के 24 वर्ष

घरेलू मैदान महाराष्ट्र और लोकसभा में पार्टी की चुनावी उपस्थिति लगभग वैसी ही है जैसी अपने गठन के तुरंत बाद थी. वर्तमान समय में पवार की राजनीति को ‘थोड़ा बहुत संस्कारी’ भी देखा गया है.

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मुंबई: कांग्रेस से नाता तोड़कर 1999 में जब शरद पवार ने अपनी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन किया, तो वे पार्टी के गांधीवादी वैचारिक जड़ों को दर्शाने के लिए चरखा को अपनी पार्टी के चिन्ह के रूप में चाहते थे.

जब चुनाव आयोग (ईसी) ने इस अनुरोध को खारिज कर दिया, तो पार्टी ने अपना चिन्ह घड़ी को बनाया.

एनसीपी ने पार्टी के संविधान को अपनाया और 17 जून, 1999 को पहली बार पदाधिकारियों की नियुक्ति की. इसके लिए मुंबई के शनमुखानंद ऑडिटोरियम में सुबह 10:10 बजे बैठक शुरू हुई थी.

और इसलिए, पार्टी के चिन्ह की घड़ी में समय हमेशा 10:10 दिखाया जाता है.

आज 24 साल बाद भी एनसीपी अपने चुनाव चिन्ह की तरह ही रही है—कम से कम जहां तक इसके चुनावी प्रदर्शन का सवाल है, यह समय के साथ जमी हुई है.

एनसीपी की अपने गृह क्षेत्र महाराष्ट्र और लोकसभा में चुनावी उपस्थिति लगभग वैसी ही है जैसी पार्टी के शुरुआती वर्षों में थी.

एनसीपी का राष्ट्रीय पदचिह्न केवल महाराष्ट्र में सिकुड़ गया है यह पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा के अपने गढ़ों से आगे नहीं बढ़ पाया है.

इसके अलावा, पार्टी ने दूसरी पंक्ति के नेतृत्व को मजबूत किया है, यह अभी भी अपनी पहचान के लिए संस्थापक शरद पवार पर निर्भर है, जैसा कि पवार की घोषणा पर पार्टी कार्यकर्ताओं के भारी विरोध से स्पष्ट था जब वे पिछले महीने राकांपा प्रमुख के पद से इस्तीफा दे रहे थे.

लेकिन 82-वर्षीय नेता को आखिरकार अपना फैसला वापस लेना पड़ा.

जबकि राकांपा महाराष्ट्र में शायद आज की सबसे प्रमुख विपक्षी पार्टी है, यह एनसीबी के विकास के बजाय अन्य दलों के कमजोर होने के कारण अधिक बनी है.

महाराष्ट्र में कांग्रेस का पदचिह्न सिकुड़ रहा है, पार्टी का वोट शेयर 2019 में घटकर 15.87 प्रतिशत हो गया है, जो 1999 में 27.2 प्रतिशत था. शिवसेना भी दो धड़ों में विभाजित हो गई है, दोनों गुट स्पेक्ट्रम के विपरीत पक्षों पर हैं.

Graphic by Manisha Yadav, ThePrint
चित्रण: मनीषा यादव/दिप्रिंट

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने दिप्रिंट को बताया, “एक पार्टी के रूप में एनसीपी बहुत सक्रिय है. पार्टी की कोई न कोई गतिविधि हमेशा चलती रहती है, लेकिन इससे अखिल महाराष्ट्र उपस्थिति का विकास नहीं हुआ है. यही कारण है कि राकांपा राज्य में 2004 में मिली 71 विधानसभा सीटों के अपने टारगेट से आगे नहीं बढ़ पाई है.”


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सीमित चुनावी प्रदर्शन

दिप्रिंट से बात करते हुए पुणे के डॉ आंबेडकर कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स के एसोसिएट प्रोफेसर नितिन बिरमल ने कहा, “शुरुआत से ही एनसीपी को ज्यादातर मराठा पार्टी के रूप में देखा जाता रहा है. शुरुआत में अन्य पिछड़े समुदाय में पार्टी का जो कुछ समर्थन आधार था वो अब कम हो गया है और जातिगत कारक ने एनसीपी के भौगोलिक विस्तार को सीमित कर दिया है.”

उन्होंने कहा, “इसके अलावा पार्टी के नेताओं के राज्य के सहकारी क्षेत्र के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, जो विशेष रूप से पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा के कुछ हिस्सों में मजबूत रहे हैं और इसलिए पार्टी का प्रभाव इन हिस्सों में काफी है.”

राकांपा ने अपना पहला लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव उसी वर्ष लड़ा था, जब 1999 में इसका गठन किया गया था.

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, लोकसभा में पार्टी ने 2.27 फीसदी वोट शेयर के साथ आठ सीटें जीतीं, जबकि महाराष्ट्र विधानसभा में उसने 22.6 फीसदी वोट शेयर के साथ 58 सीटें जीतीं.

Graphic by Manisha Yadav, ThePrint
चित्रण: मनीषा यादव/दिप्रिंट

जबकि पार्टी का वोट शेयर पिछले कुछ वर्षों में कम हो गया है, राज्य विधानसभा में ज्यादातर सीटों की संख्या 41 से 71 और लोकसभा में पांच से नौ के बीच रही है.

एनसीपी को जनवरी 2000 में एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी गई थी क्योंकि इसे महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर और नागालैंड में “राज्य-पार्टी का दर्जा” प्राप्त था.

हालांकि, इस साल अप्रैल में चुनाव आयोग ने समीक्षा करने और यह निष्कर्ष निकालने के बाद कि पार्टी अब अरुणाचल, मेघालय और मणिपुर में राज्य-पार्टी के दर्जे की शर्तों को पूरा नहीं करने के कारण, एनसीपी का राष्ट्रीय दर्जा वापस ले लिया गया.

देसाई ने कहा, “एनसीपी ने अपने अस्तित्व के 24 वर्षों में से 17 से अधिक साल सत्ता में बिताए हैं. सत्ता में रहकर इसकी राजनीति की गई और जब यह विपक्ष में रहा है, तो इसे पर्याप्त मजबूत विपक्ष नहीं होने, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रति नरम रहने की आलोचना का सामना करना पड़ा है.”


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‘मराठा पार्टी’

एनसीपी नेताओं ने दिप्रिंट से बात की और स्वीकार किया कि पार्टी कार्यकर्ताओं से जुड़ी लगातार गतिविधियों और कार्यक्रमों और उनके वरिष्ठ नेतृत्व द्वारा क्षेत्र के दौरे के बावजूद पार्टी वास्तव में सीमाओं को आगे बढ़ाने में सक्षम नहीं रही.

नेताओं ने बताया कि कैसे उदय सामंत, दीपक केसरकर और भास्कर जाधव जैसे कुछ बड़े नेताओं के बाद एनसीपी महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में अपने स्थान को पुनः प्राप्त करने में सक्षम नहीं थी, पूर्व में एनसीपी के साथ रहे सभी वफादार अविभाजित शिवसेना में स्थानांतरित हो गए थे.

सामंत और केसरकर ने 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले राकांपा छोड़ दी, जबकि जाधव ने 2019 के राज्य चुनाव से पहले छोड़ दिया. सामंत और केसरकर दोनों पिछले साल एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के विधायकों के विद्रोह का हिस्सा थे और अब शिंदे के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में मंत्री हैं.

एनसीपी नेताओं ने यह भी बताया कि कैसे विदर्भ और मुंबई जैसे क्षेत्र पार्टी के लिए मायावी रहे हैं.

वे कहते हैं कि एक कारण यह है कि एनसीपी अपने शुरुआती “मराठा पार्टी” टैग को छोड़ने में सक्षम नहीं है, जबकि दूसरा कारण यह है कि लगातार राज्य के नेतृत्व एनसीपी को लोकप्रिय बनाने और अपने मूल क्षेत्रों के बाहर अपने आधार का विस्तार करने में विफल रहे.

एनसीपी के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “हालांकि, यह बदल रहा है. पिछले चार या पांच वर्षों से हमारे पास मजबूत सदस्यता अभियान, कार्यकर्ताओं के साथ हर महीने की बातचीत और राज्य अध्यक्ष (जयंत पाटिल) द्वारा पूरे महाराष्ट्र में नियमित दौरे हुए हैं.”

मुंबई के एक अन्य एनसीपी नेता ने याद किया कि कैसे 2017 में मुंबई के एलफिंस्टन रोड स्टेशन (जिसे अब प्रभादेवी के नाम से जाना जाता है) में एक फुट ओवरब्रिज पर भगदड़ के कारण हुई मौतों से सदमे में आए पवार ने कुछ नेताओं के सामने स्वीकार किया था कि पार्टी को मुंबई के मुद्दों को और लगातार उठाना चाहिए था.

राकांपा नेता ने कहा, “मुझे याद है कि उन्होंने ‘अपला मुंबईकड़े दुर्लभ झाला’ (हमने मुंबई को नज़रअंदाज किया) कहा था.”


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‘राजनीति का पवार ब्रांड कुछ ज्यादा ही संस्कारी’

इस हफ्ते की शुरुआत में पत्रकारों से बात करते हुए, शरद पवार के पोते, विधायक रोहित पवार ने राकांपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ निराशा व्यक्त की, जब राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने उनके पार्टी प्रमुख के खिलाफ आरोप लगाए.

पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि एनसीपी में कई, जिनमें कुछ बहुत वरिष्ठ नेतृत्व भी शामिल हैं, वो भी ऐसे ही हताश हैं.

ऐसा कहा जाता है, लेकिन राजनीतिक आरोपों का जवाब देने या उन्हें नकारने के बजाय उन्हें नज़रअंदाज़ करना और यहां तक कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को भी पास रखना, आखिरकार, पवार ब्रांड की राजनीति का एक हिस्सा है.

दल बदल कर दूसरी पार्टी में जाने वाले एनसीपी के एक पूर्व नेता ने दिप्रिंट को बताया, “आज भी अगर पार्टी छोड़ने वाले नेताओं में से कोई भी पवार साहब से मिलना चाहता है, तो वे मना नहीं करेंगे. वे अपनी पार्टी के किसी भी नेता को अनावश्यक रूप से हमारे खिलाफ आलोचना करने की अनुमति नहीं देंगे.”

नेता ने कहा, “भाजपा उनकी (पवार) आलोचना करती रहती है और फिर भी वे जाते हैं और मुख्यमंत्री शिंदे से मिलते हैं और उन्हें एक कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करते हैं. वे अपनी राजनीति को सभ्य रखना पसंद करते हैं, लेकिन कभी-कभी यह जनता को एक अलग संदेश भेजता है.”

एनसीपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि पवार की राजनीति समय के लिए “थोड़ी बहुत संस्कारी” है.

उन्होंने कहा, “पवारसाहेब संयम पसंद करते हैं, उनकी राजनीति बहुत संस्कारी है. इसलिए हमारे नेताओं को आरोपों का आक्रामक रूप से जवाब देने की भावना से तैयार नहीं किया गया है. यह कभी-कभी पवार साहब के बारे में एक नकारात्मक धारणा बनाता है, उनके राजनीतिक इरादों के बारे में संदेह के पैदा करता है और यह पार्टी की संभावनाओं को प्रभावित करता है.”

हालांकि, बीरमल एनसीपी के राजनीतिक आधार और प्रदर्शन में फ्लैटलाइन को 24 वर्षों में अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में देखते हैं.

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में राजनीति की एक बहुदलीय प्रणाली है, जिसमें कुछ दक्षिणी राज्यों के विपरीत किसी भी पार्टी के एक बिंदु से आगे बढ़ने के लिए चरम क्षेत्रवाद के लिए बहुत कम गुंजाइश है.

बीरमल ने कहा, “पिछले दो दशकों में पश्चिमी महाराष्ट्र का तेजी से शहरीकरण हुआ है और एनसीपी, ग्रामीण छवि होने और किसानों की पार्टी के रूप में देखे जाने के बावजूद, इस क्षेत्र पर अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब रही है. भाजपा के आक्रामक विस्तार ने लगभग हर पार्टी के आधार को खत्म कर दिया है, लेकिन एनसीपी ने कमोबेश अपने क्षेत्र की रक्षा की है.”

उन्होंने कहा, “पार्टी के पास जो था उसे बनाए रखना अपने आप में एक उपलब्धि है.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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