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Tuesday, 17 December, 2024
होमदेश‘क्या मुझे यह करना चाहिए था?' असफल सेक्स सर्जरी, आत्महत्याओं के बाद चिंतित केरल के ट्रांसजेंडर्स

‘क्या मुझे यह करना चाहिए था?’ असफल सेक्स सर्जरी, आत्महत्याओं के बाद चिंतित केरल के ट्रांसजेंडर्स

मलयाली ट्रांसजेंडर समुदाय का कहना है कि राज्य में इस समुदाय के प्रति अनुकूल रुख रखने डॉक्टर मौजूद हैं. लेकिन वे सभी निजी अस्पतालों में काम करते हैं और उनकी जवाबदेही तय करना मुश्किल है.

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11 सितंबर 2021 को सेरा फ्रेंको जब सो कर उठीं तो उन्हें पता था कि उनकी जिंदगी बदलने वाली है. आखिरकार, उसे अपनी लैंगिक पहचान के आस-पास बने सामाजिक कलंक और आत्म-संदेह से छुटकारा मिलने ही वाला था. सर्जरी उसे अपने असल अस्तित्व के साथ जुड़ने में मदद करने वाली थी.

इसके बजाय, वह दर्द, संक्रमण और इससे भी बदतर— गहरे अवसाद के साथ जागीं. अब, जेंडर एफरमेशन सर्जरी (लिंग के अनुरूप शरीर में बदलाव के लिए की जाने वाले सर्जरी) के ठीक एक साल बाद, सेरा फ्रेंको के पास सलाह का एक ही शब्द है: थेरेपी.

सेरा कहती हैं, ‘क्या मुझे यह करना चाहिए था? मैं यह नहीं कह सकती कि मुझे इसका पछतावा है. लेकिन उन लोगों के लिए जो इसे करना चाहते हैं, उनसे मैं कहूंगीं: आपको पता होना चाहिए कि ऐसा बहुत कुछ है जिसे आप नियंत्रित नहीं कर सकते. उचित परामर्श लेने के बाद ही इसे करवाएं और अपने मानसिक स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें. और ऐसा कोई तरीका नहीं है जिसके जरिये आप इस सब को अकेले कर सकते हैं.‘

सेरा उन कई मलयाली ट्रांसजेंडर व्यक्तियों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) के बाद कई सारी जटिलताओं का अनुभव किया है. अगर वह पिछले साल अपनी वैजिनोप्लास्टी (योनि को आकर देने वाली सर्जरी) के बाद चीजों को कुछ अलग तरह से कर सकती थी, तो वह सर्जरी और ट्रांजिशनिंग (लिंग में बदलाव के बीच के समय काल में होने वाली प्रक्रिया) के दुष्प्रभावों को समझने में अधिक समय लगातीं.


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एक थकाऊ सफर

मलयाली ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों के लिए सर्जरी एक महत्वपूर्ण और मुक्तिदायक विकल्प है, लेकिन कुछ असफल सर्जरियां कइयों की चिंतित कर रही हैं और अकेलेपन, अस्वीकृति तथा शरीर की शिथिलता जैसे अहसास को और जटिल बना रहीं हैं.

केरल में लोगों के पास इस सर्जरी को करवाने के लिए पैसा और इच्छा दोनों है. लेकिन इसमें पहले और बाद में होने वाली काउंसलिंग (मनोवैज्ञानिक परामर्श) और सहयोग एवं समर्थन (हैंड-होल्डिंग) की कमी है. भारत में जेंडर एफरमेटिव सर्जरी के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने वाला केरल पहला राज्य था, इसके बाद तमिलनाडु, राजस्थान और महाराष्ट्र ने इसे अपनाया था. हालांकि ऐसे कई डॉक्टर हैं – यूरोलॉजिस्ट और प्लास्टिक सर्जन से लेकर स्त्री रोग विशेषज्ञ तक – जो निजी अस्पतालों में ऐसी सर्जरी करने के लिए उपलब्ध हैं, मगर मरीजों के लिए वॉल-टू-वॉल (शुरू से लेकर अंत तक) सेवा प्रदान करने के बारे में बहुत कम प्रशिक्षण प्राप्त है. और इसके लिए कोई बीमा भी उपलब्ध नहीं है.

सेरा की सर्जरी से कुछ ही महीने पहले, जुलाई 2021 में, यह समुदाय अपने एक सदस्य की आत्महत्या से हिल गया था. केरल की पहली ट्रांसजेंडर रेडियो जॉकी और राज्य के विधानसभा चुनाव में नामांकन पत्र दाखिल करने वाली पहली ट्रांसजेंडर शख्स अनन्या ने सर्जरी के दौरान चिकित्सकीय लापरवाही किये जाने का आरोप लगाने के कुछ दिनों बाद अपनी जान ले ली थी. उसने अपने गुप्तांगों का कुछ इस तरह से वर्णन किया था जैसे उन्हें ‘बड़ी बेरहमी से चाकू से काट दिया गया हो.’

वह रेडियो में इसलिए काम कर रही थी क्योंकि वह इस ‘समुदाय की आवाज़’ बनना चाहती थीं और उनकी आवाज पूरे देश में सुनी जाती थी. अखबरों की सुर्ख़ियों में दावा किया गया कि उनकी ‘कथित रूप से असफल सर्जरी’ हुई थी और इसकी वजह से व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए. इस घटना की मीडिया कवरेज और उनकी मौत पर उपजे समुदाय के दुख ने उनकी मौत को उनकी सर्जरी के बारे में उनकी नाखुशी से जोड़ा. उन्हें एक ‘रोल मॉडल’ और ‘योद्धा’ कहते हुए, उसके दोस्तों और समलैंगिक (क्वीर) समुदाय के सदस्यों से समर्थन के संदेश आने लगे. उनकी मृत्यु के कुछ दिनों बाद, उनका साथी भी फांसी से लटका हुआ पाया गया.

सूर्या नाम की एक ट्रांसजेंडर सामाजिक कार्यकर्ता, जो अनन्या के अत्यंत करीबी थीं, कहती हैं, ‘मेरा शरीर, मेरे अधिकार, हमेशा. लेकिन अगर आप सर्जरी के बारे में सोच रहे हैं – या सर्जरी कर रहे हैं – पहले इसके बारे में जानें.‘

सूर्या कम-से-कम 10 ऐसे लोगों के बारे में जानती हैं, जिन्होंने पिछले एक साल में जेंडर एफरमेशन सर्जरी के बाद आत्महत्या कर ली है. अनन्या की मौत पर एक स्वतंत्र तथ्य-खोजी रिपोर्ट कहती है कि पिछले चार वर्षों में समलैंगिक समुदाय (क्वीर) के 13 लोगों ने अपनी जान ले ली है.

समुदाय इस बदलाव की प्रक्रिया (ट्रांजिशन) के लिए तैयार है लेकिन हर कोई इस बात से अवगत नहीं है कि इस प्रक्रिया के तहत क्या होता है. और दूसरी तरफ यह कारोबार राज्य द्वारा दी जा रही वित्तीय सहायता की वजह से फल-फूल रहा है.

सूर्या कहती हैं, ‘हमारे शरीर को प्रयोगों के लिए डमी (नकली पुतले) की तरह माना जाता है. और अगर प्रयोग विफल हो जाता है, तो हमें अपने वास्तविक रूप में राहत महसूस करने की स्वतंत्रता नहीं मिलती है.’

विश्वास के सिवा कोई विकल्प नहीं

इन सारी समस्याओं के बावजूद, इस समुदाय के सदस्यों को अभी भी केरल की चिकित्सा प्रणाली में विश्वास है. कई पुरस्कार जीत चुके बॉडी बिल्डर और ट्रांसजेंडर पुरुष प्रवीण नाथ कहते हैं कि ऐसा ज्यादातर मामलों में इसलिए है कि उनके पास और कोई विकल्प नहीं है. उनकी अब तक तीन जेंडर एफर्मेशन सर्जरी हो चुकी हैं – उनमें से प्रत्येक मर्मांतक रूप से पीड़ादायक थीं और हरेक में अपने वांछित प्रभाव के प्रति कमी रही.

Before he became a body builder, Praveen Nath had his share of botched, painful surgeries | Vandana Menon | ThePrint
प्रवीण नाथ एक बॉडीबिल्डर अपने घर पर | फोटो- वंदना मेनन | दिप्रिंट.

सफेद टी-शर्ट और बॉक्सर पहने हुए प्रवीण सुबह के प्रशिक्षण सत्र के बाद तुरंत ही नहा कर आये हैं. वह अक्टूबर में एक शरीर सौष्ठव प्रतियोगिता (बॉडी बिल्डिंग कम्पटीशन) की तैयारी कर रहे हैं. जिस तरह से उनका शरीर दिखता है और महसूस करता है वह न केवल उनकी लैंगिक पहचान के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि वह पैसे के लिए जिस श्रोत पर निर्भर हैं उसके लिए भी अहम है.

इसलिए उन्होंने अपने सर्जिकल बदलाव प्रकिया का इंतजार करने का फैसला किया. पहले प्रोसीजर- जैसा कि पहले द मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट द्वारा रिपोर्ट किया गया था – के तहत 2019 में उनकी ऊपरी शरीर की सर्जरी हुई थी. जनवरी 2022 में हुई उनकी मेटोइडियोप्लास्टी या निचले शरीर की सर्जरी ठीक तरह से नहीं हुई. इसके परिणामस्वरूप उनका गंभीर रूप से मूत्र का रिसाव हुआ और उन्हें कुछ समय के लिए कैथेटर और मूत्र के बैग (यूरिन बैग्स) पर निर्भर रहना पड़ा. अंत में, एक तीसरी सुधारात्मक सर्जरी ने दूसरी सर्जरी के दुष्प्रभाव को ख़त्म क्या और उसका मूत्र मार्ग (यूरेथ्रा) फिर से खुल गया. प्रत्येक चिकित्स्कीय जांच के लिए त्रिशूर स्थित उनके घर से कोच्चि के अस्पताल तक तीन घंटे की दर्दनाक ड्राइव शामिल होती थी. वह अब रास्ते में आने वाले हर स्पीड बम्प (गति अवरोधक) को गिनवा सकते हैं.

वे कहते हैं, ‘मै गुस्से में नही हूं. लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैंने जो किया है उसे मैं अभी तक भी पूरी तरह से प्रॉसेस कर सका हूं.’ वह अपने इंद्रधनुष के झंडे वाले कवर में रखे फोन पर आये एक कॉल का जवाब देने के लिए थोड़ा सा रुकते हैं. यह एक ट्रांसजेंडर महिला है जो अपने नए नाम के साथ ट्रांसजेंडर पहचान पत्र हेतु आवेदन करने के लिए मदद मांग रही है. प्रवीण धैर्यपूर्वक समझाते हैं कि उसे क्या करने की आवश्यकता है, और उसे एक ट्रांस-फ्रेंडली (ट्रांसजेंडर लोगों के अनुकूल) वकील का नंबर देते हैं जो एक हलफनामे को नोटरीकृत करने में उसकी मदद कर सकता है.

वे कहते हैं, ‘हम हमेशा राज्य और कानून के खिलाफ नहीं लड़ सकते हैं, यह काफी थकाऊ होता है.’ यहां तक कि सही सर्वनाम और नाम से पुकारा जाना भी एक कठिन लड़ाई रही है.

वे कहते हैं, ‘जिस बात से ज्यादा दुख होता है वह यह है कि डॉक्टरों ने मुझे ऐसा महसूस कराया कि यह मेरी गलती थी जिससे कि मेरी त्वचा ठीक नहीं हो रही थी.’


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सर्जरियों के जरिए नैविगेट करना

‘द मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट’ में रेजिमोन कुट्टप्पन द्वारा रिपोर्ट की गई असफल सर्जरियों के मामले ऐसे ही सफल सर्जरी के मामलों के साथ संतुलित हो जाते हैं – और क्योंकि इन सेवाओं की पेशकश करने वाले डॉक्टरों का समूह इतना सीमित है, अनिवार्य रूप से हर व्यक्ति जो इस तरह का ट्रांजिशन चाह रहा है, उन्हीं डॉक्टरों के पास जाता है.

अनन्या की सर्जरी करने वाले डॉक्टर ने प्रवीण, जिनके लिए उन्होंने शरीर के ऊपरी हिस्से की सर्जरी की थी, सहित सैकड़ों अन्य लोगों का भी ऑपरेशन किया है. और कई लोग, जैसे कि ट्रांसजेंडर आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ वी.एस. प्रिया, उनके आभारी हैं.

प्रिया कहती हैं, ‘मुझे नहीं पता था कि मेरे ट्रांजिशन का नतीजा क्या होगा, लेकिन मुझे खुशी है कि मेरी किस्मत उसके हाथों में थी.’

Dr V.S. Priya had a planned sex reassignment surgery | Vandana Menon | ThePrint
अपने क्लीनिक में डॉ. वीएस प्रिया | फोटो- वंदना मेनन | दिप्रिंट

उनका एक प्लान के साथ ट्रांजिशन हुआ था. उन्होंने पहले हार्मोन थेरेपी शुरू की और अपने सहयोगियों को सूचित किया कि वह अपने सच्चे रूप में ही काम पर लौटकर आएगी. उनकी चिकित्स्कीय पृष्ठभूमि उनके शोध के दौरान उपयोगी साबित हुई. इसके अलावा, उनका ट्रांजिशन महामारी के साथ-साथ हुआ और मास्क पहनने से चेहरे के उन परिवर्तनों और प्रॉसिजर्स को छिपाने में मदद मिली, जिनसे वह गुजर रही थीं. वह कहती हैं, ‘मेरे शरीर के लगभग हर हिस्से को सर्जिकल चाकू से छुआ गया है, और मैं जितनी खुश आज हूं उससे अधिक खुश नहीं हो सकती.’

हालांकि, कोच्चि के एक प्लास्टिक सर्जन का कहना है कि ट्रांसजेंडर रोगी सिजेंडर रोगियों की तुलना में अधिक सख्त होते हैं. वे चाहते हैं कि उनकी नई नाक, जॉलाइन (जबड़ा) और माथा एकदम से सौन्दर्यपूर्ण (एस्थेटिक) दिखें और महसूस हो. एक ट्रांसजेंडर पुरुष ने अपने सर्जन से उसकी सर्जरी के दौरान उसे एब्स (पेट की मांसपेशियां) देने का भी अनुरोध किया, जो उसने किया.

ये सर्जन कहते हैं, ‘किसी को सुंदर महसूस कराने और अपने असली अपनेपन की तरह महसूस करने में सक्षम होना एक अद्भुत एहसास है.’ उन्हें उनके कई रोगियों ने ‘पहले जन्मदिन’ पर आमंत्रित भी किया गया है.

ट्रांजिशनिंग की प्रक्रिया

ट्रांजिशनिंग की यह प्रक्रिया सिर्फ ‘टॉप’ (शरीर के ऊपरी हिस्से) या ‘बॉटम’ (शरीर के ऊपरी निचले) सर्जरी से कहीं आगे तक जाती है.

आदर्श रूप से, जो व्यक्ति ट्रांजिशन कर रहा होता है उसका मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन किया जाता है और उसे हार्मोन थेरेपी के लिए मंजूरी दी जाती है. हार्मोन थेरेपी अगला कदम होती है, जिसके बाद अधिकांश ट्रांसजेंडर लोग ‘टॉप’ की सर्जरी का विकल्प चुनते हैं – यह ट्रांसजेंडर पुरुषों के लिए मास्टेक्टॉमी (स्तन काट कर हटाए जाने) और ट्रांसजेंडर महिलाओं के लिए स्तन प्रत्यारोपण के रूप में होती है. ट्रांसजेंडर महिलाएं अपने बालों को लेज़र करवाने या फेशियल फेमिनाइजेशन (चेहरे को एक स्त्री रूप के अनुसार बनाने) की प्रक्रियाओं से गुजरने का विकल्प भी चुन सकती हैं. बॉटम सर्जरी में ट्रांसजेंडर महिलाओं के लिए जननांगों को हटाया जाने के बाद वैजिनोप्लास्टी और ट्रांसजेंडर पुरुषों के लिए मेटोइडियोप्लास्टी और फेलोप्लास्टी शामिल है. एक सुचारू ट्रांजिशन सुनिश्चित करने के लिए हार्मोन थेरेपी ऑपरेशन के बाद भी जारी रहती है.

लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता है. अक्सर सर्जरी के लिए अधीर होने के साथ कुछ लोग प्रक्रियाओं की अवहेलना कर देते हैं. भारत की निजी चिकित्सा प्रणाली उन्हें इसकी अनुमति देती है – कभी-कभी उचित मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन के बिना ही – और हार्मोन लेना शुरू करने के तुरंत बाद सर्जरी को मंजूरी दे दी जाती है.

ऐसा नहीं है कि भारत में इसके लिए मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर (चिकित्स्कीय बुनियादी ढांचा) मौजूद नहीं है. कॉस्मेटिक और जेंडर एफर्मेशन सर्जरी की पेशकश करने वाले बहुत सारे निजी क्लीनिक हैं. यहां तक कि मुंबई स्थित प्रियामेड जैसे कुछ संस्था बीस्पोक (किसी विशेष ग्राहक या उपयोगकर्ता के लिए बनाया गए) पर्यटन पैकेज की पेशकश करके अंतरराष्ट्रीय ट्रांसजेंडर ग्राहकों की जरूरतों को भी पूरा करते हैं.

लेकिन भारतीय डॉक्टर जो ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं वह काफी नया है – इनकी देखभाल का पहला आधिकारिक भारतीय मानक केवल कोविड महामारी के दौरान ही सामने आया था.

वर्ल्ड प्रोफेशनल एसोसिएशन फॉर ट्रांसजेंडर हेल्थ (डब्लूपीएटीएच) के पास उन दिशा-निर्देशों और मानकों की एक सूची है जिसका पालन डॉक्टर लोगों को उनके ट्रांजिशन में मदद करने के लिए कर सकते हैं.

एसोसिएशन फॉर ट्रांसजेंडर हेल्थ इन इंडिया (एटीएचआई) के तहत डॉक्टरों के एक समूह – जिसमें कई मलयाली डॉक्टर शामिल हैं – ने इंडियन प्रोफेशनल एसोसिएशन फॉर ट्रांसजेंडर हेल्प (आईपीएटीएच) की शुरुआत की है. वे पहली बार 2019 में एक सम्मेलन के लिए मिले और 2020 में अपने दूसरे सम्मेलन के दौरान उन्होंने डब्लूपीएटीएच के दिशा-निर्देशों के अपने संस्करण को जारी किया. ये दिशा-निर्देश सरकारी और गैर-सरकारी दोनों तरह की एजेंसियों द्वारा सकारात्मक देखभाल और समग्र सार्वजनिक स्वास्थ्य दृष्टिकोण पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं.

केरल सरकार ने साल 2018 में वित्तीय सहायता की पेशकश शुरू की, लेकिन महत्वपूर्ण कारक यह है कि सरकार केवल इस सहायता की रिम्बर्समेंट (प्रतिपूर्ति या बाद में किया गया भुगतान) करती है, चाहे सर्जरी केरल के भीतर हो या किसी अन्य राज्य में करवाई जाये. इसने ट्रांसजेंडर लोगों को सर्जरी के लिए पहले स्वयं धन जुटाने के लिए छोड़ दिया है. यही कारण है कि कई लोग अपने ट्रांजिशन के लिए पैसे बचाने के लिए सेक्स वर्क का विकल्प चुनते हैं.

आमतौर पर पुरुष-से-महिला के रूप में ट्रांजिशन के लिए 2-5 लाख रुपये और महिला-से-पुरुष के मामले में 4-8 लाख रुपये खर्च होते हैं. केरल सरकार ‘टॉप’ या ‘बॉटम’ की सर्जरी के लिए ट्रांसजेंडर पुरुषों को 5 लाख रुपये तक और ट्रांसजेंडर महिलाओं को 2.5 लाख रुपये तक की पेशकश करती है. यह योजना आफ्टरकेयर (ऑपरेशन के बाद की देखभाल) के लिए एक वर्ष तक 3,000 रुपये प्रति माह की राशि भी प्रदान करती है. सूत्रों के अनुसार सामाजिक न्याय विभाग ने लगभग 300 लोगों की सर्जरी की प्रतिपूर्ति की है. ट्रांसजेंडर विभाग के पास इन योजनाओं के लिए 4.5 करोड़ रुपये का बजट है, जिसमें से जरूरत के आधार पर सर्जरी की प्रतिपूर्ति के लिए पैसा दिया जाता है.

हालांकि, केरल सरकार सर्जरी के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है, लेकिन यहां इसके लिए कोई सार्वजनिक अस्पताल नहीं है और यह रेनाई मेडिसिटी और अमृता अस्पताल जैसे निजी मल्टीस्पेशलिटी अस्पतालों को अग्रणी भूमिका निभाने के लिए छोड़ देता है. केरल में केवल एक सरकारी अस्पताल – कोट्टायम स्थित जनरल हॉस्पिटल – ने एसआरएस को अंजाम दिया है. यह एक मास्टेक्टॉमी थी, और इसे केवल एक बार किया गया था.

कोच्चि में एक निजी अस्पताल के रेनाई मेडिसिटी में ट्रांसजेंडर शौचालय | फोटो- वंदना मेनन | दिप्रिंट

मलयाली ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों का कहना है कि राज्य में ट्रांस-फ्रेंडली (ट्रांसजेंडर लोगों के अनुकूल) डॉक्टर मौजूद हैं. लेकिन वे सभी निजी अस्पतालों में काम करते हैं जिनकी जवाबदेही तय करना मुश्किल है.

सूर्या कहती हैं, ‘ट्रांजिशन के बारे में बहुत कम जागरूकता है और ऐसा लगता है कि डॉक्टर भी हमारे माध्यम से ही इसके बारे में सीख रहे हैं.’

सूर्या अपने स्तन प्रत्यारोपण के आकार के बारे में भी निश्चित नहीं है – उसके पास इसके 420 सीसी होने के बारे में अपने डॉक्टर के कहे पर भरोसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. उसकी बॉटम सर्जरी राज्य की सीमाओं के परे कोयंबटूर के एक अस्पताल में हुई थी, लेकिन उसके सर्जन ने उन्हें भगांकुर (क्लाइटोरिस) नहीं दिया. वह यह भी नहीं जानती थी कि भगांकुर होता क्या है, जब तक उन्हें यह एहसास नहीं हुआ कि उसके पास यह नहीं है.

एक मानसिक स्वास्थ्य का संकट

अध्ययन इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि ट्रांसजेंडर जिस तरह के सदमे से गुजरते हैं उसकी वजह से उन लोगों को मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा अधिक होता है.

कोच्चि के रेनाई मेडिसिटी के मनोचिकित्सक डॉ यू विवेक कहते हैं, ‘मेरे पास आने वाले ट्रांसजेंडर समुदाय के कई सारे सदस्य मनोवैज्ञानिक तनाव से गुजर रहे होते हैं. लेकिन सफल ट्रांजिशन के बाद यह मनोवैज्ञानिक तनाव भी कम हो जाता है – यह उपचारात्मक है.’

लेकिन सूर्या के अनुभव में, नाजुक मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ सर्जरी के योजना के अनुसार सफल नहीं होने से एक असहज ‘भानुमती का पिटारा’ खुल जाता है.

सर्जरी के बाद उसकी सहेलियों के संघर्ष करने के कई कारण हैं, जैसे कि उनकी नई योनि या लिंग के सौंदर्यपूर्ण ‘लुक’ से नाखुश होना, या प्रियजनों द्वारा ताना मारना. लेकिन, सूर्या के अनुसार, इसका अंतर्निहित कारक किसी भी व्यक्ति का हमेशा अपने मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहा होना होता है. वे कहती हैं कि यह चीज सर्जरी चाहने की व्याकुलता में भी बढ़ावा देती है- कई लोग सोचते हैं कि यह एक त्वरित सुधार होगा.

अनन्या के पिता अलेक्जेंडर कहते हैं, ‘ऑपरेशन से उसे राहत मिलनी थी.’ उन्होंने पूरी सर्जरी के दौरान उसका समर्थन किया और अब सरकार के साथ उसके मामले को उठाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं. उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसा नहीं होना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ. उन्होंने मेरे बच्चे का जीवन बर्बाद कर दिया.‘

अनन्या के पिता ने कभी उसके घाव नहीं देखे थे, लेकिन सूर्या को याद है कि अनन्या योनि से होने वाले रिसाव और उनकी गंध से काफी प्रभावित रहती थी. स्वच्छता के बारे में परवाह करने वाले शख्स के रूप में, वह ऑपरेशन के बाद उसके साथ क्या हो रहा था, इसके लिए तैयार नहीं थी और इसी वजह से परेशान रहती थी.

अंत में वह कहती हैं, ‘यह एक ऐसा समुदाय है जो सुंदरता की पूजा करता है: आपके पास ऐसी महिलाएं हैं जो ऐश्वर्या राय की तरह दिखने के लिए लेजर हेयर ट्रीटमेंट या चेहरे की प्रक्रियाओं के लिए जाती हैं. इसके बजाय …’

सूर्या केरल के पहले ट्रांसजेंडर विवाहित जोड़े का आधा हिस्सा हैं और वह केरल में अपना वोट डालने वाले पहले ट्रांसजेंडर शख्स भी थीं. इस दंपति ने कई लोगों को उनकी सर्जरी के बाद स्वस्थ किया है, और सूर्या को समुदाय के सदस्यों की मां माना जाता है. कोच्चि स्थित उनका घर, पुरस्कारों और सम्मानों से सजाया हुआ और समुदाय के कई सदस्यों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल है – अपना पहला बॉडीबिल्डिंग पुरस्कार जीतने के बाद प्रवीण के लिए भी यही पहला पड़ाव था.

सूर्या कहती हैं, ‘हमें केरल में ट्रांसजेंडर मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक परामर्श केंद्र की आवश्यकता है.’


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सरकार की भूमिका

हर कोई इस तरह की सर्जरी से गुजरना नहीं चाहता. ठीक कोच्चि की एक ट्रांसजेंडर सामाजिक कार्यकर्ता शीतल की तरह जो इस बात का ऐलान करने से पहले अपनी हरी रेशमी साड़ी को ध्यान से ठीक करती हैं कि उनके पास सर्जरी के लिए न तो योजना है और न ही इससे होने वाले दर्द के लिए कोई सहनशीलता है.

वह कहती हैं, ‘मुझे अपना शरीर पसंद है, लेकिन मुझे अपनी पहचान से और ज्यादा प्यार है. मुझे वह विशिष्ट ज्ञान नहीं मिला है जिसकी मुझे चिकित्सा समुदाय से तलाश है, इसलिए मैं सर्जरी के बारे में आश्वस्त नहीं हूं.’ साल 2019 में उनकी ‘टॉप’ की सर्जरी हुई थी, जो उसी डॉक्टर ने की थी जिसने अनन्या की सर्जरी की थी.

शीतल और सूर्या दोनों केरल ट्रांसजेंडर स्टेट बोर्ड के सदस्य हैं और उन्हें नीति-निर्माण का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किया गया है, लेकिन इसकी आखिरी आधिकारिक बैठक 2018 में हुई थी- अनन्या की मौत के दो दिन बाद 23 जुलाई को.

शीतल कहती हैं, ‘मैंने अनन्या की मौत के बाद सामाजिक न्याय मंत्रालय को फोन किया और उनसे पूछा कि जब उन्हें पता था कि ये चिंताएं हैं तो उन्होंने कोई पहल क्यों नहीं की. हमने सर्जरी, बाथरूम, एक आंतरिक शिकायत समिति, अलग वार्ड के बारे में बात की. मगर कुछ नहीं हुआ.’

शीतल और सूर्या दोनों के अनुसार, केवल कुछ लोगों को ही सरकार की योजनाओं का लाभ मिलता है. लोग अपने स्वार्थ पर ध्यान केंद्रित करते हैं और समग्र रूप से समुदाय की वकालत नहीं करते हैं, जिसमें ट्रांसजेंडर पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल हैं.

वे कहती हैं, ‘सरकारी प्रणाली स्वयं हमारे लिए काम नहीं कर रही है, और इसलिए लगातार संगठित होने में उतनी दिलचस्पी नहीं है. ऐसा लगता है कि वे केवल संख्या की तलाश में हैं – राजनीति हाशिए के समुदायों के महज वोटों को लेकर है.’

लेकिन इस बात से सभी लोग सहमत हैं कि केरल जहां हुआ करता था, वहां से काफी आगे निकल गया है. सरकार कम-से-कम एक अंतर पैदा करने की कोशिश तो कर रही है, भले ही वह कागज पर ही क्यों न हो. सामाजिक न्याय विभाग द्वारा स्थापित एक ट्रांसजेंडर सेल है. उनके पास चार कर्मचारी हैं, और प्रत्येक को कथित तौर पर एक दिन में लगभग 20 फोन कॉल प्राप्त होते हैं, आमतौर पर सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के बारे में. उन्हें क्राइसिस कॉल्स (संकट से जुड़े फोन कॉल) भी मिलते हैं – लेकिन इस सेल के पास एक निर्दिष्ट क्राइसिस सेंटर नहीं है.

ट्रांस विजिबिलिटी (ट्रांसजेंडर लोगों का दिखाई देना) भी बढ़ा है, जो धीरे-धीरे सामाजिक कलंक को तोड़ रहा है. ट्रांसजेंडर सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार जिस चीज को किये जाने की आवश्यकता है वह है, शिक्षा में सुधार. इसमें समलैंगिकता, लिंग की पहचान और लैंगिकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रयास और ट्रांसजेंडर लोगों को काम की वजह से स्कूलों और विश्वविद्यालयों से बाहर जाने से रोकने के लिए प्रोत्साहन दिया जाना शामिल है. इसके अतिरिक्त, पुलिस और वकीलों जैसे सरकारी नीति को लागू करने वाले लोगों के लिए संवेदीकरण अभियान भी चलाया जाना चाहिए

सूर्या सवाल करती हैं, ‘कोई जागरूकता नहीं है. हमारे अलावा कौन जागरूकता फैला सकता है? सरकार, है ना?’

उधर त्रिशूर में, डॉ प्रिया इस बात को स्वीकार करती हैं कि सामाजिक और व्यावसायिक स्वीकृति ने उनके जीवन में क्या अंतर लाया है. वह कहती हैं, ‘मुझे पता है कि मैं एक विशेषाधिकार प्राप्त महिला हूं. मैं एक ऐसे कार्यस्थल में हूं, जहां मैं उस सम्मान की प्राप्त कर सकती हूं, जिसकी मैं हकदार हूं, मैं एक ऐसे शरीर में हूं, जो मेरा सच्चा अपना है, और मुझे पता है कि मैं जैसा महसूस करती हूं, वैसा ही दिखती हूं.’

अचानक, उन्हें किसी बीमारी के लिए पारंपरिक मलयाली आयुर्वेदिक इलाज की कोशिश करे रहे कोलकाता के एक व्यवसायी द्वारा टोका जाता है. वह उसके द्वारा कोविड के साथ हुए उसके अनुभव के बारे में सुनती हैं, और फिर धैर्यपूर्वक उसकी चिकित्सा हिस्ट्री देखते हुए हुए उसे कुछ टॉनिक (ताकत की दवाई) लिखती हैं, और अस्वास्थ्यकर भोजन में कटौती करने के लिए कहती हैं.

वह कहता है, ‘धन्यवाद, मैडम,’ और फिर वहां से चला जाता है. डॉ प्रिया मुस्कुरा उठती हैं. उनकी लैंगिक पहचान पर कभी सवाल नहीं उठाया गया, लेकिन इसके पीछे की कड़ी मेहनत पर भी कभी कोई सवाल नहीं था.

(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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