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Tuesday, 15 October, 2024
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शिवसेना का साइनबोर्ड मुद्दा फिर सुर्खियों में, BMC ने कहा- दुकानदार मराठी में लगाएं बोर्ड और बड़ा-बड़ा लिखें

शिवसेना के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र गठबंधन सरकार की तरफ बड़े अक्षरों वाले मराठी साइनबोर्ड पर जोर दिए जाने को बीएमसी चुनावों से पहले मराठी वोट बैंक को मजबूत करने की पार्टी की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.

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मुंबई: अशोक शर्मा मुंबई के चेंबूर इलाके में एक इलेक्ट्रॉनिक्स स्टोर चलाते हैं. पिछले 60 सालों से चल रहे आर्सी इलेक्ट्रॉनिक्स नामक इस स्टोर का साइनबोर्ड पिछले महीने बदल गया है. पिछले डेढ़ दशक से उनकी दुकान के बाहर लगे साइनबोर्ड में स्टोर का नाम देवनागरी लिपि में लिखे मराठी और अंग्रेजी दोनों में लिखा था.

लेकिन बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने अप्रैल में सभी दुकानों के लिए न केवल देवनागरी लिपि में लिखा मराठी साइनबोर्ड लगाना अनिवार्य कर दिया, बल्कि यह भी कहा कि अगर किसी दुकान के साइनेज में एक से अधिक लिपियां हैं तो देवनागरी लिपि को और ज्यादा बड़ा-बड़ा लिखा जाना चाहिए.

कारोबारी प्रतिष्ठानों को शुरुआत में 31 मई तक की समयसीमा दी गई थी, लेकिन बीएमसी ने अब इसे बढ़ाकर 30 जून कर दिया है.

अशोक शर्मा के लिए यह एक समय लगाने वाली और महंगी कवायद थी. उन्होंने दिप्रिंट से बातचीत में कहा इस तरह के लगातार बदलते नियम परेशान करने वाले हैं.

उन्होंने कहा, ‘उन्हें इसे स्थायी बना देना चाहिए और हर साल-दो साल में मराठी को अनिवार्य नहीं करना चाहिए. अचानक, कुछ महीनों में इसे लेकर सरकार सुस्त पड़ जाएगी और इसकी कोई परवाह भी नहीं करेगी.

उन्होंने कहा, ‘हम यह नहीं कहते कि नियम नहीं होना चाहिए, लेकिन उन्हें हमें बदलाव के लिए पर्याप्त समय देना चाहिए था. बोर्ड किसी शोरूम या दफ्तर का चेहरा होता है और कोई नहीं चाहता कि उस पर किसी तरह का पैचवर्क हो. यह बहुत बुरा लगता है.’

इस साल के अंत में प्रस्तावित बीएमसी चुनाव के मद्देनजर शिवसेना एकदम एक्शन मोड में है. बीएमसी का गठन 1960 के दशक में ‘मराठी गौरव’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ एजेंडे के साथ हुआ था और इस साल मार्च में एक सरकारी प्रशासक के पदभार संभालने से पहले 25 साल तक नगर निगम की कमान पार्टी ने ही संभाली है.

बीएमसी में डिप्टी म्यूनिसिपल कमिश्नर, स्पेशल संजोग काबरे ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह महाराष्ट्र सरकार की तरफ पारित कानून के मुताबिक है. हम अभी तक इसके लिए किसी पर कोई फाइन नहीं लगा रहे हैं. हम दुकानदारों से कानून के मुताबिक साइनबोर्ड लगाने को कह रहे हैं, और फिलहाल समयसीमा बढ़ाए जाने के बाद हमारा किसी भी तरह की कार्रवाई का कोई इरादा नहीं है. हम राज्य सरकार के अगले आदेश का इंतजार करेंगे.’

मुंबई में दुकान मालिकों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संगठन फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन ने पिछले हफ्ते महाराष्ट्र सरकार को पत्र लिखकर 30 जून की समयसीमा को छह महीने और बढ़ाने का अनुरोध किया था. पत्र में कहा गया कि इस काम में आर्किटेक्ट और बोर्ड बनाने वालों की मदद लेनी पड़ती है और बोर्ड खूबसूरत और मुंबई स्काईलाइन के लिहाज से आकर्षक हो, इसके लिए उन्हें पर्याप्त समय देना जरूरी होता है.

शिवसेना के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र गठबंधन सरकार की तरफ मराठी पर जोर दिए जाने को बीएमसी चुनावों से पहले मराठी वोट बैंक को मजबूत करने की पार्टी की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.

लेकिन यह सिर्फ शिवसेना का ही एजेंडा नहीं है. राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) भी पूर्व में मराठी साइनबोर्ड का मुद्दा उठा चुकी है.


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नियम क्या है?

2008 में मनसे के एक आंदोलन के बाद बीएमसी ने आदेश जारी किया था कि दुकानों में मराठी में साइनबोर्ड होने चाहिए.

फिर 2017 में बीएमसी चुनावों से पहले तत्कालीन भाजपा-शिवसेना सरकार ने महाराष्ट्र दुकान एवं प्रतिष्ठान (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम पारित किया गया था, जिसमें ‘मराठी मानुष’ का अधिकार सेना का मुख्य मुद्दा था.

महाराष्ट्र दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम के तहत दुकानदारों के लिए मराठी साइनबोर्ड लगाना अनिवार्य था.

हालांकि, इस साल बजट सत्र के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने अधिनियम में संशोधन किया, जिसके तहत यह सुनिश्चित करना अनिवार्य किया गया कि देवनागरी लिपि में मराठी नाम के फॉन्ट का आकार किसी अन्य लिपि के फॉन्ट से छोटा नहीं हो सकता.

इस आदेश में सभी प्रतिष्ठान-किराने की दुकानें, कार्यालय, होटल, रेस्तरां, बार और थिएटर शामिल हैं.


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लेकिन कारोबारी चाहते हैं और समय…

फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन ने उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर समयसीमा में छह महीने, विशेष तौर पर मानसून के बाद तक, का विस्तार मांगा है.

एसोसिएशन के अध्यक्ष वीरेन शाह ने लिखा, ‘पांच लाख से अधिक दुकानें और प्रतिष्ठान लाइसेंस धारक हैं और उनमें से कई में मराठी फॉन्ट का आकार छोटा है और इसे बड़ा करने के लिए साइनबोर्ड को फिर से डिजाइन करने में पेशेवरों की मदद की जरूरत होती है, ताकि यह सुस्पष्ट और मानक डिजाइन वाला दिखे. हम आपसे हमारी इस दिक्कत पर ध्यान देने देखने का आग्रह करते हैं.’

दिप्रिंट से बातचीत के दौरान कई दुकानदारों ने कहा कि कोई जागरूकता अभियान नहीं चला है. चेंबूर के शर्मा ने दिप्रिंट से कहा, ‘अधिकारियों को हमें मजबूर करने के बजाये हमें सिखाना चाहिए. उन्हें इसमें सुधार के लिए हमें पर्याप्त समय देना चाहिए.’

हालांकि, बीएमसी के डिप्टी म्यूनिसिपल कमिश्नर काबरे ने दिप्रिंट को बताया कि नागरिक निकाय की तरफ से जागरूकता के प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘हमने पहले ही अखबारों में प्रेस नोट जारी कर दिए हैं और यह जानकारी लोकल केबल चैनल पर भी देंगे. इसके अलावा, हमने वार्ड स्तर के अधिकारियों के साथ भी बैठकें की हैं जो इसके बाद अपने वार्ड में खुदरा विक्रेताओं से संपर्क कर रहे हैं.’

शर्मा के स्टोर से कुछ ही दूर निकेश वीरा की विजय शूज नामक दुकान है. उनका कहना है कि साइनबोर्ड बदलना एक बेवजह का खर्चा है.

वीरा ने दिप्रिंट को बताया, ‘पहले भी हमारे साइनबोर्ड में मराठी में नाम लिखा था, लेकिन यह छोटे फॉन्ट आकार में था. इसे फिर से बनवाने पर मुझे 8,000 रुपये खर्च करने पड़े. वो भी जब हमने अभी सिर्फ टच अप कराया है. हमने बड़े खर्च वाला विकल्प नहीं अपनाया. अन्यथा मुझे 25 से 30 हजार रुपये तक और खर्च करने पड़े. हमने इसे अभी विनाइल पर किया है. पहले बोर्ड एक्रेलिक पर था.’

मुंबई के व्यापारिक संगठन ने अपने पत्र में राज्य सरकार से यह अनुरोध भी किया है कि महामारी और बढ़ती महंगाई के बीच दंड वसूलकर वह कारोबारियों की मुश्किलें और न बढ़ाए.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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