नई दिल्ली: पिछले दिनों हुई यूपी के अलीगढ़ में ढाई साल की बच्ची की निर्मम हत्या से देशभर में गुस्से की लहर देखने को मिली. उसी दौरान 2018 में जम्मू-कश्मीर में हुए कठुआ बलात्कार पर भी फैसला आया. कोर्ट ने पॉक्सो कानून के तहत सात आरोपियों में से छह को दोषी पाया और सजा भी दी. अलीगढ़ हत्याकांड में भी पॉक्सो के तहत मामला दर्ज हुआ. राष्ट्रीय अखबार रोजाना बच्चों के साथ हो रही निर्मम हत्या और बलात्कार की घटनाओं से पटे रहते हैं. लेकिन आपको जानकर अचरज होगा कि 2012 में बने पॉक्सो कानून के शुरुआती दो सालों में सरकार के पास इस कानून के तहत रजिस्टर होने वाले केसों का ब्यौरा तक नहीं है.
इसी बीच 21 जून को संसदीय सत्र में लोकसभा के सदस्य श्री विनायक भाऊराव राऊत ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से पिछले तीन सालों में पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज हुए मामलों का ब्यौरा मांगा था. साथ ही राऊत ने न्यायालय में विचाराधीन मामलों पर भी जवाब मांगा था.
इस सवाल के जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने सरकारी आंकड़ें बताए हैं जिनके मुताबिक 2014 में पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज हुए मामलों की संख्या 34449, 2015 में 34505 और 2016 में 36022 बताई है. नेशनल क्राइम ब्यूरो रिकॉर्ड्स के मुताबिक 2014 की तुलना में 2015 में 0.2% फीसदी बच्चों के साथ यौन दुर्व्यवहार के मामले बढ़े तो 2015 की तुलना में 2016 में 4.4% मामलों में वृद्धि हुई है.
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क्या है पॉक्सो अधिनियम 2012?
बच्चों को यौन दुर्व्यवहार और शोषण से बचाने और उन्हें संरक्षण प्रदान करने के लिए पॉक्सो अधिनियिम 2012 जैसा विशेष कानून बनाया गया था ताकि बच्चों के साथ आए दिन हो रहे जघन्य अपराधों को रोका जा सके. ये अधिनियम बच्चों को छेड़खानी, पॉर्नोग्राफी और बलात्कार जैसे मामलों में सुरक्षा प्रदान करता है. इस अधिनियम के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा का प्रावधान है. 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन दुर्व्यवहार इस कानून के दायरे में आता है. ये कानून लड़के और लड़की दोनों को ही समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है. इसके तहत दर्ज हुए मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है.
2012 में बने अधिनियम के आंकड़ें 2014 में गिनने शुरू हुए
नेशनल क्राइम ब्यूरो रिकॉर्ड्स ने पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज होने वाले केसों का आंकड़ा 2014 से इकट्ठा करना शुरू किया है. इसलिए 2014 के बाद 2015 और 2016 के ही आंकड़ें सार्वजनिक किए गए हैं. अभी 2017 और 2018 के बच्चों के साथ यौन शोषण के मामलों के आंकड़ें सार्वजनिक नहीं किए गए हैं. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 2017-2018 के आंकड़ों में कुछ विषमताओं का हवाला देते हुए कहा है कि अभी राज्य सरकारों व संघ राज्य क्षेत्रों में इन आंकड़ों के सत्यापन का काम चल रहा है.
लंबित मामलों की लिस्ट है लंबी
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स के मुताबिक पॉक्सो अधिनियम 2012 के तहत 2014 में जांच के लिए लंबित मामलों की संख्या 9383 रही तो 2015 में ये संख्या 12069 हो गई है. वहीं, 2016 में जांच के लिए लबिंत मामलों का आंकड़ा 15283 था. इसके अलावा 2014 में 52308 मामले सुनवाई के चलते लंबित रहे तो 2015 में 71552 मामलों की सुनवाई चलती रही. वहीं, 2016 में कुल 90205 मामले सुनावाई के चलते लटके रहे. इस तरह देखें तो मामले दर साल दर बढ़ते गये हैं.
वहीं राज्यावार आंकड़ों को देखें तो महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में सुनवाई के लिए सबसे ज्यादा मामले लंबित हैं. महाराष्ट्र में 2014, 2015 और 2016 में क्रमश: 11264, 14147 और 17338 मामले सुनवाई के लिए लटके हुए थे. उत्तर प्रदेश में 2014, 2015 और 2016 में क्रमश:10147, 13147 और 15938 मामले लंबित हैं.
इन राज्यों में बच्चों के यौन शोषण के सबसे ज्यादा मामले हुए दर्ज
2014 में पंजीकृत हुए कुल मामलों 34505 में मध्य प्रेदश में 4995, महाराष्ट्र में 3926, छत्तीसगढ़ में 1684, उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 8009 बच्चों के यौन शोषण के मामले दर्ज हुए थे.
2015 के कुल 34505 केसों में छत्तीसगढ़ में 1656, गुजरात में 1609, कर्नाटक में 1526, मध्य प्रदेश में 4624, तमिलानाडु में 1544 और उत्तर प्रदेश में 4541 और महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 4816 मामले दर्ज हुए.
2016 में कुल 36022 मामलों में छत्तीसगढ़ में 1570, कर्नाटक में 1565, मध्य प्रदेश में 4717, महाराष्ट्र में 4815, ओडिशा में 1928, तमिलानाडु में 1583, और उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 4954 मामले दर्ज हुए.
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क्या कहती हैं बच्चों के लिए काम करने वाली संस्थाएं?
दिल्ली बेस्ड एनजीओ ‘हक’ की सह संस्थापक भारती अली ने दिप्रिंट को बताया, ‘पॉक्सो एक्ट में संशोधन (फांसी की सजा) बच्चों के खिलाफ हो रहे अपराधों में इजाफा कर रहा है. हमने सरकार से कहा भी था कि फांसी जैसी सजा करने पर अपराधी सबूत मिटाने के लिए बच्चों को मारने का काम करेंगे. इसलिए पिछले कुछ सालों से बलात्कार के बाद मारने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं और ये आने वाले समय में और बढ़ेंगी. सरकार पिछले दो साल का आंकड़ा इसलिए नहीं बता रही है क्योंकि ये आंकड़ें चौंकाने वाले हैं.’
वो आगे जोड़ती हैं, ‘इन अपराधों के आंकडे़ं देखेंगे तो आप पाएंगे की 90 फीसदी केसों में दोषसिद्धि ही नहीं हुई. आप फांसी की सजा से बच्चों की हत्याओं में तो इजाफा करा रहे हैं लेकिन इन मामलों की जांच प्रक्रिया इतनी धीमी है कि चर-पांच साल तक मामले जांच के हवाले ही पड़े रहते हैं. पुलिस जांच भी जैसे-तैसे होती है और पुलिस पर्याप्त साक्ष्य ही नहीं जुटा पाती. पॉक्सो अधिनियम में जो संशोधन चाइल्ड राइट एक्टिविस्ट सुझा रहे थे वो सरकार ने नहीं माने.’