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रविवार, 1 जून, 2025
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भारत में भीषण गर्मी लंबे समय तक अधिक क्षेत्रों को करेगी प्रभावित: वैज्ञानिक

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नयी दिल्ली, 29 मई (भाषा) जलवायु परिवर्तन के कारण तीव्र मौसमी घटनाओं में निरंतर वृद्धि के बीच वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि भारत में भीषण गर्मी लंबे समय तक जारी रहेगी तथा बड़े क्षेत्रों को प्रभावित करेगी।

दिल्ली स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र के प्रमुख कृष्ण अच्युत राव ने कहा कि जलवायु मॉडल दर्शाते हैं कि भारत में भीषण गर्मी (हीट वेव) का क्षेत्र और अवधि बढ़ेगी।

मौसम विभाग के अनुसार ‘हीट वेव’ एक ऐसी अवधि है जिसमें किसी क्षेत्र में सामान्य रूप से अपेक्षित तापमान की तुलना में असामान्य रूप से उच्च तापमान होता है। इसलिए, जिस तापमान पर ‘हीट वेव’ घोषित की जाती है, वह उस क्षेत्र के तापमान जलवायु विज्ञान (ऐतिहासिक तापमान) के आधार पर जगह-जगह अलग-अलग होती है। शोध संगठन ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ द्वारा आयोजित ‘इंडिया हीट’ सम्मेलन को संबोधित करते हुए राव ने कहा, ‘‘इसका मतलब है कि उत्तरी मैदानी इलाकों और दक्षिणी प्रायद्वीप के कई राज्यों में लू की स्थिति लंबे समय तक और बड़े क्षेत्रों में रहेगी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जो एक सप्ताह तक चलने वाली घटना हो सकती है, वह डेढ़ महीने या दो महीने तक चलने वाली घटना में बदल सकती है। हमारा भविष्य बहुत अंधकारमय दिख रहा है।’’

वैज्ञानिक ने कहा कि मॉडल यह भी सुझाव देते हैं कि मानसून के महीनों में लू चल सकती है जो अधिक खतरनाक हो सकती है।

राव ने कहा, ‘‘यह विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि यह गर्म और आर्द्र होगा तथा तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होगा।’’

‘जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी)’ की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट और हाल के वैज्ञानिक पत्रों में दक्षिण एशिया में मानसून के महीनों के दौरान भी कई बार भीषण गर्मी के प्रकोप की चेतावनी दी गई है।

‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी)’ के वरिष्ठ ‘क्रायोस्फीयर’ विशेषज्ञ फारूक आजम ने कहा कि बढ़ते तापमान के कारण हिमनद तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे भारत की नदियों में पानी की उपलब्धता प्रभावित हो रही है।

आजम ने कहा कि देश कृषि और बिजली उत्पादन के लिए हिमनदों के पानी पर बहुत अधिक निर्भर है।

उन्होंने कहा कि फिलहाल तापमान वृद्धि के फलस्वरूप हिमनदों के पिघलने के कारण पानी अधिक है, लेकिन एक सीमा है जिसके बाद हिमनद कम पानी का योगदान देने लगेंगे और उसे ‘पीक वॉटर’ कहा जाता है।

उन्होंने कहा कि कुछ मॉडल अनुमान लगाते हैं कि सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में 2050 के आसपास ‘पीक वॉटर’ हो सकता है, जबकि कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि ब्रह्मपुत्र प्रणाली में यह स्थिति पहले ही पहुंच चुकी है।

आज़म ने चेतावनी दी कि इसका अर्थ होगा ‘2050 तक अधिक बाढ़ आएंगी’ तथा उसके बाद जल की कमी होगी।

भाषा राजकुमार वैभव

वैभव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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