भुवनेश्वर, चार मई (भाषा) पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) ने पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल के दीघा में नवनिर्मित जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियां बनाने में 12वीं सदी के (पुरी) मंदिर की बची हुई पवित्र लकड़ी के कथित इस्तेमाल को लेकर रविवार को एक वरिष्ठ सेवादार से पूछताछ की। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
सेवादार ‘दैतापति निजोग’ के सचिव रामकृष्ण दासमहापात्रा ने 30 अप्रैल को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की उपस्थिति में दीघा मंदिर में आयोजित प्राण प्रतिष्ठा समारोह में हिस्सा लिया था।
‘दैतापति निजोग’ सेवादारों का एक समूह है, जिन्हें भगवान जगन्नाथ का अंगरक्षक माना जाता है।
दासमहापात्रा के अलावा, पुरी मंदिर के लगभग 56 अन्य सेवादार भी दीघा मंदिर में आयोजित कार्यक्रम में कथित तौर पर शामिल हुए थे।
पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दीघा मंदिर को ‘जगन्नाथ धाम’ के रूप में पेश करने और वहां मूर्तियों के निर्माण में पुरी मंदिर की अतिरिक्त लकड़ी के कथित इस्तेमाल को लेकर जारी विवाद के बीच, ओडिशा के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने दो मई को एसजेटीए से मामले की जांच करने को कहा था।
एसजेटीए के मुख्य प्रशासक अरबिंद पाधी ने दासमहापात्रा को तलब किया और उनसे करीब 90 मिनट तक पूछताछ की।
अधिकारियों ने बताया कि प्रशासन यह जानना चाहता था कि क्या उन्होंने ‘दैतापति नोजोग’ के सचिव के रूप में पुरी मंदिर से पवित्र लकड़ी ली थी और उसका इस्तेमाल दीघा मंदिर के लिए मूर्तियां बनाने में किया था।
आरोप है कि पुरी के कुछ सेवादारों ने दीघा स्थित मंदिर के लिए मूर्तियां बनाने में 2015 के ‘नवकलेवर’ (नये रूप) अनुष्ठान में बची हुई ‘नीम’ की लकड़ी का इस्तेमाल किया।
‘नवकलेवर’ हर 12 साल या 19 साल के अंतराल पर आयोजित होने वाला एक अनुष्ठान है, जिसके दौरान पुरी मंदिर में भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों की लकड़ी बदली जाती है।
भाषा
राजकुमार पारुल
पारुल
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