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बुधवार, 21 मई, 2025
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सीरियल किलर ‘डॉ. डेथ’ पैरोल से भागने के बाद 18 महीने बना रहा पुजारी, पत्नी के कॉल से हुआ खुलासा

देवेंद्र कुमार शर्मा को 7 हत्या के मामलों में दोषी ठहराया गया है, उस पर 1998 से 2004 के बीच कम से कम 21 टैक्सी ड्राइवरों की हत्या करने और ‘गुड़गांव किडनी कांड’ में शामिल होने का आरोप है.

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नई दिल्ली: एक आश्रम में पुजारी की पोशाक पहने एक व्यक्ति ने पुलिस अधिकारियों से पूछा, “आप कौन हैं? आप क्या चाहते हैं?”

दिल्ली क्राइम ब्रांच के अधिकारी इस विरोध से चौंक गए, लेकिन उनके पास पुख्ता खुफिया जानकारी थी कि पुजारी, जिसने नाम दया दास रख लिया था, असल में भगोड़ा सीरियल किलर था, जिस पर उनकी 18 महीने से नज़र थी.

महीनों तक, पुलिस अधिकारी उसके भक्तों के वेश में राजस्थान और उत्तर प्रदेश के मंदिरों और आश्रमों में उसकी निगरानी कर रहे थे.

उन्होंने उसे एक तरफ खींचा और उसे आखिरी चेतावनी दी. एक गहन मुठभेड़ के बाद, पुजारी ने आखिरकार कबूल किया: कि उसका असली नाम देवेंद्र कुमार शर्मा है, जिसे मीडिया ने कभी आयुर्वेदिक मेडिसिन में अपनी डिग्री और खौफनाक अपराधों के लंबे सिलसिले के कारण ‘डॉ. डेथ’ करार दिया था.

अगर वह अपनी पत्नी को फोन नहीं करता, तो शर्मा शायद दया दास के रूप में अपनी दोहरी ज़िंदगी थोड़े और समय तक जी सकता था, चुपचाप हाथ की लकीरें पढ़ता और आश्रमों में भक्तों को उपाय बताता, मथुरा और वृंदावन सहित धार्मिक स्थलों में घूमता.

लेकिन एक भटकते पुजारी के रूप में उसकी ज़िंदगी तब समाप्त हो गई जब उसे लगभग 18 महीने बाद रविवार को गिरफ्तार कर लिया गया.

हत्या से लेकर अपहरण और डकैती तक के अपराधों के लिए कई सजाएं काटने वाला 67-वर्षीय शर्मा अक्टूबर 2023 में पैरोल की अवधि समाप्त होने से पहले भाग गया था.

न्यायिक प्रणाली से बचने की यह उसकी पहली कोशिश नहीं थी. 2020 में वह 20-दिवसीय पैरोल के दौरान फरार हो गया और लगभग 7 महीने तक फरार रहा. हालांकि, इस बार वह डेढ़ साल से अधिक समय तक अधिकारियों से बचा रहा.

पुलिस के अनुसार, उसे सात हत्या के मामलों में दोषी ठहराया गया है, आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई है और उस पर 1998 से 2004 के बीच उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान में कम से कम 21 टैक्सी ड्राइवरों का अपहरण करने और उनकी हत्या करने का आरोप है. इनमें से कुछ शव कासगंज की हज़ारा नहर से निकाले गए थे.

डीसीपी (क्राइम ब्रांच) आदित्य गौतम ने कहा कि शर्मा को गुरुग्राम की एक अदालत ने टैक्सी चालक की हत्या के लिए मौत की सज़ा सुनाई थी और उस पर हत्या, अपहरण और डकैती के 27 पुराने मामले दर्ज हैं.

उस दौरान, शर्मा ‘गुड़गांव किडनी कांड’ में भी शामिल था, जो कथित तौर पर मुंबई, जयपुर, गुंटूर और आनंद सहित कई शहरों में 600 से अधिक अवैध किडनी प्रत्यारोपणों से जुड़ा एक बड़ा किडनी तस्करी रैकेट था.

पुलिस अधिकारियों के अनुसार, शर्मा पर कुख्यात डॉ. अमित कुमार के लिए 125 से अधिक प्रत्यारोपण कराने का आरोप है, जिसके लिए वह प्रत्येक प्रक्रिया के लिए 5 लाख से 7 लाख रुपये कमाता था.

कुमार, जो देश छोड़कर नेपाल भाग गया था, उसे 2013 में केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा प्रत्यर्पित किया गया था। तब से उसे अवैध अंग व्यापार के मामलों में दोषी ठहराया गया है और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत भी आरोपों का सामना करना पड़ रहा है.

मथुरा-वृंदावन-कुंभ

पिछले साल अक्टूबर में जब दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच यूनिट को इंस्पेक्टर राकेश कुमार के नेतृत्व में एसीपी उमेश बर्थवाल के नेतृत्व में शर्मा का मामला सौंपा गया, तो उन्होंने उसका पीछा करना शुरू किया.

शुरुआत अलीगढ़ के पुरैनी से हुई, जो आधिकारिक रिकॉर्ड में उसका स्थायी पता है. अगला पड़ाव राजस्थान का बांदीकुई था, जहां उसने बिहार से आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद ‘जनता क्लीनिक’ शुरू किया.

डीसीपी गौतम ने बताया कि उसने 1995 तक 11 साल तक यह क्लीनिक चलाया, जब गैस डीलरशिप घोटाले में 11 लाख रुपये का घाटा होने के बाद वह आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो गया. उसने एक फर्ज़ी गैस एजेंसी शुरू की थी.

एक सूत्र ने कहा, ‘‘हमें स्थानीय निवासियों से पता चला कि उसे पुरैनी में नहीं देखा गया था. वह 1984 में बिहार से बाहर भी चला गया था. इसलिए, हमारा अगला सुराग हमें बांदीकुई ले गया, लेकिन वहां भी, जानकारी नहीं मिली. हमें पता चला कि उसकी पत्नी और बच्चे मुंबई चले गए और हमने इस पर काम करना शुरू कर दिया.’’

जांचकर्ताओं ने उसकी पत्नी के कॉल रिकॉर्ड को ट्रैक करना शुरू किया और कई नंबरों से कॉल का एक पैटर्न पाया, जिनमें से हर एक लंबी अवधि तक चलता था.

सूत्रों के अनुसार, ये कॉल कुंभ मेले के दौरान वाराणसी, मथुरा, वृंदावन और प्रयागराज जैसी जगहों से आए थे.

सूत्र ने कहा, ‘‘जब हमने इन नंबरों का उपयोग करने वाले लोगों का पता लगाया, तो उन्होंने हमें बताया कि एक ‘बाबा’ ने कॉल करने के लिए उनके फोन का इस्तेमाल किया था. तब हमें यकीन हो गया कि वह खुद को पुजारी बता रहा था.’’

इस बीच, अधिकारियों को सूचना मिली कि विवरण से मेल खाने वाला कोई व्यक्ति दौसा में देखा गया था.

18 महीने बाद, उसे आखिरकार रविवार को गिरफ्तार कर लिया गया.

हज़ारा में शव

पुलिस केस रिकॉर्ड में कहा गया है कि शर्मा ने अपने साथियों के साथ मिलकर 50 से ज़्यादा ट्रक और टैक्सी ड्राइवरों की हत्या करने की बात कबूल की है.

अदालत के सार्वजनिक दस्तावेज़ से पता चलता है कि कुछ मामलों में शर्मा को बरी कर दिया गया क्योंकि अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित नहीं कर सका और घटनाओं की श्रृंखला की पुष्टि नहीं कर सका.

पुलिस अधिकारियों ने कहा कि अलीगढ़ से आने वाले उसके गिरोह के अन्य सदस्यों ने ट्रक और टैक्सी ड्राइवरों की हत्या की, उन्हें गला घोंटकर मार डाला और फिर उनके शवों को हज़ारा नहर में फेंक दिया.

एक अन्य सूत्र ने कहा, “वह गैस सिलेंडर ले जाने वाले ट्रक ड्राइवरों को मारने के बाद उन्हें बेच देता था. कैब ड्राइवरों को मारने के बाद, वह उत्तर प्रदेश के ग्रे मार्केट में कारों को 20,000 से 25,000 रुपये में बेचता था.”

एक मामले में, शर्मा को निचली अदालत ने दोषी ठहराया था और 2022 में दिल्ली हाई कोर्ट ने सज़ा बरकरार रखी थी. जनवरी 2004 में हज़ारा नहर से शव बरामद होने की खबर पढ़ने के बाद पीड़ित के भाई दिनेश शर्मा ने ढोलना पुलिस से संपर्क किया था.

नहर से दो शव बरामद किए गए थे — एक 23 जनवरी को और दूसरा 25 जनवरी को. भाई यज्ञ देव शर्मा ने 25 जनवरी को बरामद शव की पहचान दिनेश के रूप में की. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि पीड़ित की गला घोंटकर हत्या की गई थी और शव के गले में रस्सी के निशान थे.

शर्मा ने 23 जनवरी, 2004 को दिल्ली के सरिता विहार के विछोरा साहिब टैक्सी स्टैंड से बुलंदशहर के नरौरा के लिए दिनेश की कैब बुक की थी. उसने टैक्सी बुक करने के लिए टैक्सी स्टैंड मालिक को सरिता विहार का झूठा पता दिया. उसने अपने साथियों के साथ मिलकर दिनेश की हत्या कर दी और टैक्सी को ठिकाने लगा दिया.

इस बीच, उसके साथी इन मामलों में हत्या और अपहरण के मामलों का सामना करते हुए जेल में बंद हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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