नई दिल्ली: कृषि संबंधी तीन कानूनों पर केंद्र और किसानों के बीच जारी गतिरोध दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त समिति के एक सदस्य ने कहा है कि कानूनों को रद्द करना कोई विकल्प नहीं है, लेकिन वे किसानों का पक्ष सुनने के बाद आवश्यक संशोधन का सुझाव देंगे.
महाराष्ट्र स्थित शेतकरी संगठन के अध्यक्ष और समिति के सदस्यों में एक अनिल घनवट ने दिप्रिंट को दिए इंटरव्यू में कहा कि आंदोलनकारी किसानों की एमएसपी पर कानूनी प्रावधान बनाने समेत अधिकांश मांगें ‘जायज’ हैं. उन्होंने यह भी कहा कि प्रदर्शनकारी किसान कृषि को चर्चा का केंद्र बनाकर एक ‘बड़ा काम’ कर रहे हैं.
समिति मंगलवार को नई दिल्ली स्थित पूसा में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में अपनी पहली बैठक करेगी और 21 जनवरी से किसान समूहों के साथ परामर्श प्रक्रिया शुरू करेगी.
हालांकि, आंदोलनकारी किसान इस समिति के सदस्यों से मिलने से इनकार कर चुके हैं, लेकिन घनवट ने कहा, ‘हम प्रदर्शन कर रहे किसानों से मिलने के लिए तैयार हैं. हमारे लिए अहम जैसा कोई मुद्दा नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘यदि वे हमारे पास नहीं आएंगे, तो हम प्रदर्शन स्थलों पर जाने के लिए भी तैयार हैं. असल मुद्दा उनकी चिंताएं दूर करना और कृषि को एक व्यवहार्य विकल्प बनाना है.’
समिति में शुरुआत में चार सदस्य थे—भाकियू अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान, घनवट और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और डॉ. प्रमोद जोशी. हालांकि, मान 14 जनवरी को यह कहते हुए समिति से हट गए थे कि वह ‘पंजाब और देश के किसानों के हितों के साथ कोई समझौता न करने के लिए किसी भी पद को छोड़ने को तैयार हैं.’
विरोध प्रदर्शन करने वाले किसान समूहों में से एक भारतीय किसान यूनियन (लोकशक्ति) ने पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करके समिति के बाकी सदस्यों को बदलने की मांग की है और इसमें ऐसे सदस्यों को नामित करने का आग्रह किया है जो ‘सद्भाव के साथ’ काम कर सकते हों.
हालांकि, किसान समूहों का दावा है कि समिति के सभी सदस्यों ने कृषि कानूनों का समर्थन किया है, लेकिन घनवट ने इस आरोप का खंडन किया.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘यह कहना गलत है कि हम सरकार के आदमी हैं. जब महाराष्ट्र में प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगी और हमारे प्याज की कीमतें घट गईं और प्याज का निर्यात घटकर 40 प्रतिशत पर आ गया, तो हमने किसानों से प्रतिबंध न हटने की स्थिति में भाजपा नेताओं के घेराव का आह्वान किया. सरकार ने तब प्रतिबंध हटा लिया.’
घनवट ने यह भी कहा कि उन्होंने ‘पहले कई विरोध प्रदर्शनों में पंजाब के किसान संघों के साथ काम किया है, इसलिए उनकी तटस्थता पर सवाल उठाना सही नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘सिर्फ मान, जो खुद समिति से हट गए हैं, ने पंजाब के किसानों के साथ काम नहीं किया है, बल्कि खुद मैंने शरद जोशी (उनके संगठन का सदस्य) के साथ 1984 में पंजाब के किसानों के साथ पंजाब विधानसभा में घेराव किया था, जब एमएसपी को लेकर प्रदर्शन किया जा रहा था.’
घनवट ने यह भी कहा कि पंजाब के किसान ‘कानूनों में रह गई खामियों को उजागर करके राष्ट्र की बड़ी सेवा कर रहे हैं.’
घनवट ने आगे कहा, ‘हर सरकार ने किसानों की अनदेखी की है. हम पंजाब के किसानों के आभारी हैं कि उन्होंने कृषि को बहस का मुद्दा बनाया है. उन्होंने सरकार पर उनकी चिंताएं सुनने का दबाव बना दिया है. यह समय कानून में ऐतिहासिक संशोधन किए जाने का है.’
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‘यदि कानून रद्द हुए तो कोई सरकार सुधारों की कोशिश नहीं करेगी’
घनवट ने दिप्रिंट को बताया कि मंगलवार को जब समिति के सदस्य मिलेंगे तो वे विचार-विमर्श और परामर्श प्रक्रिया के संदर्भों पर चर्चा करेंगे, लेकिन ‘इसे रद्द करना कोई विकल्प नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘अगर इसे रद्द किया जाता है, तो कोई भी सरकार किसी भी क्षेत्र में सुधार के प्रयास नहीं करेगी. किसी विधेयक को संसद में पारित कराना एक लंबी प्रक्रिया है, इसलिए जो कुछ करना है संशोधनों के जरिये किया जा सकता है. कानूनों में कई खामियां रह गई हैं और किसानों की अधिकांश मांगें जायज हैं. इसलिए उनकी बात सुनने के बाद हम उनकी तीन-चार मांगों का ज्यादा व्यापक समाधान निकालेंगे.’
टिप्पणी के लिए संपर्क करने पर गुलाटी ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम सभी राज्यों के सभी हितधारकों की बात सुनेंगे, इसके बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे. किसानों की मांगें और इस पर (उन्हें) दी गई सरकार की प्रतिक्रिया में कई मुद्दे शामिल हैं.’
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कानूनों में ‘विसंगतियां’
कृषि कानूनों में विसंगतियों पर घनवट ने कहा ‘कानूनों में कई कमियां रह गई हैं, जिन्हें दूर किए जाने की जरूरत है.’
उन्होंने कहा, ‘किसानों के विवाद निपटाने में राजस्व अधिकारियों को शामिल करने का क्या मतलब है? किसानों को इन राजस्व अधिकारियों पर कतई भरोसा नहीं है, जिनमें से अधिकांश भ्रष्ट हैं. अदालत के जरिये विवाद निस्तारण तंत्र भी कोई बहुत अच्छा विकल्प नहीं है. अदालत में मामले निपटने में बीसों साल लगते हैं. फिर अदालती लड़ाई के लिए किसानों के पास संसाधन कहां हैं? विवाद निपटारे के लिए सीमित समय में मामला निपटाने के निर्देश के साथ छोटे न्यायाधिकरण बनाए जाने चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम को और ज्यादा किसान-हितैषी बनाने की आवश्यकता है. अभी, हर सरकार अपने चुनाव और पॉलिटिकल नैरेटिव के अनुसार किसानों की उपज के मूल्यों में हेरफेर करती है. जब कृषि उपजों को निर्यात करने की जरूरत होती है, तो वे मूल्य स्थिर करने के नाम पर निर्यात प्रतिबंधित कर देते हैं, लेकिन कुछ महीनों के बाद वे उसी वस्तु का आयात करना शुरू कर देते हैं. एक बड़ा कार्टेल है जो मूल्य स्थिरीकरण के नाम पर आयात-निर्यात तंत्र को इसी तरह चलाता है.’
धनावट ने कहा, ‘प्याज निर्यात प्रतिबंध और दालों के आयात का क्या हुआ? हमारे प्याज का निर्यात हाल के वर्षों में घटकर 40 फीसदी रह गया है. कई देशों ने अधिक विश्वसनीय निर्यातकों की ओर रुख किया है. अंतरराष्ट्रीय बाजार अप्रत्याशित व्यवहार पर काम नहीं करते हैं. भारत सरकार की नीतियां उसके अपने मनमाफिक चलती हैं. किसानों को अच्छे दाम नहीं मिलते, इसलिए आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव किया जाना चाहिए. मूल्य गारंटी उन पहलुओं में से एक है जिसे कानूनी जामा पहनाने की जरूरत है.’
मोदी सरकार बुधवार को एक बार फिर किसानों को मनाने के लिए प्रदर्शनकारी संगठनों के साथ 10 वें दौर की चर्चा करने जा रही है.
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