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Saturday, 16 November, 2024
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क्या है सैटेलाइट स्पेक्ट्रम एलोकेशन जिसने जियो और एयरटेल को एक साथ आने पर मजबूर कर दिया

रिलायंस जियो ने केंद्रीय दूरसंचार मंत्री को पत्र लिखकर तर्क दिया था कि ट्राई ने गलत निष्कर्ष निकाला है कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटित किया जाना चाहिए और नीलामी नहीं की जानी चाहिए. भारती एयरटेल ने इस रुख का समर्थन किया.

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नई दिल्ली: भारत में उपग्रह सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम आवंटित किया जाएगा या नीलाम किया जाएगा, यह मुद्दा इस सप्ताह फिर से सामने आया, जिससे इस फील्ड के प्रतिस्पर्धी खिलाड़ी रिलायंस जियो और भारती एयरटेल एक साथ आ गए, जबकि एलन मस्क की स्टारलिंक और अमेज़ॉन की प्रोजेक्ट कुइपर जैसी वैश्विक उपग्रह संचार कंपनियां प्रशासनिक आवंटन के पक्ष में हैं.

सरकार ने मंगलवार को प्रशासनिक आधार पर स्पेक्ट्रम आवंटित करने के अपने इरादे की पुष्टि की.

सैटेलाइट स्पेक्ट्रम से तात्पर्य उपग्रह संचार के लिए उपयोग की जाने वाली रेडियो आवृत्तियों से है और संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी, अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू), इन आवृत्तियों के वैश्विक आवंटन की देख-रेख करती है. उपग्रह-आधारित संचार प्रणाली (सैटकॉम) दूरस्थ और सबसे दुर्गम क्षेत्रों में कवरेज प्रदान करने के लिए विशेष रूप से फायदेमंद हैं.

दिप्रिंट ने इस मुद्दे पर नज़र डाली और सरकार ने स्पेक्ट्रम को प्रशासनिक रूप से आवंटित करने का फ़ैसला किया.

असहमति का आधार

स्पेक्ट्रम आवंटन पर बहस सोमवार को उस वक्त फिर से शुरू हो गई, जब ऐसी रिपोर्ट्स सामने आईं कि अरबपति मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो ने केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को पत्र लिखकर तर्क दिया है कि दूरसंचार नियामक ट्राई द्वारा घरेलू सैटेलाइट ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम को नीलाम करने के बजाय आवंटित करने का फैसला ठीक नहीं है.

रिलायंस के वरिष्ठ विनियामक मामलों के अधिकारी कपूर सिंह गुलियानी ने लिखा, “ट्राई बिना किसी आधार के इस निष्कर्ष पर पहुंच गई कि स्पेक्ट्रम आवंटन का काम प्रशासनिक तौर पर होना चाहिए.”

रिलायंस जियो की मांग के बारे में एक्स पर एक पोस्ट का जवाब देते हुए, स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क, जिनकी सैटेलाइट संचार कंपनी स्टारलिंक की मालिक है, ने कहा कि ऐसा कदम “अभूतपूर्व” होगा.

मस्क ने लिखा, “यह अभूतपूर्व होगा, क्योंकि इस स्पेक्ट्रम को ITU (अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ) द्वारा उपग्रहों के लिए साझा स्पेक्ट्रम के रूप में लंबे समय से नामित किया गया था.”

लेकिन रिलायंस जियो के रुख का समर्थन प्रतिद्वंद्वी दूरसंचार कंपनी भारती एयरटेल के अध्यक्ष सुनील मित्तल ने किया.

मंगलवार को भारतीय मोबाइल कांग्रेस के उद्घाटन सत्र के दौरान, मित्तल ने कहा कि सभी उपग्रह कंपनियां जो शहरी क्षेत्रों में कुलीन खुदरा ग्राहकों के साथ अपनी सेवाएं प्रदान करने के लिए महत्वाकांक्षी हैं, उन्हें अन्य सभी दूरसंचार कंपनियों की तरह दूरसंचार लाइसेंस प्राप्त करने और समान शर्तों का पालन करने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा, “उन्हें स्पेक्ट्रम खरीदने की जरूरत है जैसे दूरसंचार कंपनियां खरीदती हैं. उन्हें लाइसेंस शुल्क का भुगतान करने और दूरसंचार कंपनियों की तरह अपने नेटवर्क को सुरक्षित करने की आवश्यकता है,” उन्होंने सत्र में कहा जिसमें पीएम मोदी और अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू) के महासचिव डोरेन बोगदान-मार्टिन ने भाग लिया.

क्या एयरटेल ने अपना सुर बदल लिया है?

दिलचस्प बात यह है कि दूरसंचार अधिनियम, 2023 के पारित होने से पहले पिछले साल जारी किए गए ‘अंतरिक्ष आधारित संचार सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम के आवंटन’ पर ट्राई के परामर्श पत्र के जवाब में, भारती एयरटेल ने स्टारलिंक और अमेज़ॅन के कुइपर सिस्टम्स के साथ मिलकर उपग्रह संचार के प्रशासनिक असाइनमेंट की वकालत की थी.

भारती एयरटेल ने अपने सबमिशन में कहा, “एयरटेल का दृढ़ विश्वास है कि उपग्रह स्पेक्ट्रम की नीलामी न तो उचित है और न ही न्यायसंगत या निष्पक्ष है” क्योंकि यह एक साझा संसाधन है और वैश्विक स्तर पर प्रशासनिक आधार पर आवंटित किया जाता है.

भारती एयरटेल ने अपने निवेदन में कहा, “एयरटेल का दृढ़ विश्वास है कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी न तो उचित है, न ही न्यायसंगत या निष्पक्ष है” क्योंकि यह एक साझा संसाधन है और वैश्विक स्तर पर प्रशासनिक आधार पर आवंटित किया जाता है.

यह दो अन्य निजी ऑपरेटरों, रिलायंस जियो और वोडाफोन आइडिया द्वारा प्रस्तुत किए गए निवेदनों के विपरीत था, जिन्होंने नीलामी के माध्यम से आवंटन का समर्थन किया था.

ट्राई को 2023 में सौंपे गए अपने सबमिशन में, वोडाफोन आइडिया और रिलायंस जियो ने सैटेलाइट एयरवेव्स की नीलामी की वकालत की थी, ताकि “समान अवसर सुनिश्चित किया जा सके”.

जियो ने इस बात पर जोर दिया कि यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि प्रतिस्पर्धी सेवाएं प्रदान करने वाले नेटवर्क के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन नियम एक समान और निष्पक्ष हों, हितधारक को केवल नेटवर्क टोपोलॉजी या आर्किटेक्चर के आधार पर बिना कोई प्राथमिकता दिए.

इसलिए, मंगलवार को मित्तल के बयान को पहले के रुख से अलग माना जा रहा है.

हालांकि, मंगलवार को बाद में जारी एक बयान में, दूरसंचार ऑपरेटर ने कहा, “एयरटेल द्वारा अपना रुख बदलने का कोई सवाल ही नहीं है.” इसमें कहा गया है कि एयरटेल ने हमेशा यह कहा है कि वह पूरे देश में हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए सैटकॉम सहित सभी तकनीकों का उपयोग करेगा. एयरटेल इस स्थिति पर कायम है.

इसमें कहा गया है, “जो सैटेलाइट ऑपरेटर शहरी क्षेत्रों और खुदरा ग्राहकों को सेवाएं प्रदान करना चाहते हैं, उन्हें लाइसेंस प्राप्त करने के लिए किसी भी देश की नियमित लाइसेंसिंग प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, और इस मामले में भारत को भी, स्पेक्ट्रम खरीदना पड़ता है, रोलआउट और सुरक्षा सहित सभी दायित्वों को पूरा करना पड़ता है, अपनी लाइसेंस फीस और करों का भुगतान करना पड़ता है और दूरसंचार बिरादरी द्वारा उनका स्वागत किया जाएगा.”


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स्पेक्ट्रम आवंटन पर सरकार का रुख

मंगलवार को, सिंधिया ने दोहराया कि सैटेलाइट संचार सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी नहीं की जाएगी, बल्कि पिछले साल दिसंबर में पारित दूरसंचार अधिनियम 2023 में उल्लिखित प्रशासनिक रूप से आवंटित किया जाएगा. उन्होंने कहा कि इस पद्धति का दुनिया भर में पालन किया गया.

सरकार के रुख के पीछे के तर्क को स्पष्ट करते हुए सिंधिया ने आगे पूछा, “यदि स्पेक्ट्रम साझा किया जाता है, तो आप इसकी कीमत अलग-अलग कैसे तय कर सकते हैं.”

हालांकि, उन्होंने कहा कि स्पेक्ट्रम बिना किसी कीमत के नहीं मिलेगा और क्षेत्रीय नियामक ट्राई मूल्य निर्धारण मॉडल पर काम करेगा.

मस्क ने इसका स्वागत किया, जिन्होंने दावा किया कि स्टारलिंक “भारत के लोगों की सेवा करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेगा”. ऐसी अपुष्ट रिपोर्ट्स थीं कि स्टारलिंक को सैटेलाइट संचार लाइसेंस के लिए भारत सरकार से सैद्धांतिक मंजूरी मिल गई थी.

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने इस साल सितंबर में ‘कुछ सैटेलाइट-आधारित वाणिज्यिक संचार सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम के आवंटन के लिए नियम और शर्तें’ शीर्षक से एक परामर्श पत्र जारी किया था, जिसमें प्रशासनिक रास्ते से सैटकॉम सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम की कीमत तय करने के बारे में इंडस्ट्री से इनपुट मांगे गए थे.

इसके जरिए सरकार योग्य कंपनियों को स्पेक्ट्रम आवंटित करती है, जबकि नीलामी मॉडल में, कंपनियां सरकार द्वारा निर्धारित आरक्षित मूल्य से ऊपर स्पेक्ट्रम के लिए बोली लगाती हैं.

प्रशासनिक आवंटन के पक्ष में हितधारकों ने तर्क दिया है कि उपग्रह स्पेक्ट्रम टेरेस्ट्रियल स्पेक्ट्रम से अलग है और एक साझा रिसोर्स है.

इसका मतलब यह है कि, सैटेलाइट स्पेक्ट्रम पर, एक ही आवृत्तियों का एक ही भौगोलिक स्थान पर कई सैटेलाइट नेटवर्क द्वारा दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है. स्पेक्ट्रम को टेरेस्ट्रियल स्पेक्ट्रम की तरह विशेष ब्लॉक या खंडों में नहीं तोड़ा जा सकता. इसलिए, सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी तकनीकी रूप से अव्यावहारिक है और इसे लागू करना मुश्किल है.

वैश्विक स्तर पर, सैटेलाइट स्पेक्ट्रम को आम तौर पर एक प्रशासनिक तंत्र के माध्यम से आवंटित किया जाता है और स्पेक्ट्रम शुल्क प्रशासनिक रूप से निर्धारित शुल्क के रूप में लगाया जाता है.

ब्राज़ील, मैक्सिको, अमेरिका और सऊदी अरब जैसे कुछ देशों ने अंतरिक्ष आधारित संचार के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन हेतु नीलामी आधारित मॉडल को लागू करने का प्रयास किया है.

हालांकि, ब्राज़ील, मैक्सिको और संयुक्त राज्य अमेरिका ने नीलामी प्रणाली को बंद कर दिया और प्रशासनिक असाइनमेंट पर वापस लौट आए क्योंकि उन्हें यह अव्यवहारिक लगा.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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