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Monday, 18 November, 2024
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मनुष्यों में एक और नोवेल कोरोनावायरस का पता लगा, और यह संभवत: कुत्तों से आया था

2018 में मलेशिया में निमोनिया के मरीजों में एक अलग नोवेल कोरोनावायरस पाया गया था. यह मनुष्यों में पहुंचने वाला 8वां कोरोनावायरस हो सकता है. हालांकि, अभी तक इससे महामारी जैसा कोई खतरा सामने नहीं आया है.

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बेंगलुरु: एक ताजा अध्ययन के मुताबिक, मलेशिया में एक नए कोरोनावायरस का पता चला है और यह संभवत: कुत्तों से इंसानों में पहुंचा है. बहरहाल, वैज्ञानिक अभी यह तय नहीं कर पाए हैं कि क्या इस वायरस से इंसानों के लिए कोई खतरा है या नहीं.

सार्स-कोव-2 वायरस, जो मौजूदा समय में कोरोना महामारी का कारण बना हुआ है, के सामने आने के बाद सीकोव-एचयूपीएन-2018 कहा जाने वाला यह वायरस मनुष्यों में पाया जाना वाला सबसे नया कोरोनावायरस है. ये एक नोवेल कैनाइन-फेलाइन रिकॉम्बीनेंट अल्फाकोरोनावायरस है और 2017 और 2018 में मलेशिया में निमोनिया के मरीजों में पाया गया था.

यह मनुष्यों में पाए जाने वाले कैनाइन कोरोनावायरस का यह पहला उदाहरण है. यदि वायरस को एक पैथोजेन या मनुष्यों में बीमारी फैलाने वाला पाया जाता है तो यह ऐसा आठवां नोवेल कोरोनावायरस होगा जो मनुष्यों में बीमारी फैलाने में सक्षम होगा.

रिपोर्ट तैयार करने वाले अध्ययनकर्ताओं ने जोर देकर कहा कि अभी स्पष्ट नहीं है कि क्या ये वायरस मनुष्यों के लिए खतरा है, और अध्ययन यह भी साबित नहीं करता है कि ये वायरस निमोनिया का कारण बना था. इसके इंसानों से इंसानों में पहुंचने का भी अभी तक कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला है. हालांकि, रिपोर्ट तैयार करने वाले अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि यह निष्कर्ष जानवरों में पाए जाने वाले कोरोनावायरस के सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे और इसके कारण मनुष्यों को संभावित जोखिम पर संजीदगी से ध्यान देने की जरूरत को रेखांकित करता है.

ये निष्कर्ष गुरुवार को क्लिनिकल इंफेक्शियस डिसीज जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं.


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मनुष्यों में कोरोनावायरस

कोरोनावायरस वायरस का एक समूह है जिसे चार श्रेणियों में बांटा गया है, अल्फाकोरोनावायरस, बीटाकोरोनावायरस, डेल्टाकोरोनावायरस और गामाकोरोनावायरस. ये वायरस जानवरों और पक्षियों में संक्रमण का कारण बनते हैं और इन्हें सबसे पहले 1920 के दशक में पहचाना गया था.

1960 के दशक में ह्यूमन कोरोनावायरस की पहचान की गई थी और ये अल्फा और बीटा कोव वंश से संबंधित हैं.

मानव कोरोनावायरस में एचकोव-229ई और एचकोव-एनएल63, जो सामान्यत: हल्की सर्दी-जुकाम का कारण बनते हैं, अल्फाकोरोनावायरस हैं. सामान्य सर्दी-जुकाम का कारण बनने वाले एचकोव-ओसी43 और एचकोव-एचकेयू1 और थोड़ी ज्यादा घातक क्षमता वाले सार्स-कोव और मर्स-कोव बीटाकोरोनावायरस हैं, सार्स-कोव-2 भी इसी श्रेणी में आने वाला वायरस है.

नया वायरस सीकोव-एचयूपीएन-2018 एक अल्फाकोरोनावायरस है.

हालांकि, ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं है जिससे सीधे तौर पर यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि वायरस कुत्तों से इंसानों में पहुंचा था, लेकिन वैज्ञानिकों ने पाया कि वायरस का जीनोम अनुक्रम इस तरह से ट्रांसमिशन की सबसे ज्यादा संभावना बताता है. ऐसा भी हो सकता है कि इसके बीच में कोई और माध्यम भी बना हो जैसे कि बिल्ली.

पिछले साल जब कोविड-19 महामारी शुरू हुई तो ड्यूक यूनिवर्सिटी में संक्रामक रोगों संबंधी महामारी विज्ञानी और इस अध्ययन के लेखकों में से एक डॉ. ग्रेगरी ग्रे ने अपने ग्रेजुएट छात्र लेशान जिउ के साथ मिलकर यह पता लगाने का फैसला किया कि क्या पहले से ही अन्य मानव कोरोनावायरस मौजूद हैं जिनकी हमने अब तक पहचान नहीं की है.

जिउ और ग्रे ने कुछ ऐसे उपकरण विकसित किए हैं जो इंसानों में कई प्रकार के कोरोनावायरस का पता लगा सकते हैं.

पिछले वर्ष मलेशिया के सरवाक में टेस्ट किए गए नमूनों के पहले बैच में टीम ने पूरी तरह नए नोवेल कोरोनावायरस का पता लगाया, जो निमोनिया से पीड़ित मरीजों खासकर बच्चों से जुड़ा था. ये नमूने 2017 और 2018 में प्राप्त किए गए थे और मरीजों को सामान्य तौर पर निमोनिया था.

बहरहाल, 301 नमूनों के टेस्ट के दौरान आठ में टीम ने पाया कि मरीजों के श्वसन तंत्र का ऊपरी हिस्सा एक नए कैनाइन कोरोनावायरस से संक्रमित था.

टीम ने तब ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट अनास्तासिया व्लासोवा से संपर्क साधा, जो जानवरों में पाए जाने वाले कोरोनावायरस के विशेषज्ञ और इस अध्ययन के पहले लेखक हैं. मनुष्यों में कैनाइन कोरोनावायरस के ट्रांसमिशन से संबंधित पहली बार ऐसी कोई जानकारी रिकॉर्ड में आने से रोमांचित व्लासोवा और उनकी टीम ने लैब में वायरस को संवर्धित किया और इसका अनुक्रम तैयार किया.


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CCoV-HuPn-2018 कैसे एकदम अलग है

व्लास्तोव और सहयोगी अध्ययनकर्ता अन्निका डियाज सहित उनकी पूरी टीम ने सीकोव-एचयूपीएन-2018 के जीनोम का सीक्वेंस तैयार करते समय कुछ बहुत ही रोचक और अनूठी जानकारियां हासिल कीं. वायरस ने डिलीशन के रूप में वायरस में एक म्यूटेशन पाया जो अन्य सभी कैनाइन कोरोनावायरस (और अन्य अल्फाकोरोनावायरस) में नहीं होता है लेकिन ह्यूमन कोरोनावायरस में मौजूद रहता है.

आनुवंशिक अनुक्रम में सीक्वेंस यानी अनुक्रम में कोई डिलीशन आरएनए मॉलीक्यूल के भीतर एक न्यूक्लियोटाइड या अमीनो एसिड विलोपित होने कारण बनता है. म्यूटेशन आमतौर पर प्रतिकृति बनने के दौरान होता है.

अध्ययनकर्ताओं ने लिखा कि इस डिलीशन को 36 एनटी (12एए) विलोपन कहा जाता है, जिसका नतीजा ‘जूनोटिक ट्रांसमिशन के तुरंत बाद इसके सेलुलर लोकलाइजेशन में जबर्दस्त बदलाव’ के रूप में सामने आता है. इसमें यह भी कहा गया है कि यह बदलाव हालिया जूनोटिक ट्रांसमिशन या कुत्तों से इंसानों में पहुंचने का संकेत देता है.

माना जाता है कि डिलीशन के कारण आए बदलाव से ही कैनाइन वायरस को मानव शरीर के अंदर बने रहने में मदद मिलती है और यही वायरस के मनुष्यों तक पहुंचने के लिए जरूरी संबद्ध प्रक्रिया हो सकती है.

व्लासोवा की टीम ने आगे पाया कि इन आठ नमूनों में से दो में नोवेल कोरोनावायरस का हिस्सा ज्यादा था, और उनमें से एक लैब में कैनाइन कोशिकाओं को संक्रमित करने की क्षमता भी रखता था. इन अनुक्रमों में बिल्लियों और सूअरों में पाए जाने वाले कोरोनावायरस के अंश भी पाए गए.

वायरस का जूनोटिक ट्रांसमिशन असामान्य नहीं है. ऐसा माना जाता है कि पूरा इतिहास यही बताता है कि अगर सब नहीं तो अधिकांश वायरस तो मनुष्यों में जानवरों से ही आए हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि बहुत संभव है कि मनुष्यों में बड़ी संख्या में अनजाने और तुलनात्मक रूप से हानिरहित कोरोनावायरस पाए जाते हैं, और जितनी हम खोज करेंगे उतना ही उनका पता लगा पाएंगे.

हालांकि, शोधकर्ताओं का मानना है कि नए वायरस से अभी महामारी जैसा कोई खतरा नहीं है, और इसकी संक्रामक और बीमारी फैलाने की क्षमता अभी तक पता नहीं चल पाई है. यही नहीं, जब कोविड की बात आती है तो निष्कर्ष पालतू जानवरों और मनुष्यों के लिए कोई और जोखिम का अंदेशा नहीं जताते.

यद्यपि बिल्लियां और कुत्ते दोनों सार्स-कोव-2 वायरस की चपेट में आ सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं माना जाता कि वे इसे मनुष्यों में ट्रांसमिट करने का कारण बन सकते हैं.

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


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