खेड़ा: गुजरात के उंधेला गांव के एक चौक पर सादे कपड़ों में पुलिसकर्मियों द्वारा लगभग एक दर्जन मुस्लिम मर्दों को एक खंभे के सामने खड़ा कर के बेंत से पीटे जाने के दो दिन बाद, गुरुवार को, गुजरात पुलिस ने इस घटना की जांच के आदेश दिए हैं.
मिली जानकारी के अनुसार 4 अक्टूबर को दोपहर लगभग 1:50 बजे, 10 मुस्लिम मर्दों को एक गरबा कार्यक्रम को कथित रूप से बाधित करने और पिछली रात (3 अक्टूबर की रात) को हुई हिंसा में शामिल होने के आरोप में एक खंभे के सामने इकठ्ठा किया गया और फिर उन्हें कुछ पुलिस कर्मियों, जिनमें से एक के पास होल्सटर में रखी पिस्तौल थी, द्वारा बेंत से पीटा गया था. इससे पहले ग्रामीणों ने दिप्रिंट को बताया था कि मंगलवार को हुई सरेआम पिटाई की इस घटना को देखने के लिए उन्हें चौक पर बुलाया गया था.
हालांकि, भीड़ द्वारा किये गए न्याय के इस खुलेआम प्रदर्शन ने विभिन्न हलकों में आक्रोश भर दिया और इस घटना की चारों तरफ आलोचना हुई है, लेकिन इसमें शामिल पुलिस कर्मियों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. कपडवंज तालुका के पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) वी. सोलंकी ने गुरुवार को दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे आज ही इस घटना की जांच का आदेश मिला है, और मैं वीडियो देखूंगा तथा सभी तथ्यों का पता लगाऊंगा.’ उन्होंने यह भी कहा कि रिपोर्ट जल्द से जल्द सौंप दी जाएगी.
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स्कूल हैं खाली और गलियां सुनसान
इस बीच, गुजरात के खेड़ा जिले के उंधेला के गांव में – जो इस वक़्त सन्नाटे में डूबा हुआ है – हर कोने पर वर्दीधारी पुलिस के तैनात होने के साथ ही उस चौक, जहां पर लोगों की पिटाई की गई थी, चौबीसों घंटे नजर रखी जा रही है.
हालांकि गुरुवार को दुकानें फिर से खुल गईं और किसान अपने खेतों में लौट आए थे, मगर गांव की खाली गलियों और शांत कोनों ने यह कहानी बयां होती है कि उंधेला में नवरात्रि के अंतिम दो दिन किस तरह से बीते.
गांव का प्राथमिक विद्यालय, जिसमें 465 छात्र नामांकित हैं, एकबार फिर से खुल गया है, लेकिन गुरुवार को वहां एक भी छात्र मौजूद नहीं था. खेड़ा जिला प्राथमिक शिक्षा अधिकारी कमलेश पटेल ने बताया, ‘ गांव में कर्फ्यू जैसा माहौल है. कल विद्यालय के सभी 13 शिक्षक उपस्थित थे. बच्चों की स्कूल में वापसी सुनिश्चित करने के लिए हमने शिक्षकों, सरपंच और समुदायों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक की है .‘
ग्रामीणों ने 5 अक्टूबर को गरबा में भाग जरूर लिया, हालांकि, मुख्य चौक में नहीं और 3 अक्टूबर को जो कुछ हुआ उसे याद किये बिना भी नहीं. वहां के अधिकांश ग्रामीणों के पास स्थानीय मुसलमानों द्वारा, उनके कहे अनुसार, ‘बिना उकसावे के की गई हिंसा’ के बारे में कहने के लिए और भी बहुत कुछ था.
दशहरा के दिन दिप्रिंट के साथ बातचीत में उंधेला निवासी पूनम सिंह सिसोदिया ने बताया, ‘यह पहली और आखिरी बार नहीं है जब हमने हिंसा देखी है. लेकिन हम डरे नहीं हैं, हम चौक के मंदिर में ही आरती करेंगे.’
सोमवार को कथित तौर पर हुए पथराव में सिर पर चोट खाने वाले दिलीप पटेल का दावा है कि गांव में दोनों समुदायों के बीच हमेशा से विभाजन रहा है.
पटेल ने कहा, ‘वे (मुसलमान) कहते हैं कि हमारे (हिंदू) त्योहार के दौरान चौक पर किसी भी लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि वहां एक मदरसा है. लेकिन हमारा मंदिर भी वहीं है. 3 अक्टूबर की रात को, उन्होंने पहले लोगों को इकट्ठा होने दिया और रात फिर करीब 11 बजे हम पर हमला करने लगे. अब देखिए, गांव के उनके हिस्से में अंधेरा छाया है, उनमें से ज्यादातर भाग गए हैं. ‘
इस सारे घटनाक्रम के बारे में पूछे जाने पर, दो स्थानीय बुजुर्ग मुस्लिम पुरुषों ने कहा कि उन्हें दोनों घटनाओं – 3 अक्टूबर को हुई हिंसा और उसके अगले दिन हुई सरेआम से पिटाई – में से किसी एक के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है.’
उंधेला गांव के सरपंच इंद्रवदन पटेल ने कहा, ‘मंदिर मान कंकू न चांटा पड़वा जोए, लोही नहीं (मंदिर में कुंकुम के थापे होने चाहिए, खून के नहीं).
3 अक्टूबर को गरबा आयोजित करने वाले पटेल ने दिप्रिंट को बताया: ‘3 अक्टूबर को हुई हिंसा की योजना पहले से बनाई गई थी. यह जानबूझकर किया गया था, हिंसा में शामिल कई लोग फरार हैं.उन्होंने (मुसलमानों) ने हमारे बच्चों और पत्नियों पर हमला किया, मौके पर पहुंचे पुलिसकर्मियों को भी नहीं बख्शा.’
हालांकि, पटेल ने अगले दिन उस वक़्त चौक पर अपनी उपस्थिति से इनकार किया जब मामले के आरोपियों को सार्वजनिक रूप से पीटा गया था. उन्होंने कहा, ‘मैं बाहर था, हो सकता है कि पुलिस कुछ ज्यादा ही कर गई हो, लेकिन हिंसा भड़काने वाले, पत्थर फेंकने वाले, लाठियां लेकर आने वाले इन लोगों को दंडित किया ही जाना चाहिए.’
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