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Saturday, 23 November, 2024
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SC ने विधानसभा बुलाने को लेकर पंजाब सरकार और राज्यपाल दोनों को लगाई फटकार, क्या कहता है कानून

पंजाब सरकार द्वारा मंगलवार को दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए, SC ने कहा कि राज्यपाल के पास विधानसभा सत्र बुलाने में देरी करने की कोई विवेकाधीन शक्ति नहीं है और वह कैबिनेट की सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य है.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित को राज्य विधानसभा बुलाने को लेकर टकराव के लिए फटकार लगाई.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा ने जोर देकर कहा कि एक मुख्यमंत्री और एक राज्यपाल के बीच संवाद का स्तर “नीचे” नहीं जाना चाहिए.

अदालत पुरोहित द्वारा विधानसभा बुलाने से इनकार करने पर पंजाब सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. पिछले महीने दोनों के बीच विवाद तब और बढ़ गया था, जब पुरोहित ने मान से कहा था कि वह बजट सत्र के लिए विधानसभा बुलाने पर फैसला तभी करेंगे, जब वह सीएम के “असंवैधानिक और अपमानजनक” ट्वीट और पत्र पर कानूनी सलाह ले लेंगे.

13 फरवरी को, पुरोहित ने एक पत्र लिखकर मान से उस महीने सिंगापुर में आयोजित एक ट्रेनिंग सेमिनार के लिए 36 सरकारी स्कूल के प्रधानाध्यापकों के चयन की प्रक्रिया की व्याख्या करने के लिए कहा था, जिसमें कहा गया था कि उन्हें “कदाचार और अवैधताओं” के बारे में शिकायतें मिली थीं.

हालांकि, मान ने तब ट्विटर पर कहा कि वह केवल तीन करोड़ पंजाबियों के प्रति जवाबदेह हैं, न कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल के प्रति. 14 फरवरी को मान ने राज्यपालों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार द्वारा अपनाए गए मानदंडों पर सवाल उठाते हुए एक लिखित जवाब भी भेजा था.

बजट सत्र बुलाने के राज्य मंत्रिमंडल के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए, पुरोहित ने मान के ट्वीट और पत्र को “न केवल स्पष्ट रूप से असंवैधानिक, बल्कि बेहद अपमानजनक” कहा था. इसके बाद पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

सदन को बुलाने की राज्यपाल की शक्ति के बारे में संविधान क्या कहता है? और पंजाब केस में सुनवाई के दौरान क्या हुआ? दिप्रिंट आपको बता रहा है.

संविधान क्या कहता है?

संविधान का अनुच्छेद 174 एक राज्यपाल को यह अधिकार देता है कि वह विधानमंडल को “जिस समय और जिस स्थान पर मिलने के लिए उचित समझता है” बुला सकता है.

अनुच्छेद 163 में इस बात का प्रावधान करता है कि राज्यपाल, राज्य के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की “सहायता और सलाह” पर कार्य करेगा. हालांकि, इसमें यह भी कहा गया है कि यदि राज्यपाल विवेकाधिकार से कोई काम करना चाहता है तो उसे इस सहायता और सलाह की आवश्यकता नहीं होगी.

अनुच्छेद 174 के तहत सदन को बुलाने के लिए राज्यपालों की शक्तियों को रेखांकित करने के लिए आमतौर पर दो प्रावधानों को एक साथ पढ़ा जाता है.

इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 167 के अनुसार मुख्यमंत्री का यह कर्तव्य है कि वह “राज्य के प्रशासन के मामलों से संबंधित मंत्रिपरिषद के सभी निर्णयों और कानून के प्रस्तावों” को राज्यपाल को सूचित करे. यह मुख्यमंत्री को प्रशासनिक मामलों और कानून के प्रस्तावों पर राज्यपाल द्वारा मांगी जाने वाली किसी भी जानकारी को प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करता है.


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कोर्ट ने क्या कहा है

नबाम रेबिया मामले में 2016 के एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि “राज्यपाल मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर ही सदन को बुला सकते हैं, सत्रावसान कर सकते हैं और सदन को भंग कर सकते हैं. न कि अपने आप.”

यह निर्णय 2015-16 में अरुणाचल प्रदेश में हुए एक संवैधानिक संकट से उत्पन्न हुआ था. अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष नबाम रेबिया ने राज्य के राज्यपाल द्वारा 13 विधायकों (भारतीय जनता पार्टी के 11 और 2 निर्दलीय) के संयुक्त अनुरोध पर विधानसभा सत्र शुरू करने के बाद शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था. इन विधायकों ने रेबिया को अध्यक्ष पद से हटाने के लिए प्रस्ताव का नोटिस भी जारी किया था.

मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जिसने 2016 में फैसला सुनाया कि आमतौर पर राज्यपाल मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर ही सदन को बुला सकते हैं.

हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया था कि अगर राज्यपाल के पास यह मानने का कारण है कि मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद ने सदन का विश्वास खो दिया है, तो वह उनसे बहुमत साबित करने के लिए कह सकते हैं.

‘कर्तव्य की उपेक्षा’

सुप्रीम कोर्ट ने 3 मार्च से बजट सत्र के लिए विधानसभा बुलाने से पुरोहित के इनकार के खिलाफ पंजाब सरकार की याचिका पर तत्काल सुनवाई करने के लिए मंगलवार सुबह सहमति व्यक्त की थी. हालांकि, जब याचिका पर दोपहर 3.50 बजे विचार किया जा रहा था तब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को सूचित किया कि राज्यपाल ने अब उस तारीख को सदन को बुलाया है.

अदालत ने तब पंजाब सरकार और पुरोहित दोनों को उनके कार्यों के लिए फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 167 राज्यपाल को सरकार से जानकारी मांगने की अनुमति देता है, और सरकार ऐसी जानकारी प्रदान करने के लिए बाध्य है. साथ ही, पीठ ने कहा कि राज्यपाल सत्र बुलाने को लेकर कैबिनेट की सलाह से भी बाध्य हैं.

न्यायमूर्ति नरसिम्हा को तब यह कहते हुए उद्धृत किया गया था, “दोनों पक्षों की ओर से चूक हुई है.”

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने “संवैधानिक संवाद” की आवश्यकता पर भी जोर देते हुए कहा, “हम विभिन्न राजनीतिक दलों से संबंधित हो सकते हैं, पर निश्चित रूप से राज्यपाल को राजनीति से ऊपर होना चाहिए.”

अदालत ने तब नबाम रेबिया मामले सहित उदाहरणों का उल्लेख किया, और बताया कि अनुच्छेद 174 के तहत राज्यपाल की शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के अनुसार किया जाना है.

अदालत ने सलाह दी कि पदाधिकारियों के बीच संवैधानिक संवाद “परिपक्व राजनीति” के साथ किया जाना चाहिए, और कहा, “लोकतांत्रिक राजनीति में राजनीतिक मतभेद स्वीकार्य हैं और इस पर संयम और परिपक्वता की भावना के साथ काम किया जाना चाहिए, बिना बातचीत का स्तर नीचा हुए.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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