नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दुबई स्थित एक व्यक्ति द्वारा अपने साथी की उसके माता-पिता द्वारा कथित अवैध हिरासत के खिलाफ दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को 14 मौकों पर स्थगित करने के कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है.
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई के नेतृत्व वाली एक खंडपीठ ने हाई कोर्ट द्वारा मामले को 2025 तक के लिए अनिश्चितकालीन स्थगन पर भी नाराज़गी व्यक्त की — हाई कोर्ट के समक्ष मामले की आखिरी सुनवाई 11 दिसंबर, 2023 को हुई थी. शीर्ष अदालत ने 25-वर्षीय महिला के माता-पिता को “उसे तुरंत आज़ाद करने” का भी आदेश दिया.
यह आदेश दुबई स्थित केविन जॉय वर्गीज़ की याचिका पर आया. अपनी याचिका में वर्गीज़, जिन्होंने हाई कोर्ट के दिसंबर के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, ने कहा कि उन्होंने सितंबर 2023 में अपनी साथी मीरा चिदंबरम के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण दायर किया था और हाई कोर्ट ने 29 सितंबर को मामले में नोटिस जारी किया था.
मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट के दृष्टिकोण से “नाराज़” न्यायमूर्ति गवई की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट को याचिका पर कार्रवाई करते हुए 25-वर्षीय महिला को रिहा करना चाहिए था, खासकर जब उसने “स्पष्ट” शब्दों में अपना करियर बनाने के लिए दुबई वापस जाने की इच्छा ज़ाहिर कर दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “14 मौकों पर मामले को स्थगित करना और अब इसे 2025 तक अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर देना, ऐसे मामले में हाई कोर्ट की ओर से संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है.”
शीर्ष अदालत ने कहा कि उचित स्तर पर सही आदेश पारित नहीं करने से “हिरासत में ली गई लड़की की अवैध हिरासत को और बढ़ावा मिला है”.
हाई कोर्ट के ढुलमुल रवैये के कारण, याचिकाकर्ता और उसके माता-पिता को “हिरासत में ली गई लड़की की भलाई” सुनिश्चित करने के लिए दुबई से बेंगलुरु तक लगातार यात्रा करने के लिए मजबूर किया गया, अदालत ने कहा, “जब किसी की स्वतंत्रता का सवाल हो और यह किसी व्यक्ति का सवाल हो, यहां तक कि एक दिन की देरी भी मायने रखती है”.
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‘महिला योग्य, सही-गलत की पहचान है’
अपनी याचिका में वर्गीज़ ने कहा कि उनके साथी, चिदंबरम ने 27 सितंबर को राज्य अधिकारियों के साथ अपना बयान दर्ज कराया था.
याचिका में कहा गया है, “अदालत के निर्देश पर मीरा और उसका परिवार 10 अक्टूबर 2023 को हाई कोर्ट के सामने पेश हुए और चैंबर में न्यायाधीश से मुलाकात की.”
याचिका के अनुसार, महिला ने अपने बयान में “स्पष्ट रूप से कहा कि उसे दादा की बीमारी के बहाने दुबई से जबरन ले जाया गया था और अरेंज मैरिज करने के लिए मजबूर किया गया.”
अदालत ने बुधवार को अपने आदेश में कहा कि अपने फैसले पर पहुंचने से पहले सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने चैंबर में महिला, चिदंबरम और उसके माता-पिता से भी बातचीत की.
इसमें चिदंबरम के हवाले से कहा गया है कि वह याचिकाकर्ता के साथ दुबई लौटना चाहती हैं और अपना करियर बनाना चाहती हैं. आदेश में कहा गया है कि महिला ने यह भी कहा कि हालांकि, उसे दुबई से तीन अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग नौकरियों के लिए इंटरव्यू के लिए कॉल आए, लेकिन वे शामिल नहीं हो पाई क्योंकि माता-पिता ने उन्हें रोक लिया था.
आदेश में कहा गया, अपनी ओर से चिदंबरम के माता-पिता ने अदालत को बताया कि वे अपनी बेटी की इच्छाओं के खिलाफ नहीं हैं, वे चाहते थे कि वह आर्थिक रूप से स्थिर हो और वह जो चाहे कर सके.
अपने आदेश में अदालत ने कहा कि चिदंबरम “अत्यधिक योग्य हैं”. इसने कहा, “बातचीत से पता चला कि वह यह समझने के लिए काफी परिपक्व है कि उनके जीवन में क्या सही है और क्या गलत. किसी भी मामले में एक बालिग लड़की को उसकी इच्छा के विरुद्ध कुछ करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.”
महिला के माता-पिता को उसे जाने देने का निर्देश देते हुए, उनसे 48 घंटों के भीतर उसके पासपोर्ट और अन्य दस्तावेज़ उसे वापस करने को कहा.
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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