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Saturday, 4 May, 2024
होमदेशनई किताब का दावा- SC वरिष्ठ अधिवक्ताओं को अधिक मौके देता है, लेकिन उनके लिए योग्यता भी खुद तय करता है’

नई किताब का दावा- SC वरिष्ठ अधिवक्ताओं को अधिक मौके देता है, लेकिन उनके लिए योग्यता भी खुद तय करता है’

एनएलएसआईयू, सिएटल यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो लॉ स्कूल के प्रोफेसरों द्वारा लिखी गई किताब बताती है कि प्रारंभिक सुनवाई के चरण में वरिष्ठ अधिवक्ताओं की शक्ति का काफी प्रभाव दिखता है.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ताओं के पास कितनी शक्तियां हैं और क्या कोर्ट उनके द्वारा लाई गई याचिकाओं का पक्ष लेती है?

एक नई किताब में दावा किया गया है कि शीर्ष अदालत का “वरिष्ठ अधिवक्ताओं के प्रति व्यवहार, याचिकाओं की गुणवत्ता की परवाह किए बिना, परिचित, सम्मानित व्यक्तियों के प्रति पूर्वाग्रह से अधिक है”. इससे यह भी पता चलता है कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं का प्रभाव सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों के बोझ को बढ़ाने में भी योगदान देता है, और नहीं भी.

‘कोर्ट ऑन ट्रायल’ शीर्षक वाली पुस्तक बेंगलुरु के नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर अपर्णा चंद्रा, सिएटल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ लॉ में प्रोफेसर और एसोसिएट डीन सीतल कलंट्री और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो लॉ स्कूल में लॉ के प्रोफेसर विलियम एच.जे. हबर्ड द्वारा लिखी गई है. इस पुस्तक में भारत के सुप्रीम कोर्ट के बारे में बात की गई है जिसमें कोर्ट में सुधार के लिए एक व्यावहारिक एजेंडा बनाने पर जोर डाला गया है.

‘फेस वेल्यू: द पावर एंड इंफ्यूलेंस ऑफ सीनियर एडवोकेट’ शीर्षक वाले चैप्टर में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में किसी मामले की शुरुआत में वरिष्ठ अधिवक्ताओं की शक्ति का बड़ा प्रभाव दिखता है. यह सुनवाई की शुरुआती चरण में होता है, जब अधिकांश याचिकाएं बिना किसी सुनवाई के खारिज कर दी जाती हैं.

अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 16 के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट एक वकील को वरिष्ठ वकील के रूप में नामित तब करता है यदि कोर्ट को लगता है कि वे “अपनी क्षमता, बार में उनका दबदबा, कानून में विशेष ज्ञान या अनुभव के आधार पर” इस ​​तरह के सम्मान के पात्र हैं.

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पुस्तक के लेखकों के अनुसार, वरिष्ठ अधिवक्ताओं के लिए प्रारंभिक सुनवाई में सफलता दर लगभग 35 प्रतिशत है, जबकि अन्य अधिवक्ताओं की 28 प्रतिशत है. पुस्तक में लिखा गया कि जबकि प्रारंभिक सुनवाई में सफलता केवल एक और सुनवाई की गारंटी देती है कि याचिका स्वीकार की जानी चाहिए या नहीं, प्रारंभिक सुनवाई अभी भी महत्वपूर्ण है क्योंकि “प्रारंभिक सुनवाई में सफलता दर लगभग अधिक व्यापक सुनवाई की गारंटी देती है”.

इसमें कहा गया है, “इस प्रकार, हम वरिष्ठ अधिवक्ताओं के शक्तियों के बारे में जानते हैं. बस सुप्रीम कोर्ट में आकर, वे अपने ग्राहकों को आगे की सुनवाई में प्रवेश पाने में लाभ देते हैं.”

इसके बाद यह सवाल उठता है कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं को अन्य अधिवक्ताओं की तुलना में सुनवाई के मामले में अधिक सफलता क्यों मिलती है. लेखक कहते हैं, “क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि वे बेहतर मामले लाते हैं- ऐसे मामले जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुने जाने योग्य हैं- या ऐसा इसलिए है कि वे उन मामलों को लेने के लिए अदालत को प्रभावित करते हैं (या तो अपने प्रेरक कौशल या अपनी प्रतिष्ठा के कारण) जिन्हें वास्तव में सुनवाई नहीं करनी चाहिए?”

क्या वे बेहतर मामले लाते हैं?

यह किताब इस सवाल का जवाब देने के लिए कई तर्कों पर गौर करती है कि सुप्रीम कोर्ट (एससी) वरिष्ठ अधिवक्ताओं का पक्ष क्यों लेता है. उदाहरण के लिए, यह इस ओर इशारा करता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा लाई गई याचिकाओं को सपोर्ट करता है क्योंकि वे बेहतर मामले लाते हैं.

लेखकों ने एससी मामलों पर दो प्रकार के डेटा एकत्र किए. सबसे पहले, उन्होंने 2010 में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) के रूप में सुप्रीम कोर्ट में दायर 466 सिविल मामलों के नमूने की जांच की. एक एसएलपी याचिकाकर्ता को किसी अन्य अदालत या न्यायाधिकरण द्वारा पारित किसी भी आदेश या फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की अनुमति देता है.

किताब में लेखकों ने यह सुनिश्चित करने के लिए इस विशिष्ट सेट को चुना कि उनके पास ऐसे मामलों का एक नमूना है, लेकिन जो अधिवक्ताओं और वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा प्रतिनिधित्व के संदर्भ में भिन्न थे. उन्होंने पाया कि प्रारंभिक सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ताओं की सफलता दर अधिक होती है.


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लेखकों ने 2010 से 2014 तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रकाशित सभी अंतिम निर्णयों को भी एकत्र किया. इससे उन्हें 5,000 से अधिक मामलों का एक नमूना दिया, जिसके लिए उनके पास जानकारी थी कि क्या याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एक वरिष्ठ वकील द्वारा किया गया था. इस डेटा में केवल यह जानकारी थी कि अंतिम सुनवाई में वकील कौन थे और कौन सा पक्ष जीता.

पुस्तक में कहा गया है, “यह डेटा हमें बता सकता है कि क्या वरिष्ठ अधिवक्ताओं के मामलों को सुप्रीम कोर्ट में जीतने की संभावना अधिक रहती है.” इसके बाद पाया गया कि इसका उत्तर “नहीं” है, और वरिष्ठ अधिवक्ताओं की जीत दर अन्य अधिवक्ताओं की तुलना में कम थी.

वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ याचिकाकर्ताओं की जीत दर 57 प्रतिशत थी, जबकि अन्य अधिवक्ताओं के साथ 60 प्रतिशत थी. इसमें कहा गया है कि इससे पता चलता है कि वरिष्ठ वकील, औसतन, कमज़ोर मामलों का प्रतिनिधित्व करते हैं, और इस विचार पर सवाल उठाता है कि सुप्रीम कोर्ट वरिष्ठ वकीलों का पक्ष लेता है क्योंकि वे बेहतर मामले लाते हैं.

इसमें कहा गया है, ”सबूत अभी मौजूद नहीं है.”

‘एक आत्म-सुदृढ़ीकरण चक्र’

दूसरे शोध और खुद के डेटा का उपयोग करते हुए, लेखकों ने पता लगाया कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं के पास कितनी शक्ति है और यह कहां से आती है.

किताब में लिखा गया है, “हमारा डेटा बताता है कि, भारत में शीर्ष लॉ ब्रेन में से एक होने के बावजूद, वरिष्ठ वकील सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को बेहतर नहीं बना रहे हैं. अक्सर, वे उन्हें नीचे ही कर रहे हैं.”

पुस्तक में तर्क दिया गया है कि सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों का भारी बोझ इस बात का स्पष्टीकरण है कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं का कोर्ट पर इतना प्रभाव क्यों है. हालांकि, यह भी नोट किया गया है कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं का प्रभाव भी केस की संख्या में लगातार बढ़ोतरी में योगदान देते हैं, जिसे ‘आत्म-सुदृढ़ीकरण चक्र’ कहा जाता है.

इसमें बताया गया है, “सुप्रीम कोर्ट को बहुत सारी एसएलपी का सामना करना पड़ता है. यह वरिष्ठ अधिवक्ताओं पर निर्भर करता है कि वे किसे स्वीकार करें. क्योंकि वरिष्ठ अधिवक्ताओं का अदालत पर प्रभाव होता है, कमजोर याचिका वाले वादी अपनी एसएलपी पर बहस करने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ताओं को रखते हैं, जिससे एसएलपी की संख्या और बढ़ जाती है. जैसे-जैसे एसएलपी की संख्या बढ़ती है, कोर्ट को वरिष्ठ अधिवक्ताओं पर और भी अधिक भरोसा करना चाहिए. और आगे और आगे.”

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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