नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम, जिसकी अध्यक्षता चीफ जस्टिस संजीव खन्ना कर रहे हैं, ने गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस यशवंत वर्मा के तबादले की सिफारिश की. यह फैसला उनके आवास से नकदी बरामद होने की शिकायत के बाद लिया गया है.
दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार, जस्टिस वर्मा को उनके मूल हाई कोर्ट, इलाहाबाद, वापस भेजा जा सकता है, जहां से उन्हें 2021 में दिल्ली शिफ्ट किया गया था. इसके अलावा, उनसे इस्तीफा देने के लिए भी कहा जा सकता है.
हालांकि, तबादले पर औपचारिक निर्णय लिया जा चुका है, लेकिन इस संबंध में प्रस्ताव को अभी सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया है, जो कि नियमित प्रक्रिया का हिस्सा है.
सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों के मुताबिक, पिछले हफ्ते जस्टिस वर्मा के सरकारी बंगले के बाहरी हिस्से में लगी आग लगने के बाद दमकलकर्मियों को बुलाया गया था. इसी दौरान, उन्होंने वहां नकदी मिली थी. घटना के समय जस्टिस वर्मा शहर में मौजूद नहीं थे, और दमकल विभाग को उनके परिवार के सदस्यों ने बुलाया था. उस वक्त उनके 82 वर्षीय माता और उनकी बेटी घर पर थीं.
आग बुझाने के बाद, दमकल और पुलिस की टीम को कुछ जली हुई नकदी मिली, जिसके बाद इसकी आधिकारिक रिपोर्ट दर्ज की गई. इस बारे में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को जानकारी दी गई, जिन्होंने इसे सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचाया.
सूत्रों के मुताबिक, बेहिसाब नकदी की बरामदगी से संबंधित जानकारी मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना को दी गई, जिसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट के जजों के तबादले से संबंधित कॉलेजियम की बैठक बुलाई.
बताया जा रहा है कि सरकारी अधिकारियों ने सीजेआई को जस्टिस के आवास से मिली नकदी का वीडियो फुटेज भी सौंपा था. हालांकि, चीफ जस्टिस खन्ना ने यह वीडियो अन्य कॉलेजियम सदस्यों को नहीं दिखाया, लेकिन उन्होंने इसके कंटेंट के बारे में उन्हें विस्तार से जानकारी दी.
कॉलेजियम के अन्य सदस्य—जस्टिस बी.आर. गवई, सूर्यकांत, अभय एस. ओका और विक्रम नाथ—ने सर्वसम्मति से जस्टिस वर्मा को दिल्ली से शिफ्ट करने का फैसला लिया. यह प्रस्ताव अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन निर्णय के अनुसार, उन्हें उनके मूल हाई कोर्ट में वापस भेजा जाएगा, जहां उन्हें 13 अक्टूबर 2014 को न्यायाधीश नियुक्त किया गया था.
हालांकि, कॉलेजियम में एक अन्य मत भी है. कुछ सदस्यों का मानना है कि इस गंभीर मामले को केवल ट्रांसफर तक सीमित रखना उचित संकेत नहीं होगा और इस पर और सख्त कदम उठाने की जरूरत है.
इसलिए, सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देने के लिए भी कहा जा सकता है.
एक सूत्र ने कहा, “यह चीफ जस्टिस का विशेषाधिकार है, जिन्होंने इस घटना पर दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से रिपोर्ट मांगी है. रिपोर्ट की समीक्षा करने के बाद, CJI अगले कदम पर निर्णय लेंगे.”
सूत्रों ने यह भी बताया कि चूंकि ट्रांसफर के लिए किसी रिपोर्ट की जरूरत नहीं होती, इसलिए कॉलेजियम ने इसे आगे बढ़ाना उचित समझा.
अगर CJI जस्टिस वर्मा से इस्तीफा देने के लिए कहते हैं और वह इनकार कर देते हैं, तो उनके खिलाफ इन-हाउस जांच शुरू की जा सकती है, जो कि संसद द्वारा हटाने की प्रक्रिया का पहला चरण होगा.
1999 में स्थापित इन-हाउस जांच प्रक्रिया का उद्देश्य हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी मौजूदा जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार, कदाचार या अनुचित आचरण की शिकायतों को निपटाना है.
इस प्रक्रिया के तहत, न्यायाधीश को आरोपों का जवाब देने का अवसर दिया जाता है. अगर CJI को लगता है कि गहराई से जांच की आवश्यकता है, तो वे सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की एक जांच समिति गठित कर सकते हैं, जो फिर शिकायत की पूरी सुनवाई करती है, जिसमें शिकायतकर्ता की भी जांच की जाती है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: मिडिल-क्लास को उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने वाला बजट मिला है, मोदी उनकी नब्ज़ जानते हैं