नई दिल्ली : भाकपा ने सोमवार को कहा कि नियुक्तियों और पदोन्नति में उच्चतम न्यायालय की व्यवस्था से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) खुश हो सकता है, लेकिन दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग ‘मायूस और क्षुब्ध’ हैं. न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि राज्य, नियुक्तियों में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है और पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है.
एक बयान में भाकपा ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 16 के तहत सरकारी नौकरियों के मामले में अवसरों की समानता देना राज्य का दायित्व है.
बयान में पार्टी ने कहा, ‘इस अनुच्छेद में ऐसा कुछ नहीं है जो राज्य को किसी भी पिछड़े वर्ग के नागरिकों के लिए नियुक्तियों या पदों में आरक्षण के लिए कोई प्रावधान करने से रोक सकता है, जिसके बारे में राज्य को लगता हो कि राज्य के तहत आने वाली सेवाओं में उसका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है.’
पार्टी ने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय की हालिया व्यवस्था से आरएसएस भले ही खुश हो सकता है, लेकिन दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग मायूस और क्षुब्ध हैं.’
पार्टी ने कहा, ‘भाकपा सरकारी नौकरियों और पदोन्नति में आरक्षण को लेकर उच्चतम न्यायालय की नई व्यवस्था से असहमति जताती है और विरोध करती है.’
बयान में कहा गया है कि पार्टी साथ में आरक्षण की नीति को बचाने के लिए सरकार से जरूरी कानूनी उपाय करने का आग्रह करती है. उत्तराखंड सरकार के पांच सितम्बर 2012 के फैसले को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने यह व्यवस्था दी.
गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार ने राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आरक्षण दिए बगैर सरकारी सेवाओं में सभी पदों को भरे जाने का फैसला लिया था.