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Wednesday, 20 November, 2024
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खीर, अध्यात्म और गंगा के बिना नई शिक्षा नीति अधूरी : मोहन भागवत

नई शिक्षा पद्धति पर आयोजित एक कार्यक्रम में संघ प्रमुख ने कहा कि देश में कई दिनों से नई शिक्षा नीति को लेकर चर्चा चल रही है, लेकिन नई नीति में क्या है और क्या नहीं इसकी अभी जानकारी नहीं है. नई नीति के मसौदे को अभी पढ़ा नहीं है.

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नई दिल्ली : देश में नई शिक्षा नीति को लेकर चल रही बहस के बीच संघ प्रमुख मोहनराव भागवत ने नई शिक्षा नीति में खीर, अध्यात्म और गंगा पर ज़ोर दिया है. उन्होंने कहा कि खीर का रामायण काल के ग्रंथों में वर्णन मिलता है. हज़ारों वर्षों से यह घरों में बनते चली आ रही है. घर से लेकर झोपड़ियों तक में बनती है. पर्व त्यौहार पर लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं. भाषा, भजन, भ्रमण और भोजन यह सब भारत को दर्शाते हैं. भारत की इन विशेषताओं का गौरव जिस शिक्षा पद्धति में नहीं है, इसका ज्ञान नहीं है वह भारतीय शिक्षा नहीं हो सकती.

शनिवार को ज्ञानोत्सव कार्यक्रम में नई शिक्षा नीति पर अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि लोग ऐसा कहते हैं कि शिक्षा में इतिहास और अध्यात्म का कोई काम नहीं. इसका कोई औचित्य नहीं पर उनका मानना है कि जिस शिक्षा में यह नहीं वह भारतीय शिक्षा नहीं है.


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संघ प्रमुख ने कहा कि भारत की भूमि पर जल, जन, जीव और पर्यावरण सब शामिल हैं. भारत में ऐसे हाथी हैं जो पूरी तरह से अफ्रीका के हाथी से अलग होते हैं. भारत की गाय अलग होती है. भारत में गंगा, कावेरी अन्य नदियां हैं. दुनिया में यह और कही नहीं है. किसी अन्य नदी के सामने बैठ कर गंगा मैया की जय नहीं कह सकते हैं. सदियों से हम यहां बसते हैं और यह सभी हमारे अंदर है. हम इससे अलग नहीं हो सकते हैं, न ही हमें अलग किया जा सकता है.

संबोधन में संघ प्रमुख ने कहा कि देश में कई दिनों से नई शिक्षा नीति को लेकर चर्चा चल रही है, लेकिन इसमें क्या है और क्या नहीं इस बारे में उन्हें जानकारी नहीं क्योंकि उन्होंने इसके मसौदे को अभी तक पढ़ा नहीं है. भारत में शिक्षा के बारे में एक समझ बनी है जो कि दूसरे देशों की शिक्षा पर बनी सोच से अलग है.

उन्होंने फिनलैंड का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां बच्चों की परीक्षा में अव्वल आने के लिए तैयार नहीं किया जाता है. वहां बच्चों को जीवन की चुनौतियों में कैसे अव्वल आएं और सफलता हासिल करें, इसके लिए तैयार किया जाता है.

भागवत ने कहा कि भारत से अन्य देशों की तुलना में भारतीय शिक्षा का दृष्टिकोण पूरी तरह से अलग है. ‘भारत में शिक्षा को लेकर विचार में भारतीयता को पहले महत्व देते हैं. हमारे यहां शिक्षा इसलिए चाहिए कि न केवल उससे साक्षरता हो बल्कि शिक्षा से विद्या की भी प्राप्ति होती है. विद्या में यह सामर्थ्य है कि वह ज्ञान से साक्षात्कार करा देती है. इसके कारण विद्या प्राप्त करने वाला मनुष्य पूरी तरह से मुक्त हो जाता है.’ उन्होंने कहा कि आज की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे लोग आत्मनिर्भर बनें, स्वगौरवपूर्ण हो ओर अपने प्रयासों से स्वावलंबी बनें इस तरह की क्षमता होनी चाहिए.


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भागवत ने कहा कि तीन सौ वर्ष पहले भारतीय लोगों को कैरीबियाई देशों में और दक्षिण एशियाई देशों में लेकर गए. वहां वे लोग मजदूरी करने लगे. कई अत्याचार सहन कर रहे हैं. वे हिंदी तो भूल गए हैं लेकिन भारतीयता और इसके संस्कार नहीं भूले हैं. वह अब अंग्रेजी में बात करते हैं लेकिन हनुमान चालीसा वहां भी सुनाई दे रहा है. वहां भी हर घर में तुलसी का पौधा दिखाई देगा. हनुमान जी कौन हैं क्या कर रहे हैं पता नहीं लेकिन फिर भी हनुमान चालीसा सर्वत्र सुनाई दे रहा है. लोगों को तुलसी रामायण याद है लेकिन अर्थ क्या है यह पता नहीं है. यह सब भी भारतीयता ही है.

नई शिक्षा नीति को लेकर संघ का प्रयास ये है कि उसमें भारतीयता देखने को मिले. संघ प्रमुख भागवत ने अपने संबोधन के दौरान जो बातें कहीं उनसे ये साफ था. उन्होंने कहा कि अर्थशास्त्र जैसे विषयों की पढ़ाई जीवन यापन के लिए होती है यानि इनसे रोज़गार मिलता है, लेकिन जीवन के असल मतलब को समझने के लिए इतिहास और दर्शन जैसे विषयों को पढ़ने और समझने की दरकार है. इस कार्यक्रम के दौरान मौजूद बड़े अतिथियों की बातों को सुनकर ऐसा लगा कि सरकार जो शिक्षा नीति लाएगी उसमें संघ का प्रभाव साफ देखने को मिलेगा.

 

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