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Sunday, 16 February, 2025
होमदेशसड़कें, राशन कार्ड और CRPF गुरुकुल — माओवाद को जड़ से मिटाने के लिए बस्तर नए हथियारों के साथ तैयार

सड़कें, राशन कार्ड और CRPF गुरुकुल — माओवाद को जड़ से मिटाने के लिए बस्तर नए हथियारों के साथ तैयार

छत्तीसगढ़ में माओवादिओं के खतरे को हमेशा के लिए खत्म करने के वास्ते राज्य और केंद्र सरकार ने दोतरफा रणनीति बनाई है और इसमें सफलता भी मिली है. यह देखना अभी बाकी है कि यह समय की कसौटी पर खरा उतरता है या नहीं.

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बस्तर: छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के कच्चापाल गांव में पंचायत भवन की एक पुरानी, ​​जीर्ण-शीर्ण दीवार पर लिखा है: “झूठे छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करो; जनताना सरकार को बचाओ और मज़बूत करो.”

यह अपील दीवार और लोगों की कल्पना से फीकी पड़ती दिख रही है, क्योंकि स्थानीय ग्रामीणों की कतार दीवार के सामने अपने आधार आवेदनों की स्थिति जानने के लिए लगी हुई है. एक साल से थोड़ा ज़्यादा समय पहले, कच्चापाल को दुर्गम माना जाता था क्योंकि यह माओवादियों के गढ़ अबूझमाड़ के अंदर स्थित है, जिसे अक्सर “अज्ञात पहाड़ियां” कहा जाता है.

बीजापुर जिले में लगभग 300 किलोमीटर दूर, केंद्रीय प्रमुख योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत एक एंबुलेंस पहली बार कोंडापल्ली गांव की गलियों से गुज़रती है, जहां माओवादियों का बोलबाला था. पड़ोसी सुकमा जिले में माओवादी कमांडर मादवी हिडमा के जन्मस्थान भांडीपारा में अब सौर ऊर्जा से चलने वाली लाइटें और बिजली के खंभे हैं.

छत्तीसगढ़ के इन तीन जिलों में माओवादियों के गढ़ों के कई गांव अब नए बने रास्तों की बदौलत पहुंच योग्य हो गए हैं, जिससे प्रशासन निवासियों को पीने का पानी, बिजली और अन्य बुनियादी सुविधाएं प्रदान कर सकता है. स्थानीय निवासियों के पास सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए दस्तावेज़ होना सुनिश्चित करने के लिए सत्यापन मानदंडों में भी ढील दी गई है, जो हाल ही तक उनकी पहुंच से बाहर थे.

इन्फोग्राफिक : श्रुति नैथानी/दिप्रिंट
इन्फोग्राफिक : श्रुति नैथानी/दिप्रिंट

सरकारी योजनाओं के साथ-साथ बढ़ी हुई सुरक्षा मौजूदगी, छत्तीसगढ़ में माओवादी खतरे को समाप्त करने के लिए राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा तैयार की गई दो-आयामी रणनीति का हिस्सा है.

पिछले कुछ महीनों में सुरक्षा बलों ने नारायणपुर के कच्चापाल में एक कैंप भी लगाया है. माओवादी विद्रोह से सबसे अधिक प्रभावित तीन जिलों, बीजापुर, सुकमा और नारायणपुर में, सुरक्षा बलों ने पिछले एक साल में क्रमशः नौ, 11 और सात सुरक्षा कैंप बनाए और खोले हैं.

2025 तक सुरक्षा बलों ने बीजापुर में दो और नारायणपुर में एक ऐसे कैंप खोले हैं.

बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पट्टिलिंगम ने दिप्रिंट को बताया, “बस्तर के इन गहरे इलाकों में सुरक्षा न के बराबर थी…हाल ही में, हम एक के बाद एक कैंप खोल रहे हैं, ताकि सुरक्षा बलों को प्रशासनिक अधिकारियों के पहुंचने से पहले इलाके को सुरक्षित करने और सरकारी योजनाओं को दूरदराज के गांवों तक पहुंचाने का मौका मिल सके.”

बीजापुर के कोंडापल्ली गांव में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की एंबुलेंस | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
बीजापुर के कोंडापल्ली गांव में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की एंबुलेंस | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

गृह मंत्रालय (एमएचए) के अनुसार, देश में वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) में कमी आई है, 2010 में जब एलडब्ल्यूई अपने चरम पर था, तब नौ राज्यों के 126 जिलों में ऐसी घटनाएं दर्ज की गई थीं और अप्रैल 2024 में केवल 38 जिलों में ऐसी घटनाएं दर्ज की गई हैं.

पिछले साल ही, छत्तीसगढ़ के बस्तर में सुरक्षा बलों ने 123 मुठभेड़ों में 217 संदिग्ध माओवादियों को मार गिराया, जबकि 929 अन्य को गिरफ्तार किया और 419 मामले दर्ज किए. इस साल अब तक 81 संदिग्ध माओवादी मारे जा चुके हैं.

इन्फोग्राफिक : श्रुति नैथानी/दिप्रिंट
इन्फोग्राफिक : श्रुति नैथानी/दिप्रिंट

छत्तीसगढ़ के डीजीपी अरुण देव गौतम का कहना है कि गृह मंत्रालय और छत्तीसगढ़ सरकार ने “नक्सलवाद के सशस्त्र स्वरूप के पूर्ण उन्मूलन का आह्वान किया है और ये मुठभेड़ें सही दिशा में उठाए गए कदम हैं.”

गौतम ने दिप्रिंट से कहा, “हम मार्च 2026 तक राज्य और देश से हिंसक नक्सलवाद को खत्म करने के मिशन पर काम कर रहे हैं.”

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजीपी आर.के. विज ने हालांकि, कहा कि माओवाद को खत्म करने के लिए प्रतिनिधित्व की कमी को पूरा करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति होनी चाहिए और तभी ग्रामीण ‘जनता सरकार’ के बजाय लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार पर भरोसा कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि हाल तक बुनियादी सुविधाओं से वंचित आदिवासी गांवों में विकास योजनाओं को ले जाना राज्य और प्रशासन द्वारा अपने मूल कर्तव्यों को पूरा करना है.


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सुरक्षा और विकास साथ-साथ

बीजापुर के कोरागुट्टा गांव में सुरक्षा बलों और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) द्वारा खोले गए कैंप के पास, ग्राम प्रधान अपने साथ निवासियों के आधार कार्ड का बंडल लेकर रुकते हैं. गांव के मुखिया भीमाराम मरकाम (37) ने कहा, “आधार कार्ड बहुत ज़रूरी हैं, जिससे निवासियों को सरकार द्वारा दी जाने वाली सेवाएं और सुविधाएं मिल सकें. कैंप के ज़रिए कार्ड तक हमारी पहुंच बढ़ गई है.”

माओवादियों ने पहले इस जगह का इस्तेमाल लॉन्चिंग पैड, भर्ती क्षेत्र और अपने सशस्त्र विंग, पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) के लिए बेस के रूप में किया था, सुरक्षा कर्मियों के अनुसार, अब यह क्षेत्र उनके नियंत्रण में है.

जिला अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया, छत्तीसगढ़ सरकार की प्रमुख योजना ‘नियाद नेल्लनार’ (आपका अच्छा गांव) के तहत बनाए गए संपर्क मार्गों की वजह से अब कोरागुट्टा जैसे गांवों तक पहुंचना संभव हो गया है. पिछले साल 15 फरवरी को इस योजना के शुरू होने के बाद से बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर, दंतेवाड़ा और कांकेर के पांच माओवादी प्रभावित जिलों में 37 सुरक्षा कैंप के पांच किलोमीटर के दायरे में 118 गांवों तक शासन पहुंच चुका है.

सुकमा के पुवर्ती में भांडीपारा में एक नया एलईडी टीवी | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
सुकमा के पुवर्ती में भांडीपारा में एक नया एलईडी टीवी | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

सुरक्षा एजेंसी के सूत्रों के अनुसार, कोरागुट्टा माओवादियों के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण है और यहां से हर पांच से छह किलोमीटर की दूरी पर सुरक्षा कैंप एक्टिव हैं, जो छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर तर्रेम और पामेड़ के बीच के जंगलों में फैले हुए हैं.

पिछले साल सुरक्षा बलों ने माओवादी प्रभावित पांच जिलों में 30 कैंप खोले थे. पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, “चूंकि सुरक्षा कैंप जंगल के अंदर तक चले गए, इसलिए आदिवासी लोगों तक पहुंच बढ़ाने के लिए मिशन मोड पर विकास परियोजनाओं को शुरू करने का अवसर मिला.”

उन्होंने कहा, “छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद इस हद तक बढ़ गया है कि इसने हर दूसरे सरकारी काम को पीछे छोड़ दिया है. अब सही रास्ते पर चलने का सबसे सही वक्त है. माओवादी पीछे हट रहे हैं और सुरक्षा बलों ने गांवों में अधिकारियों के लिए नए मौके खोले हैं.”

सुकमा के पुवर्ती ग्राम पंचायत के अंतर्गत भांडीपारा में जहां शीर्ष माओवादी कमांडर मादवी हिडमा का जन्म हुआ था, कवासी अयातु (50) ने कहा कि उन्हें हाल ही में उनके आधार कार्ड के ज़रिए राशन मिल रहा है. उनकी झोपड़ी के ठीक बगल में एक और झोपड़ी है जिसमें फ्री-टू-डिश एंटीना, छत पर सोलर पैनल और अंदर एक नया एलईडी टीवी है. ग्रामीण मडके वंजाम ने कहा, “यह इस गांव का पहला टीवी है…ग्रामीण यहां एक्शन फिल्में देखने के लिए इकट्ठा होते हैं.”

पुवर्ती में एक झोपड़ी की छत पर सोलर पैनल | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
पुवर्ती में एक झोपड़ी की छत पर सोलर पैनल | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

गांव में एक माउंटेड सोलर स्ट्रीट लाइट भी है, साथ ही व्यक्तिगत पाइप्ड वाटर कनेक्शन और पानी की टंकियां भी हैं, जबकि बोरवेल का काम अभी भी लंबित है. क्षेत्र में सुरक्षा कैंप की मौजूदगी ने विकास कार्यों को जारी रखने की अनुमति दी है.

केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, दूसरी ओर, सुरक्षा बल भी अब आश्चर्यजनक हमले करने के लिए बेहतर स्थिति में हैं क्योंकि कैंप जंगल के अंदर हैं और माओवादी करीब हैं.

उदाहरण के लिए बीजापुर और सुकमा के बीच सीमा क्षेत्र में सुरक्षा बल माओवादियों से केवल 10 किमी दूर हैं — एक ऐसा क्षेत्र जो कभी माओवादी कमांडर हिडमा के प्रभुत्व में था.


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‘मुर्गी और अंडे वाली स्थिति’

दिसंबर 2024 में जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बीजापुर के गुंडम गांव का दौरा किया, जहां सुरक्षा बलों ने एक नया कैंप लगाया था, तो निवासियों ने शिकायत की कि उनके पास राशन कार्ड नहीं हैं.

इस प्रक्रिया में चुनौतियां हैं, लेकिन अधिकारी यह सुनिश्चित करने के लिए कोशिश कर रहे हैं कि प्रक्रियागत बाधाओं के कारण देरी न हो. छत्तीसगढ़ सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “यह मुर्गी और अंडे वाली स्थिति है. आधार बनवाने के लिए किसी व्यक्ति के पास अपनी पहचान और निवास की पुष्टि करने वाले कुछ दस्तावेज़ होने चाहिए — जो उनके पास कभी थे ही नहीं.”

गांवों में केंद्रीय योजनाओं के तहत फंड बांटने में एक और समस्या बैंक शाखाओं की अनुपस्थिति है, जिससे प्रधानमंत्री आवास योजना या महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) के तहत प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) असंभव हो जाता है.

इन समस्याओं को हल करने के लिए, छत्तीसगढ़ सरकार ने बस्तर के लोगों के लिए छूट मांगने के लिए संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों से संपर्क किया — जो उन्हें प्रदान किए गए.

भांडीपारा, पुवर्ती में राशन कार्ड लाभार्थी कवासी आयतु | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
भांडीपारा, पुवर्ती में राशन कार्ड लाभार्थी कवासी आयतु | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

राज्य पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की प्रमुख सचिव निहारिका बारिक ने कहा, “हमने छूट की मांग की थी, जैसे कि ग्रामीण आधार बनाने के लिए जिला राजस्व विभाग के अधिकारियों से पहचान दस्तावेज़ ले सकते हैं और इससे परिणाम मिले.” वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि केंद्र ने मनरेगा लाभार्थियों के मामले में डीबीटी से छूट भी प्रदान की, ताकि तेज़ी से रोलआउट की सुविधा मिल सके.

बारिक ने कहा कि राज्य ने नई दिल्ली में वित्तीय सेवा विभाग से भी संपर्क किया, जिसमें पांच किलोमीटर के दायरे में बैंक शाखाएं खोलने के मानदंडों में ढील देने का आग्रह किया गया, भले ही उस क्षेत्र में 5,000 से कम लोग रहते हों. “ये आदिवासी बस्तियां हैं…हमारे पास मानदंड को पूरा करने के लिए इतनी आबादी कभी नहीं होगी…इसलिए, हमने कुछ छूट के लिए संपर्क किया.”

दंतेवाड़ा के बासनपुर में आंगनवाड़ी केंद्र | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
दंतेवाड़ा के बासनपुर में आंगनवाड़ी केंद्र | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

राज्य सरकार, डाक विभाग के साथ मिलकर अब इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक की शाखाएं खोलने के लिए उपयुक्त स्थानों की तलाश करने के लिए गांवों का सर्वेक्षण कर रही है. बारिक ने कहा, “हम इस साल के अंत तक बस्तर जिलों में आईपीपीबी की 294 शाखाएं खोलने की योजना बना रहे हैं.”

बारिक ने यह भी बताया कि राज्य पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग ने सरकार द्वारा शुरू की गई विकास योजनाओं और परियोजनाओं के कार्यान्वयन की स्थिति को ट्रैक करने के लिए एक डैशबोर्ड बनाया है.

विज को लगता है कि ये नई योजनाएँ “अधिक से अधिक सुरक्षा और प्रशासन के बीच की खाई को पाटने के लिए ही पर्याप्त हैं”. उन्होंने कहा कि शीर्ष माओवादी नेता अभी भी ज़िंदा और एक्टिव हैं.

‘राज्य के साधन’

फरवरी की एक दोपहर में सुकमा जिले के पुवर्ती गांव में सुरक्षा कैंप के बाहर लगभग 35 बच्चे खेल रहे हैं. हिडमा के जन्मस्थान के रूप में जाने जाने वाले पुवर्ती में अब एक खेल का मैदान और एक अस्थायी स्कूल है. सीआरपीएफ गुरुकुल के छात्रों में पोडियम लक्ष्मी (13) भी शामिल हैं, जो हिंदी वर्णमाला सीख रही हैं. लक्ष्मी के लिए सीआरपीएफ गुरुकुल वह जगह है जहां उन्होंने पहली बार ब्लैकबोर्ड देखा. एक अन्य छात्र, मर्राकम लक्मा (8) 100 तक गिनती कर सकते हैं — जो उन्होंने स्कूल जाने के बाद से दो हफ्तों में सीखी है.

पुवर्ती में सीआरपीएफ गुरुकुल | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
पुवर्ती में सीआरपीएफ गुरुकुल | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

सुरक्षा बलों ने पिछले फरवरी में पुवर्ती में एक कैंप खोला. फिर, दिसंबर में कैंप में सीआरपीएफ अधिकारियों ने निप्पू बग्गू (18) को शामिल किया, जिन्होंने बाहरवीं क्लास तक पढ़ाई की थी, ताकि पुवर्ती और आस-पास के गांवों के बच्चों को पढ़ाया जा सके. बग्गू ने कहा, “मैं उन्हें हिंदी और अंग्रेज़ी में वर्णमाला सिखाता हूं और उन्हें हिंदी बोलना सिखाता हूं. मैं पिछले दो हफ्ते से हर महीने 12,500 रुपये सैलरी के वादे पर यहां पढ़ा रहा हूं.”

कक्षाएं प्रतिदिन सुबह 8 बजे से दोपहर तक चलती हैं. दोपहर के बाद के आखिरी दो घंटे वॉलीबॉल और क्रिकेट जैसी खेल गतिविधियों के लिए होते हैं, जिसके बाद सीआरपीएफ द्वारा लंच भी उपलब्ध कराया जाता है. सुरक्षा बल सीआरपीएफ गुरुकुल को “अस्थायी आउटरीच उपाय” कहते हैं.

पुवर्ती में सुरक्षा कैंप के बाहर खेल का मैदान | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
पुवर्ती में सुरक्षा कैंप के बाहर खेल का मैदान | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

बीजापुर में पड़ोसी कोरागुट्टा कैंप में ग्राम प्रधान मरकाम ने कहा कि सुरक्षा कैंप के खुलने के बाद से सार्वजनिक सुविधाओं तक पहुंच में काफी सुधार हुआ है. “कैंप में इंटरनेट सेवाएं, दवाइयां और अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराई गईं.”

कैंप के प्रवेश द्वार पर, पंचायत सचिव लक्ष्मी आलम एक व्यक्ति को अपनी पहचान बताती हैं, जो उनके सिरदर्द के लिए दवाइयों के उनके अनुरोध को भी दर्ज करता है.

ऐसे लोग भी हैं जो इसे अलग तरह से देखते हैं.

दंतेवाड़ा की आदिवासी कार्यकर्ता और वकील बेला भाटिया ने कहा, “जंगलों और कैंप में सुरक्षा बलों का उद्देश्य आदिवासियों या देश के किसी भी अच्छे नागरिक के लिए छिपा हुआ नहीं है. राज्य को लोगों को सुविधाएं देने की ज़रूरत नहीं है जिसका उन्हें अधिकार है. वह भी उन बलों के ज़रिए जिन्हें लोग राज्य की ताकत और मारक क्षमता का साधन मानते हैं.”

बीजापुर के कोरागुट्टा के पास एक अभियान में सीआरपीएफ ने मंगलवार को एक नक्सली ठिकाने का भंडाफोड़ किया | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट/दिप्रिंट
बीजापुर के कोरागुट्टा के पास एक अभियान में सीआरपीएफ ने मंगलवार को एक नक्सली ठिकाने का भंडाफोड़ किया | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट/दिप्रिंट

कनेक्टिविटी

अन्य विकास कार्य भी जारी हैं. लास्ट माइल कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने के लिए माओवाद प्रभावित गांवों से बीजापुर शहर तक छह मार्गों पर बस सेवाएं चालू हैं.

पड़ोसी सुकमा में प्रशासन ने जंगलों में बसे गांवों तक सड़कों और पुलों के निर्माण पर फरवरी 2024 और जनवरी 2025 के बीच लगभग 11 करोड़ रुपये खर्च किए. यह आंकड़ा बीजापुर के लिए 33.77 करोड़ रुपये और नारायणपुर के लिए 8.36 करोड़ रुपये था.

पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार ने दिप्रिंट को बताया, अबूझमाड़ के माध्यम से लास्ट माइल कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने के लिए नारायणपुर में 18 संपर्क सड़कों का निर्माण किया जा रहा है.

उन्होंने कहा, “पिछले साल जनवरी में महाराष्ट्र की सीमा सुरक्षा बलों द्वारा सुरक्षित किए गए अंतिम क्षेत्र से 45 किमी दूर थी. दूरी घटकर मात्र 15 किमी रह गई है. जून तक, हम अबूझमाड़ के गांवों से होते हुए महाराष्ट्र की सीमा तक पहुंच जाएंगे.”

अबूझमाड़ के नारायणपुर में सड़क बनाई जा रही है | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
अबूझमाड़ के नारायणपुर में सड़क बनाई जा रही है | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

‘एक के बदले 15’

केंद्रीय बलों और राज्य विभागों के अलावा, बस्तर में जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) जैसे स्थानीय बलों ने भी ज़मीनी स्तर पर योजनाओं को लागू करने में बड़ी भूमिका निभाई है.

डीआरजी की स्थापना 2008 में माओवादी कैडरों के एक गुरिल्ला बल के रूप में की गई थी, जिन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया था.

पुलिस के एक अधिकारी ने खुलासा किया कि “डीआरजी अपने दम पर नक्सल विरोधी अभियान चला सकते हैं, लेकिन उनकी शारीरिक उपस्थिति या खुफिया आकलन के बिना कोई भी अभियान नहीं चलाया जा सकता है.”

बीजापुर में माओवादियों द्वारा लगाए गए आईईडी से नुकसान | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट/दिप्रिंट
बीजापुर में माओवादियों द्वारा लगाए गए आईईडी से नुकसान | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट/दिप्रिंट

प्रशासन द्वारा गांवों में पहुंचकर माओवादी कैडरों और समर्थकों को आत्मसमर्पण के लिए राज़ी करने के साथ, सुरक्षा बल अभियानों में होने वाले जान-माल के नुकसान को सीमित करने में सक्षम हुए हैं. नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा, “पहले, राज्य ने एक माओवादी को खत्म करने के लिए 1.5 जवान खो दिए थे. अब, एक जवान के बदले 15 माओवादियों को मार दिया गया है.”

सुरक्षाकर्मियों की संख्या अधिक होने और माओवादियों को घेरने के लिए सर्कुलर कट-ऑफ जैसी रणनीतियां कारगर साबित हुई हैं.

अधिकारी ने कहा, “इसके लिए ज़मीन पर बहुत ज़्यादा जवानों की ज़रूरत पड़ती है.”

बीजापुर, सुकमा और नारायणपुर पर सबकी निगाहें

6 जनवरी को अबूझमाड़ के जंगल में आतंकवाद विरोधी अभियान के बाद, राज्य के डीआरजी के जवान अपने एक साथी के शव के साथ बीजापुर के कुटरू वन क्षेत्र को पार कर रहे थे, तभी एक इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) में विस्फोट हो गया, जिसमें डीआरजी के नौ जवान मारे गए.

हालांकि, यह हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में सबसे घातक आईईडी विस्फोटों में से एक था, लेकिन सुरक्षा बलों ने आईईडी बरामद करने में बेहतर प्रदर्शन किया है, इस साल अब तक बीजापुर में 15 आईईडी को निष्क्रिय किया गया है.

पिछले साल बस्तर में 52 आईईडी विस्फोटों में से 24 बीजापुर में हुए थे, जबकि नारायणपुर और सुकमा में क्रमशः 10 और छह आईईडी विस्फोट हुए थे. दिप्रिंट द्वारा प्राप्त पुलिस डेटा से पता चला है कि सुरक्षा बलों ने पिछले साल 308 आईईडी बरामद किए, जिनमें से 247 तीनों जिलों से जब्त किए गए.

2019 के बाद से पांच सालों में 308 IED की बरामदगी सबसे ज़्यादा है.

इन्फोग्राफिक: श्रुति नैथानी/दिप्रिंट
इन्फोग्राफिक: श्रुति नैथानी/दिप्रिंट

एक सुरक्षा अधिकारी ने कहा, “ग्रामीणों द्वारा माओवादियों को दिया जाने वाला भारी समर्थन सुरक्षा बलों के खिलाफ IED के इस्तेमाल में अहम भूमिका निभाता है. माओवादियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई बीजापुर में होगी.”

उन्होंने आगे कहा, “विस्फोट स्थल कुटरू थाने से सिर्फ 3-4 किलोमीटर दूर था, लेकिन सैनिकों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सड़क पर संभावित IED के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. IED में 60 किलो का विस्फोटक था, जो 250 मीटर लंबे तार से जुड़ा हुआ था, जो पास के धान के खेत में जा रहा था, लेकिन इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी.”

सुरक्षा बलों ने IED को अपने जीवन और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा नुकसान बताया है. पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, “जब हम गोलीबारी में अपने कर्मियों को खो देते हैं, तो सैनिक इसे एक ऑक्यूपेशनल हज़ार्ड के रूप में स्वीकार करते हैं. IED में लोगों को खोना, जो मौत और अंग-भंग का कारण बनता है, एक गंभीर मनोबल गिराने वाला प्रभाव डालता है.”

ऑपरेशनल की सफलता के लिए सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच फंसे गांव के निवासियों के बीच विश्वास बनाने की भी ज़रूरत है.

विज ने दिप्रिंट से कहा, “माओवादियों ने इन गरीब ग्रामीणों का विश्वास इसलिए जीता क्योंकि उनके लिए कोई राज्य नहीं था. उन्होंने (माओवादियों ने) उनकी भाषा सीखी, उनसे प्यार किया और लंबे समय तक उनका विश्वास जीतने के लिए उन पर पैसे खर्च किए. क्या हमने ईमानदारी से उनसे सद्भावना और गरीब ग्रामीणों तक पहुंच बनाने की कोशिश की है? क्या हमने उनकी (ग्रामीणों की) भाषा सीखी है ताकि उन्हें घर जैसा महसूस हो और वे हमारे सामने खुल सकें? इसका जवाब है नहीं.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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