नई दिल्ली: पिछले महीने ढह गई उत्तरकाशी की निर्माणाधीन सिल्क्यारा सुरंग से बचाए गए 41 वर्कर्स एक महीने तक साइट पर काम पर दोबारा से लौट सकते हैं. दिप्रिंट को ये जानकारी मिली है.
यह जानकारी कुछ मज़दूरों के साथ-साथ सुरंग प्रोजेक्ट को कार्यान्वित करने वाली कंपनी राष्ट्रीय राजमार्ग और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) के एक अधिकारी ने दिप्रिंट के साथ साझा की थी.
रेस्क्यू के एक हफ्ते बाद वर्कर्स फिलहाल अपने घरों में हैं. इस बीच, सुरंग पर काम तीन महीने तक फिर से शुरू होने की संभावना नहीं है.
एनएचआईडीसीएल के कार्यकारी निदेशक संदीप सुधेरा ने दिप्रिंट को बताया, “सुरंग के सेफ्टी ऑडिट के बाद, हम ढहे हुए हिस्से से मलबा हटाना शुरू कर देंगे. हालांकि, निर्माण कार्य अगले तीन महीने के बाद ही दोबारा से शुरू होने की उम्मीद है.”
सुधेरा ने बताया कि वे आपदा प्रबंधन अधिनियम में उल्लिखित दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए ही आगे बढ़ेंगे.
4.5 किलोमीटर लंबी सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी चार धाम परियोजना का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री के चार तीर्थ स्थलों तक कनेक्टिविटी में सुधार करना है.
हिमालय में बन रही ये सुरंग, यमुनोत्री तक हर मौसम में पहुंचने को सक्षम बनाने के उद्देश्य से बनाई जा रही है. राडी पर्वत के माध्यम से खोदी गई इस सुरंग से धरासु और यमुनोत्री के बीच यात्रा का समय एक घंटा और दूरी 20 किलोमीटर कम होने की उम्मीद है.
हालांकि, निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा 12 नवंबर को सिल्क्यारा के मुहाने से ढह गया, जिससे 41 मज़दूर 60 मीटर मलबे में फंस गए.
चार धाम परियोजना भूवैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के बीच चिंता का विषय रही है, जो हिमालय की अपेक्षाकृत कम उम्र का हवाला देते हुए नाजुक इलाके में बहुत अधिक निर्माण पहल करने में सावधानी बरतने का आग्रह करते रहे हैं और क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य को सुरंग ढहने जैसे घातक परिणामों में से एक बताते हैं.
मज़दूरों को बचाने के लिए पहाड़ में की गई वर्टिकल ड्रिलिंग के बारे में भी सवाल उठाए गए थे. हालांकि, वर्टिकल ड्रिलिंग को बीच में ही रोक दिया गया था और मज़दूरों को अंतिम कुछ दूरी पर रैट माइनर्स की मदद से हॉरिजोंटल खुदाई द्वारा बचाया गया था.
बचाव अभियान में शामिल अधिकारियों का कहना है कि इस प्रक्रिया में जो भी छेद किए गए थे उन्हें अब भर दिया गया है. सुधेरा ने कहा, “वर्टिकल ड्रिल, हॉरिजोंटल-पर्पेंडिकुलर ड्रिल और अन्य वर्टिकल ड्रिल द्वारा बनाए गए छेद पूरी तरह से भर गए हैं.”
रेस्क्यू ऑपरेशन को सुविधाजनक बनाने के लिए सड़क बनाने के लिए काटे गए पेड़ों के स्थान पर नए पेड़ों को लगाने की योजना बनाई जा रही है.
उत्तरकाशी प्रभागीय वनाधिकारी डी.पी. बलूनी ने कहा, “सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने 1,153 मीटर लंबी सड़क बनाने के लिए हमारी 0.395 हेक्टेयर जमीन से 44 चीड़ के पेड़ हटा दिए थे. मुआवजे के तौर पर उसी स्थान पर 100 बांज (Oak) के पेड़ लगाए जाएंगे.”
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प्रोजेक्ट को पटरी पर वापस लाना
आगे की योजनाओं के बारे में बात करते हुए, सुधेरा ने कहा कि वे सबसे पहले भूस्खलन के कारण पहाड़ में बनी “खाली जगह” को भरेंगे जिसके कारण सुरंग ढह गई थी.
उन्होंने कहा, “इसी तरह बड़कोट की तरफ से बचे हुए 493 मीटर (सुरंग) का निर्माण किया जाएगा, जिसमें एक एस्कैप पैसेज भी शामिल होगा.”
“एस्कैप पैसेज” से उनका मतलब था कि निर्माण कार्य के दौरान एक या एक से अधिक आपातकालीन गेट्स बनाए जाएं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भूस्खलन जैसी घटनाओं की स्थिति में मज़दूर आराम से बाहर निकल सकें.
जैसे-जैसे रेस्क्यू ऑपरेशन आगे बढ़ रहा था, एक बड़ी आलोचना यह थी कि सुरंग में बाहर निकलने के रास्ते नहीं थे जिससे सुरंग ढहने के बाद फंसे हुए मज़दूरों को बाहर निकलने का रास्ता मिल जाता.
हालांकि, सुधेरा ने इस तरह की आलोचना को खारिज करते हुए कहा कि बहुत सारी “गलत सूचनाएं” फैलाई गई थीं.
उन्होंने कहा कि सुरंग के अंदर की स्थिति ठीक थी, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रोजेक्ट के पूरा होने पर निकास द्वार स्थापित करने की योजना है.
नाम न छापने की शर्त पर एनएचआईडीसीएल के एक अधिकारी ने कहा कि काफी मात्रा में मलबा है जिसे बारिश और बर्फबारी शुरू होने से पहले साफ करना होगा.
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के वरिष्ठ वैज्ञानिक राजेंद्र कुमार जेनामणि ने दिप्रिंट को बताया था कि 10-11 दिसंबर को इलाके में हल्की बर्फबारी की संभावना है.
एनएचआईडीसीएल के एक अन्य अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि बिल्स तैयार कर लिए गए हैं और काम शुरू करने में तेज़ी लाने के लिए एक या दो दिन में भारत सरकार को सौंप दिया जाएगा.
अधिकारी ने कहा, “नुकसान का आकलन करने में समय लगता है और सुरंग के पूरा होने के संबंध में निश्चित बयान देना इस समय संभव नहीं है.”
काटे गए पेड़ों के संबंध में डीएफओ बलूनी ने कहा कि पुनर्वनीकरण प्रक्रिया पहले से ही चल रही है और एक नया जंगल बनाने की कोशिश जल्द ही शुरू होगी.
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक पी.सी. नवानी ने कहा कि चीड़ के स्थान पर बांज लगाना एक “उचित” समाधान हो सकता है, साथ ही उन्होंने कहा कि चीड़ की जड़ों की पहाड़ों में गहरी पकड़ नहीं होती, जिससे मामूली कंपन से भी नुकसान होने की आशंका बनी रहती है.
नवानी ने कहा, “चीड़ के पेड़ों की जड़ें गहरी नहीं होती हैं, इसलिए भूकंप के दौरान ये पेड़ अक्सर सबसे पहले गिर जाते हैं. हालांकि, ये केवल एक फैक्टर है.”
उन्होंने कहा, “चीड़ के पेड़ों की जगह बांज (Oak) के पेड़ लगाना एक उचित समाधान है, बशर्ते कि एनएचआईडीसीएल इस बार सावधानी से आगे बढ़े.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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